भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से देश में सभी तरह के करों को ख़त्म कर केवल बैंकों के माध्यम से लेन देन को बढ़ावा देने के लिए जो नए कर ढांचे का प्रस्ताव किया है उससे देश में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन हो पायेगा यह अभी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इस तरह के किसी भी आमूल चूल परिवर्तन के लिए सरकार को पहले धन के लेन देन को पूरी तरह से बैंक आधारित करना होगा क्योंकि इस प्रस्ताव में सारा कुछ केवल बैंकों पर ही टिकने वाला है. जिस तरह से उद्योग जगत ने भी इस पूरे ढांचे के बारे में शंकाएं दिखाते हुए कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया है और साथ ही आशंका भी जताई है कि इससे उद्योगों के विकास पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है. देश की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए जिस तरह से आज भी अधिकांश क्षेत्रों में बैंकों का अस्तित्व न के बराबर है वहाँ पर यह मॉडल किस तरह से लागू किया जा सकता है यह भी भाजपा द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है क्योंकि जब तक हर व्यक्ति तक बैंक की पहुँच नहीं होती तब तक ऐसे किसी भी प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं होने वाला है.
देश को आज भी एक बेहतर कर ढांचे की आवश्यकता है पर जिस तरह से सभी करों को समाप्त करने की बात की जा रही है उस स्थिति में बिना बैंको की मदद से होने वाले वित्तीय व्यापार को किस तरह से इस नए सिस्टम में लाया जायेगा यह अभी बहुत दूर की कौड़ी ही लगती है. बेशक उद्योग जगत और जनता देश के दोहरे कर प्रस्तावों से बहुत परेशान है पर जिस तरह से उसको व्यापक विचार विमर्श के बाद सुधारे जाने की कोशिशें की जाई चाहिए आज भी उस पर कोई ठोस प्रगति नहीं हो पा रही है और केवल आयकर के मामले में कुछ प्रयासों के द्वारा तेज़ी अवश्य आ पायी है पर जब तक कर ढांचा ऐसा नहीं होगा कि हर व्यक्ति आसानी से उसमें अपने को सहज महसूस कर सके तब तक किसी भी परिस्थिति में कर चोरी को नहीं रोका जा सकेगा. यह पूरा प्रस्ताव कोई जादू की छड़ी लेकर सामने नहीं आने वाला है क्योंकि जब तक बैंक और उनमें तैनात कर्मचारियों की संख्या और दक्षता को उतना नहीं बढ़ाया जाता है जितना पूरे देश के नए ढांचे को चाहिए तब तक आख़िर कैसे यह सम्भव हो सकता है.
कर सुधार पर आज देश को किसी एक सोच के साथ आगे बढ़ने के स्थान पर देश की ज़रूरतों के अनुसार आगे बढ़ने की अधिक आवश्यकता है क्योंकि आज के सिस्टम में जो भी कमियां दिखायी देती हैं पहले उन पर सुधारात्मक प्रयास किये जाने चाहिए और हर तरह के कर चोरों पर नज़र रखने का तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए. नि:संदेह पिछले एक दशक में देश के बैंकिंग सेक्टर निजी बैंकों के आने के बाद बड़ा परिवर्तन आया है फिर भी आज हम उस स्तर को नहीं पा सके हैं जहाँ तक हमें होना चाहिए था क्योंकि आज भी सरकारी बैंकों में काम करने की संस्कृति विकसित नहीं हो पा रही है. जब पूरी व्यवस्था बैंकों पर ही डालनी है तो उसके लिए आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए आख़िर सरकारों को सालों तक प्रयास करने होंगें क्योंकि ये प्रस्ताव जब फ़्रांस जैसे देश में नहीं लागू हो पाये तो भारत में इनको लागू करने के बारे में केवल भाषणबाज़ी के स्तर पर ही ठीक लग सकता है. भाजपा के पास यदि देश के वर्तमान ढांचे से अच्छा कोई सुझाव है तो उसे देश के बैंकिंग और आर्थिक विशेषज्ञों के सामने रखा जाना चाहिए जिससे सम्भावित कमियों के बारे में सोचा जा सके और देश के लिए कोई बेहतर व्यवस्था बनायीं जा सके.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश को आज भी एक बेहतर कर ढांचे की आवश्यकता है पर जिस तरह से सभी करों को समाप्त करने की बात की जा रही है उस स्थिति में बिना बैंको की मदद से होने वाले वित्तीय व्यापार को किस तरह से इस नए सिस्टम में लाया जायेगा यह अभी बहुत दूर की कौड़ी ही लगती है. बेशक उद्योग जगत और जनता देश के दोहरे कर प्रस्तावों से बहुत परेशान है पर जिस तरह से उसको व्यापक विचार विमर्श के बाद सुधारे जाने की कोशिशें की जाई चाहिए आज भी उस पर कोई ठोस प्रगति नहीं हो पा रही है और केवल आयकर के मामले में कुछ प्रयासों के द्वारा तेज़ी अवश्य आ पायी है पर जब तक कर ढांचा ऐसा नहीं होगा कि हर व्यक्ति आसानी से उसमें अपने को सहज महसूस कर सके तब तक किसी भी परिस्थिति में कर चोरी को नहीं रोका जा सकेगा. यह पूरा प्रस्ताव कोई जादू की छड़ी लेकर सामने नहीं आने वाला है क्योंकि जब तक बैंक और उनमें तैनात कर्मचारियों की संख्या और दक्षता को उतना नहीं बढ़ाया जाता है जितना पूरे देश के नए ढांचे को चाहिए तब तक आख़िर कैसे यह सम्भव हो सकता है.
कर सुधार पर आज देश को किसी एक सोच के साथ आगे बढ़ने के स्थान पर देश की ज़रूरतों के अनुसार आगे बढ़ने की अधिक आवश्यकता है क्योंकि आज के सिस्टम में जो भी कमियां दिखायी देती हैं पहले उन पर सुधारात्मक प्रयास किये जाने चाहिए और हर तरह के कर चोरों पर नज़र रखने का तंत्र भी विकसित किया जाना चाहिए. नि:संदेह पिछले एक दशक में देश के बैंकिंग सेक्टर निजी बैंकों के आने के बाद बड़ा परिवर्तन आया है फिर भी आज हम उस स्तर को नहीं पा सके हैं जहाँ तक हमें होना चाहिए था क्योंकि आज भी सरकारी बैंकों में काम करने की संस्कृति विकसित नहीं हो पा रही है. जब पूरी व्यवस्था बैंकों पर ही डालनी है तो उसके लिए आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए आख़िर सरकारों को सालों तक प्रयास करने होंगें क्योंकि ये प्रस्ताव जब फ़्रांस जैसे देश में नहीं लागू हो पाये तो भारत में इनको लागू करने के बारे में केवल भाषणबाज़ी के स्तर पर ही ठीक लग सकता है. भाजपा के पास यदि देश के वर्तमान ढांचे से अच्छा कोई सुझाव है तो उसे देश के बैंकिंग और आर्थिक विशेषज्ञों के सामने रखा जाना चाहिए जिससे सम्भावित कमियों के बारे में सोचा जा सके और देश के लिए कोई बेहतर व्यवस्था बनायीं जा सके.
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