पीएम मनमोहन सिंह ने जिस तरह से कोच्चि के पास पुतीवाईपे में पेट्रोनेट एलएनजी टर्मिनल राष्ट्र को समर्पित करते हुए इसके महत्व के साथ ही एशियाई देशों का आह्वाहन भी किया वह समय के हिसाब से बिलकुल सही ही कहा जा सकता है क्योंकि आंकड़ों के अनुसार जिस तरह से एशियाई देशों में तरल गैस की खपत रोज़ ही बढ़ रही है उसे देखते हुए अब सभी एशियाई देशों को इसके उचित मूल्य के बारे में उत्पादक देशों पर दबाव बनाकर अपनी नीति को तय करवाना ही होगा. एशिया में जिस तरह से विकास की अपरिमित सम्भावनाएं समायी हुई हैं और आने वाले समय में पूरी वैश्विक आर्थिक गतिविधियों का केंद्र यहीं पर रहने वाला है तो उस स्थिति में यदि ऊर्जा के सही उपयोग और उसके उचित मूल्य पर अभी से ही विचार नहीं किया जायेगा तो आने वाले समय में भारत समेत पूरे क्षेत्र की आर्थिक प्रगति भी बाधित होने की सम्भावना हो सकती है. आज जिस तरह से तेल उत्पादक देश वैश्विक आंकलन के अनुसार कच्चे तेल के दाम नियंत्रित रखते हैं ठीक यही नीति गैस के क्षेत्र में भी आवश्यक होनी चाहिए.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से इस परियोजना से प्रति वर्ष १४.४ लाख टन तरल गैस की आपूर्ति सुनिश्चित की गयी है और उसके लिए कम्पनी ने आस्ट्रलिया की गॉर्गन परियोजना से गैस आपूर्ति के लिए २० वर्षों का समझौता भी किया है उससे आने वाले वर्षों में निश्चित तौर पर देश के दक्षिणी राज्यों में प्राकृतिक गैस का उपयोग बढाकर पर्यावरण को बचाने के साथ बेहतर विकल्प भी बनाया जा सकता है. देश की लम्बी अवधि की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अब जिस तरह से प्रयास किये जाने की ज़रुरत है इस तरह के प्रोजेक्ट उसमें पूरी तरह से सफल कहे जा सकते हैं क्योंकि आने वाले समय में जब देश को बेहतर ऊर्जा प्रबंधन की आवश्यकता होगी तब तक हम इस प्रबंधन को अगले स्तर तक पहुँचने वाले होंगें. मनमोहन सिंह से जिस तरह से राज्य की सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े हुए विभागों को देश में आने वाली इस गैस का भरपूर उपयोग करने के लिए व्यवस्था बनाने को कहा है वह भी लम्बे समय में काफी प्रभावी होने वाला है. राज्य में समय रहते इस परियोजना के माध्यम से घरों तक पाइप के माध्यम से इस गैस की आपूर्ति की जा सकती है और वहाँ पर प्रचुर ईंधन उपलब्ध होने से पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है.
