मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 8 जनवरी 2014

दंगा पीड़ित और आतंकी

                                         कुछ महीने पहले जब कॉंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में यह कह कर सबको चौंका दिया था कि पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी भारत में अपने संपर्कों के माध्यम से मुज़फ्फरनगर के दंगा पीड़ितों तक घुसपैठ करने में लगी हुई है तब उस बात पर बहुत बवाल हुआ था पर पाकिस्तान के ऐसे आतंकी इतिहास और धर्म के नाम पर नफरत फ़ैलाने के मंसूबों के बारे में जानते हुए भी कई लोगों ने राहुल के इस बयान पर राजनैतिक हमले किये और उनसे कई तरह के सवाल भी किये. यह सही है कि यदि राहुल को कहीं से कोई ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी तो उन्हें देश के कानून और परिस्थितियों को देखते हुए इस बारे में गृह मंत्री और गृह मंत्रालय से पूछना चाहिए था क्योंकि वे सत्ताधारी दल के उपाध्यक्ष होने के साथ ही एक सांसद भी हैं तो उनकी इस तरह की मांग का समुचित प्रभाव भी पड़ता पर अब जिस तरह से इन अशांत क्षेत्रों में लश्कर की असफल उपस्थिति ने और उसके मेवात कनेक्शन दिल्ली पुलिस द्वारा सामने लाये गए हैं उससे यही लगता है कि सरकार के तौर पर सपा पूरी तरह से फेल ही हो गयी है.
                                         सपा द्वारा जिस तरह से मुसलमानों की समर्थक पार्टी होने का राग गाया जाता है इन दंगों ने उसकी उस छवि को तार तार कर दिया है क्योंकि जब कानून के अनुसार निष्पक्ष कार्यवाही करने का समय था तो सपा के स्थानीय नेताओं के दबाव ने कानून की जिस तरह से धज्जियाँ उड़ायीं उसने ही पूरे क्षेत्र में विद्वेष की आग भड़का दी. यदि वहाँ पर प्रभावी अधिकारियों द्वारा समय रहते कानून का अनुपालन किया जाता और ग़लत राजनैतिक दबाव को न माना जाता तो सम्भवतः परिस्थितियां कुछ बदली हुई भी हो सकती थीं. जब देश के ख़ुफ़िया तंत्र और यूपी एटीएस को भी यह पता है कि इस तरह की किसी भी विषम परिस्थितियों में पाक प्रभावित इलाकों में अपनी नज़रें गड़ा देता है तो फिर उनके सोते रहने का क्या मतलब बनता था ? दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से पूरे मामले का खुलासा किया है उसमें केवल एक बात ही संतोषजनक दिखती है कि स्थानीय युवकों ने लश्कर के मंसूबों को पूरा करने के लिए उनके साथ खड़े होने से इंकार कर दिया है फिर भी देश को अभी युवाओं और खासकर मुस्लिम युवकों पर पूरा विश्वास करने और उन्हें देश के निर्माण में लगाने के बारे में सोचना चाहिए.
                                         जिन लड़कों ने लश्कर के जाल में फंसने से पूरी तरह मना कर दिया और अब वे दिल्ली पुलिस की जांच के चलते संदेह के घेरे में हैं उनकी पहचान भी इस तरह से सार्वजनिक करने का कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि अब उन पर और उनके परिवारों पर लश्कर के समर्थकों के दुसरे तरह के खतरे भी मंडरा सकते हैं. देश की घटिया राजनीति को देखते हुए जिस तरह से दिल्ली पुलिस ने पूरे मामले को सबके सामने लाने की कोशिश की वह तो ठीक है पर यह कोई सामान्य केस नहीं है और इन लड़कों को देश का कानून तो छोड़ देगा पर लश्कर के स्लीपिंग मॉड्यूल से इन्हें कैसे बचाया जायेगा ? जब पूरी दुनिया में कुछ प्रभावी इस्लामी आतंकी संगठन इस तरह की गतिविधियों में लगे हुए हैं तो भी इन युवा भारतीय मुसलमानों ने जिस तरह से भय या मज़बूती से लश्कर से किनारा किया वह उल्लेखनीय हैं और अब देश की ज़िम्मेदारी बनती है कि कहीं पर भी ऐसा माहौल न बने जिसका पाक या उसके आतंकी संगठन लाभ उठा पाएं. देश के युवाओं में यदि सुरक्षा की भावना का स्तर बढ़ाया जा सके तो यह देश और युवाओं के लिए ही अच्छा होगा.    
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