मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

धरातल की तरफ राजनीति

                               आम आदमी पार्टी के उभार ने पूरे देश में काम कर रहे विभिन्न राजनैतिक दलों को कम से कम उन मुद्दों की तरफ धकेलना शुरू कर दिया है जिनकी अनदेखी के चलते देश के जन सामान्य में राजनेताओं के प्रति एक गुस्सा दिखाई देने लगा था. दिल्ली में जिस तरह से जनता के बीच से ही जन प्रतिनिधि चुनने की कवायद आप द्वारा की गयी उस पर चलते हुए कॉंग्रेस ने भी प्रायोगिक तौर पर देश भर में १५ लोकसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की राय से अपने प्रत्याशी तय करने की बात कही है वहीं भाजपा में पहले से ही बहुत सारे स्थानों पर कार्यकर्ताओं की मेहनत से ही प्रत्याशी तय करने का काम चालू हो चुका है. इस क्रम में सबसे अधिक लाभ उन जगहों पर विभिन्न राजनैतिक दलों को मिलने वाला है जहाँ पर उनके कार्यकर्त्ता वास्तव में ही जनता से जुड़े हुए हैं और प्रत्याशी भी उनके बीच का ही है और उनकी भावनाओं और आवश्यकतों पर आसानी से सही सोच और काम करने की क्षमता रखता है. इस पूरे काम से जहाँ जनता को अपने बीच का व्यक्ति मिलता है वहीं स्थानीय समस्याओं से निपटने में शासन और प्रशासन को आसानी होती है.
                                                      देश यदि इस तरह से अब एक बार फिर अपनी पुरानी राजनीति करने के तरीके की तरफ लौट रहा है तो यह जन सामान्य के लिए बड़ी घटना है क्योंकि पार्टियों के प्रति सहानुभूति, झुकाव या व्यापक विरोध के चलते कई बार वे राजनेता भी हार जाया करते हैं जिनकी अच्छी राजनैतिक समझ की देश को सदैव ही आवश्यकता रहा करती है. देश में बड़े परिवर्तन अचानक से नहीं होते पर एक जीवंत लोकतंत्र एक झटके से ही अपने लिए कभी भी अवसर आने पर विकल्पों पर विचार करने से नहीं चूकता है जिसका भारत सदैव से ही बहुत बड़ा उदाहरण रहा है क्योंकि जब भी देश से ऊपर खुद को समझने की भूल किसी भी नेता द्वारा की गयी है तो जनता ने उसे उसकी सही स्थिति का एहसास अपने हाथ में आयी वोट देने की शक्ति का उपयोग करके बखूबी किया है और यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है जिससे लोकतंत्र मज़बूत होता है और नेताओं में तानाशाहों जैसे अवगुण नहीं पनपने पाते हैं. पिछले तीन दशकों में जिस तरह से उन अपराधियों ने खुद आगे बढ़कर चुनाव लड़ना शुरू कर दिया जिनके दम पर कुछ नेता चुनाव जीतते थे तभी से लोकतंत्र में बाहुबल का बहुत बड़ा दखल भी हो गया.
                                                   केवल ज़मीन से जुड़े लोगों को सदनों तक पहुँचाने से भी सब कुछ ठीक नहीं होने वाला है क्योंकि जब तक स्थानीय समस्या पर स्थानीय सोच के साथ नीतियां बनाने का काम नहीं किया जायेगा तब तक लोकतंत्र सही मायने में जन जन तक नहीं पहुँच पायेगा. इस तरह की किसी भी परिस्थिति और आवश्यकता को भांपने के लिए जनता के साथ स्थानीय समाचार पत्र भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि जनता से वे अपने माध्यम से मुद्दे उठाकर सीधा संवाद करके क्षेत्र विशेष की चुनौतियों और आवश्यकताओं पर प्रकाश डालकर उन्हें नेताओं और पार्टियों के संज्ञान में तो ला ही सकते हैं. लोकतंत्र के विकास में यदि पूरा समाज ही आगे बढ़कर काम करने के बारे में सोचना शुरू कर दे तो यह बहुत मुश्किल भी नहीं लगता है क्योंकि जन सह भागिता के माध्यम से वह सब कुछ पाया जा सकता है जो आज हमें नहीं मिल पा रहा है और उस पर हमारा नैतिक और राजनैतिक अधिकार भी बनता है. देश यदि अब नेताओं की भाषा में ग्रास रूट लेवल तक अपनी नीतियों को बनाने के लिए आगे बढ़ना चाहता है तो यह अपने आप में बड़ा परिवर्तन ही होगा क्योंकि आज भी देश के बहुत सारे हिस्सों में वे सामान्य सुविधाएं सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि वे राजनैतिक रूप से उतने जागरूक और आक्रामक नहीं हैं जिनके दम पर आज संसाधान में हिस्सा मिला करता है.           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. aam aadmi party jis tarah se act/react kar rahi hai uus se to lagta hai ki yeh ek bevakoofo ka jamavra hai oor kuchh nahi. party must show some maturity otherwise aam aadmi will throw them out without any sign/identity.ramesh

    जवाब देंहटाएं