भारत सरकार ने केवल इस परियोजना के शुरू होने के साथ ही अपने प्रयासों को यहीं पर नहीं रोका है बल्कि अन्य वैश्विक गैस उत्पादकों से भी इसकी इस टर्मिनल पर और अधिक गैस आपूर्ति करने के लिए बातचीत जारी रखकर पूरी व्यवस्था को केरल और तमिलनाडु समेत अन्य दक्षिणी राज्यों के लिए विकास के नए आयाम तो खोल ही दिए हैं. जब देश को लम्बे समय में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस तरह की अन्य परियोजनाओं की बहुत आवश्यकता है तो इसको पूरे मनोयोग से एक राष्ट्रीय नीति के रूप में आगे बढ़ाने की ज़रुरत है. जिस तरह से अगली सरकार से दूर रहने की बात मनमोहन सिंह कर चुके हैं तो क्या आने वाली कोई भी नई सरकार उनकी इस दूरदर्शिता भरी नीति जैसी अन्य नीतियों को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में उसी तरह जारी रख पायेगी या केवल राजनैतिक पीएम के कुर्सी पर बैठ जाने से काम करने की यह मनोदशा समाप्त हो जायेगी ? देश में जिस तरह से केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए नेता कुछ वोट बटोरू कामों में ही लगे रहते हैं तो क्या वे भारतीय आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह से सुधारने वाले इस महानायक की नीतियों को आगे भी जारी रख पायेंगें क्योंकि वहीं से देश के आर्थिक विकास या पतन का पैमाना अपने आप ही तय हो जायेगा.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
भारतीय परिप्रेक्ष्य में जिस तरह से इस परियोजना से प्रति वर्ष १४.४ लाख टन तरल गैस की आपूर्ति सुनिश्चित की गयी है और उसके लिए कम्पनी ने आस्ट्रलिया की गॉर्गन परियोजना से गैस आपूर्ति के लिए २० वर्षों का समझौता भी किया है उससे आने वाले वर्षों में निश्चित तौर पर देश के दक्षिणी राज्यों में प्राकृतिक गैस का उपयोग बढाकर पर्यावरण को बचाने के साथ बेहतर विकल्प भी बनाया जा सकता है. देश की लम्बी अवधि की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अब जिस तरह से प्रयास किये जाने की ज़रुरत है इस तरह के प्रोजेक्ट उसमें पूरी तरह से सफल कहे जा सकते हैं क्योंकि आने वाले समय में जब देश को बेहतर ऊर्जा प्रबंधन की आवश्यकता होगी तब तक हम इस प्रबंधन को अगले स्तर तक पहुँचने वाले होंगें. मनमोहन सिंह से जिस तरह से राज्य की सरकार और पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े हुए विभागों को देश में आने वाली इस गैस का भरपूर उपयोग करने के लिए व्यवस्था बनाने को कहा है वह भी लम्बे समय में काफी प्रभावी होने वाला है. राज्य में समय रहते इस परियोजना के माध्यम से घरों तक पाइप के माध्यम से इस गैस की आपूर्ति की जा सकती है और वहाँ पर प्रचुर ईंधन उपलब्ध होने से पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है.
भारत सरकार ने केवल इस परियोजना के शुरू होने के साथ ही अपने प्रयासों को यहीं पर नहीं रोका है बल्कि अन्य वैश्विक गैस उत्पादकों से भी इसकी इस टर्मिनल पर और अधिक गैस आपूर्ति करने के लिए बातचीत जारी रखकर पूरी व्यवस्था को केरल और तमिलनाडु समेत अन्य दक्षिणी राज्यों के लिए विकास के नए आयाम तो खोल ही दिए हैं. जब देश को लम्बे समय में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस तरह की अन्य परियोजनाओं की बहुत आवश्यकता है तो इसको पूरे मनोयोग से एक राष्ट्रीय नीति के रूप में आगे बढ़ाने की ज़रुरत है. जिस तरह से अगली सरकार से दूर रहने की बात मनमोहन सिंह कर चुके हैं तो क्या आने वाली कोई भी नई सरकार उनकी इस दूरदर्शिता भरी नीति जैसी अन्य नीतियों को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में उसी तरह जारी रख पायेगी या केवल राजनैतिक पीएम के कुर्सी पर बैठ जाने से काम करने की यह मनोदशा समाप्त हो जायेगी ? देश में जिस तरह से केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए नेता कुछ वोट बटोरू कामों में ही लगे रहते हैं तो क्या वे भारतीय आर्थिक परिदृश्य को पूरी तरह से सुधारने वाले इस महानायक की नीतियों को आगे भी जारी रख पायेंगें क्योंकि वहीं से देश के आर्थिक विकास या पतन का पैमाना अपने आप ही तय हो जायेगा.
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