मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 6 जनवरी 2014

देसी क्रायोजेनिक और भारत

                                        २० वर्षों की कड़ी मेहनत, तीन असफलताओं और लगन के बाद आखिर भारत के इसरो और उसके वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया को वह करके दिखा दिया है जिसका अभी तक देश के वैज्ञानिक बहुत बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे. सोवियत संघ के विघटन के बाद जिस तरह से रूस ने भारत के साथ अपने पुराने सम्बन्धों को भी अमेरिका के दबाव और अपनी कमज़ोर आर्थिक स्थिति के चलते यह तकनीक देने से मना कर दिया था उसके बाद ही सरकार ने यह तय किया था अब इसरो को पूरी तरह से वे सारी सुविधाएँ उपलब्ध कराये जाने की पूरी कोशिशें की जाएंगीं जिनके वह अपने दम पर ही यह तकनीक विकसित कर सके. इसरो ने प्रारंभिक असफलताओं के बाद भी जिस तरह से अपने इस कार्यक्रम को जिस तरह से चलाये रखा यह उसी का फल है कि आज देश के पास अपनी तकनीक से विकसित किया हुआ क्रायोजेनिक इंजन अब सफलता की तरफ बढ़ चला है जिसने पहली ही सफल उड़ान में एक उपग्रह को भी उसकी कक्षा में स्थापित करने में सफलता पायी है.
                                             भारतीयों की मेधा को तो वैसे भी आज पूरा विश्व ही मानता है पर अभी तक जिस तरह से उसका विदेशों की तरफ पलायन चालू है तो उस स्थिति में देश की प्रतिभाएं विदेशों में जाकर अपना काम करने में लगी हुई हैं और हमें उसी तकनीक के लिए दूसरों के सामना हाथ फ़ैलाने पड़ रहे हैं जो हमारी अपनी प्रतिभाओं के द्वारा ही विकसित किये जा रहे है. अब देश को इस तरह भी सोचने की आवश्यकता है क्योंकि जब हम अपने यहाँ पर ही वैज्ञानिक संस्थाओं को इतना मज़बूत कर पाने में सफल हो जायेंगें कि हमारी प्रतिभाओं को बेहतर भविष्य के लिए किसी अन्य देश में जाकर काम न तलाशना पड़े तभी वैज्ञानिक वैश्विक बिरादरी में हमारी पैठ और सम्मान और बढ़ पायेगा. ऐसा नहीं है कि देश के संस्थान इस स्थिति में नहीं हैं कि वे अपनी प्रतिभाओं का सम्मान कर सकें फिर भी हमें जिस स्तर पर काम करने की ज़रुरत है अभी वहाँ तक हमारी सोच नहीं पहुँच पा रही है आने वाले समय में हमें यदि अपने देश को हर तरह की परिस्थितियों के लिए अपने वैज्ञानिकों को ढालना है तो उसके लिए बेहतर सुविधाएँ और अनुसन्धान केन्द्रों की आवश्यकता तो पड़ने ही वाली है जो कि एक चरण बद्ध तरीके से आगे बढ़ते हुए बनाये जा सकते हैं.
                                            देश की रक्षा आवश्यकताओं के बारे में पाकिस्तान, चीन जैसे पड़ोसियों के साथ अमेरिका और विश्व के अन्य तमाम देश इस लिए भी चिंतित दिखायी देते हैं क्योंकि उनके यहाँ पर किसी भी तकनीक का विध्वंसक दुरूपयोग ही बड़े पैमाने पर किया जाता है तो वे भारत को भी उसी श्रेणी में रखने से नहीं बाज़ आते हैं ? भारत ने इन इंजनों को २० वर्ष पहले जब माँगा था तब भी स्पष्ट कर दिया था कि यह असैन्य कार्यों के लिए ही उपयोग में लाया जाने वाला है पर सशंकित विश्व ने हमारे सहयोगी रूस को भी बाध्य किया कि वह भी इससे सम्बंधित कोई भी तकनीक भारत को न दे. रक्षा क्षेत्र में भारत ने इस इंजन के विकास और सफल उड़ान से पहले ही अग्नि के माध्यम से पांच हज़ार किमी तक अपनी मारक क्षमता का विकास कर ही लिया है जो कि उसकी सैन्य आवश्यकताओं की पूरी तरह से पूर्ति कर पाने में सक्षम है. दुनिया के देश आज भी भारत को अपने जैसी घटिया सोच वाला देश ही समझते रहते हैं जबकि भारत ने अनादि काल से ही विश्व बंधुत्व और समरसता पर दृढ रहने का लम्बा इतिहास बनाये रखा है. फिलहाल देश के पास अब अंतरिक्ष में वह हर तकनीक उपलब्ध है जो आज दुनिया में कहीं भी उपलब्ध है इसके लिए इसरो के वैज्ञानिक, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय के साथ भारत सरकार भी बधाई की पात्र है.
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