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शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

सामान्य प्रशासन और यूपी

                                                  यूपी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले के साथ पार्टी में भी बड़े क़द वाले कई विभागों को संभाल रहे मो० आज़म खान के अपने गृह नगर में उनके अपने विभाग में जिस तरह से नगर निकायों में अधिकारियों का इतना टोटा पड़ा हुआ है कि अधिकांश निकायों में वहाँ के प्रशासनिक अधिकारी ही काम चलाऊ व्यवस्था सम्भाले हुए हैं. सभी जानते हैं कि सरकार के जिस मंत्रालय से शहरी क्षेत्र की जनता का सबसे अधिक और रोज़ ही पाला पड़ता है वह नगर विकास मंत्रालय ही है और जिस तरह से इतने प्रभावशाली मंत्री होने के बाद भी वहाँ पर लोक सेवा आयोग से भर्तियां नहीं हो पा रही हैं तो यह यूपी सरकार की बिगड़ी हुई कार्य शैली और प्रशासनिक नाकामी को ही अधिक दर्शाता है क्योंकि मामला इतना बिगड़ा हुआ है कि इतने प्रभावी मंत्री के खुद के ज़िले में सेवानिवृत्त अधिकारी को विशेष अधिकारी के रूप में तैनात कर काम चलाया जा रहा है. यह पूरा मसला केवल सपा सरकार से ही जुड़ा हुआ नहीं है क्योंकि यूपी पिछले कुछ दशकों से जिस तरह से दैनिक आधार पर चलाया जा रहा है यह उसी का नतीज़ा है.
                                                आखिर यूपी के कार्मिक मंत्रालय या नयुक्ति विभाग के साथ लोक सेवा आयोग की इतनी भी कैसी नहीं बनती कि समय रहते सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों और प्रदेश के विभिन्न विभागों के सुचारु रूप से सञ्चालन के लिए आवश्यक पदों के लिए भर्तियां की जा सकें ? पिछले चौथाई दशक से यूपी में गैर कॉंग्रेसी सरकारें ही रही है जिनमें भाजपा, सपा और बसपा तीनों दल शामिल रहे हैं और २००२ के बाद से भाजपा भी सत्ता तक नहीं पहुँच पायी है तो सीधे तौर पर इसके लिए क्या सपा और बसपा को बड़े स्तर पर ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए क्योंकि मुलायम, माया और अब अखिलेश के समय में सरकारों ने आखिर किया क्या है जिससे प्रदेश इस दुर्दशा तक पहुँच गया है और आज भी सपा की सत्ताधारी सरकार आज़म के कहने के बाद भी कान में तेल डालकर बैठी हुई है ? अवसर न मिलने पर बहाने सभी बनाया करते हैं पर जिस तरह से इन क्षेत्रीय दलों ने अपनी छोटी सोच के कारण पूरे प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था को पंगु करके रख दिया है उसके लिए क्या इनसे सवाल नहीं पूछे जाने चाहिए ?
                                                इस मामले में भी लगता है जब इलाहाबाद हाई कोर्ट का चाबुक चलेगा तभी सोती हुई सरकार और उसके मुखिया जागेंगे किसी विशेष परिस्थिति में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा निकायों की ज़िम्मेदारी सम्भालना मजबूरी हो सकता है पर आज जब स्वयं इन प्रशासनिक अधिकारियों के पास ही इतने अधिक काम हैं कि वे समय सीमा में उन्हें ही नहीं निपटा पाते हैं तो पूरे प्रदेश में आज़म चाहे जितने प्रयास कर लें पर इनके भरोसे निकायों की दशा सुधरने वाली नहीं है. यूपी सरकार को प्रदेश की आबादी के अनुसार अपनी आवश्यकता को लोक सेवा आयोग तक पहुँचना चाहिए और उसके काम काज को भी अधिक पारदर्शी बनाकर तेज़ी से भर्तियां करने की तरफ बढ़ना चाहिए. इसे पूरी तरह से पारदर्शी भी रखना चाहिए जिससे कोई कोर्ट जाकर पूरी प्रक्रिया को बाधित भी न कर सके. अभी तक कानूनी कमियों के कारण हर विभाग की नियुक्तियों में यूपी सरकार को जितना समय लगता है सम्भवतः वह पूरे विश्व में एक कीर्तिमान ही होगा. प्रदेश में देश की बहुत बड़ी आबादी रहती है और जब तक इसके साथ सामान्य नागरिकों जितना व्यवहार करने के लिए सरकार व्यवस्था नहीं कर पाती है तो देश के विकास और समृद्धि की बात करना ही बे-ईमानी है और सरकारों के निकम्मेपन के कारण लिए यूपी को हमेशा की तरह देश के विकास में बाधक बताकर कोसा ही जाता रहेगा.                 
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