मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 4 जनवरी 2014

जनता, सरकार और मंत्री

                                दिल्ली में आप सरकार की हर गतिविधि पर जिस तरह से आँखें गड़ाकर देश का मीडिया अपने को ऐसा प्रस्तुत कर रहा है जैसे उसने कोई बहुत बड़ा खुलासा ही कर दिया हो और कल तक कॉंग्रेस को केजरीवाल के माध्यम से धूल चाटने में लगे हुए सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ कथित देशभक्त भी आज उस गणित के उलटे पड़ जाने से आप को इस बात के लिए कोसने में लगे हुए हैं. बात चाहे जो भी हो पर कुछ लोगों को इस तरह से हर बात में नकारात्मक राजनीति करने की आदत हो चुकी है कि वे किसी भी बड़े बदलाव को अपने खिलाफ जाते हुए देख ही नहीं पाते हैं और मानसिक संतुलन खोकर कुछ भी कहने लगते हैं. अरविन्द द्वारा सादगी अपनाये जाने के संकल्प के बाद क्या किसी ने गौर किया कि भाजपा ने अपना चेहरा बचाने के लिए गोवा के सीएम मनोहर पणिकर की तस्वीरें इस तरह से प्रचारित की जैसे जागरूक लोग इस बारे में कुछ जानते ही न हों ? नि: संदेह मनोहर पणिकर का यह काम आज देश के हर नेता द्वारा अपनाया जाना चाहिए पर क्या जिस तरह से भाजपा ने उनकी इस सादगी को प्रचारित किया उससे वे खुश हो रहे होंगें ?
                                देश के नेताओं में सादगी होनी चाहिए इस बात का जनता पूरे मन से समर्थन करती है पर सादगी के नाम पर जब केजरीवाल मेट्रो से सफ़र करने लगते है और आम दिल्ली वासियों का पूरी लाइन पर जीना दुश्वार कर देते हैं तो उनका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता है. केवल संघर्षरत नेता होने और सत्ता को चलाने में ज़मीन आसमान का अंतर होता है और इस अंतर को केंद्र से राज्यों तक सत्ता और विपक्ष की राजनीति कर चुके नेता और दल अच्छे से जानते भी हैं पर जब सरकार की कार्यशैली और कार्य क्षमता पर इस कथित सादगी का बुरा असर पड़ने लगे तो उसके होने का कोई मतलब नहीं होता है. जब कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक पर पर बैठ जाता है तो वह देश के संविधान के अनुसार चलने को बाध्य होता है और विभिन्न तरह के कारक भी उसके साथ काम करते रहते हैं जिससे उसे उनका भी ध्यान रहना पड़ता है. दिल्ली में जिस तरह से केजरीवाल और उनके मंत्रियों द्वारा बंगले और गाड़ियों पर हायतौबा मचाई जा रही है उसका कोई मतलब नहीं बनता है क्योंकि किसी भी राज्य की सत्ता सादगी के नाम पर काम की क्षमता को प्रभावित करे यह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है ?
                                आप और केजरीवाल के हर कदम पर मीडिया में सक्रिय भाजपा समर्थक पत्रकारों का इस तरह से बर्ताव क्या उनकी उस मनोदशा को नहीं बताता है जिसमें वे अब छोटी दिल्ली के इन नए आकाओं के साथ सामंजस्य बिठा पाने में अपने आप को असफल पा रहे हैं ? केजरीवाल को भी अनावश्यक बयानबाज़ी बंद कर अब दिल्ली के उन मुद्दों को सुलझाने की तरफ़ बढ़ने की ज़रुरत है क्योंकि आरोप लगाना विपक्ष का काम है और उसे यह करने का पूरा अधिकार भी है पर सादगी और दिल्ली के विस्तार को देखते हुए यदि आप सरकार द्वारा न्यूनतम आवश्यक सुविधाओं को साथ में लेकर अपनी दक्षता बढ़ाई जाती है तो उसका विरोध करना बीमार मानसिकता से कम कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. अरविन्द से तमाम आशाएं लगाये बैठी दिल्ली की जनता यदि उनसे मिलने के लिए कौशाम्बी के चक्कर लगाती रहेगी तो क्या यह उसके साथ भी अन्याय नहीं होगा ? यदि आप सरकार के ये मंत्री किसी समय देश की परंपरागत दिखावे वाले नेताओं की सोच जैसा शुरू कर देते हैं तो उनको कटघरे में खड़ा कर उनका विरोध करने का हक़ तो सभी को मिला हुआ है.    
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