ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश राजनीति और उससे इतर बहुत सारे मामलों को भी अपने और समाज के नज़रिये से पार्टी लाइन और सरकारी नज़रिये से अलग हटकर देखने के कारण पहले भी कई बार विवादों में आ चुके हैं अब उन्होंने जिस तरह से वीआईपी कल्चर का दिल्ली में विरोध किया है वह उनके जानने वालों के लिए नया नहीं है पर जो लोग उनके बारे में कम ही जानते हैं उन्हें यह आप का प्रभाव अधिक और जयराम की शैली कम ही लगेगी क्योंकि आज के समय में परिवर्तनों को जिस तरह से आप द्वारा प्रचारित किया जा रहा है वैसा रमेश ने कभी भी नहीं किया. बहुत सारे मसलों पर उनकी राय सदैव ही सरकारी और पार्टी की लाइन से बहुत अलग हुआ करती है और वे उस राय को कभी भी सार्वजनिक करने नहीं चूकते हैं और विवादों में घिरते रहते हैं. सुरक्षा के मामले में यह सही है कि देश के संवैधानिक पदों या सेना और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोगों के लिए जिस बड़े स्तर पर सुरक्षा इंतज़ाम किये जाते हैं यदि थोडा सा भी प्रयास किया जाये तो उसमें कटौती की जा सकती है.
दिल्ली ही क्यों देश के राज्यों की राजधानियों में वीआईपी क्षेत्रों के पास रहने वाले लोगों के लिए सुगम यातायात एक सपने जैसा ही है क्योंकि वहाँ पर कभी भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के आवागमन के लिए यातायात रोका जाना एक सामान्य सी घटना होती है पर उससे आम लोगों को रोज़ ही परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है. यदि इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष उपाय किये जाएँ और यातायात को कम समय के लिए ही रोका जाये तो उससे आम लोगों की परेशानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है पर आज जिस तरह से नेताओं को भारी काफिला लेकर चलने का शौक है उस परिस्थिति में जनता की अनदेखी अपने आप ही हो जाया करती है फिर भी कोई कुछ भी नहीं कर सकता है. जिन लोगों पर पदों पर बैठे होने के कारण ही ख़तरे होते हैं उनकी समुचित सुरक्षा की जानी चाहिए पर इस सुरक्षा को ऐसा भी बनाया जाना आवश्यक है कि उस स्थिति में आम लोगों की समस्याओं को और भी कम किया जा सके.
राष्ट्रपति, प्रधानंमंत्री, सेना से जुड़े बड़े अधिकारी और मंत्रियों को केवल पदों पर होने के कारण ही ख़तरा होता है फिर भी यदि देश के रक्षा मंत्री बिना सुरक्षा ताम झाम के चल सकते हैं तो अन्य क्यों नहीं ? केवल आवश्यक सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे बढ़ते वीआईपी कल्चर पर कहीं से तो लगाम लगायी जा सके और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके. देश में आज भी जयराम रमेश, एके एंटोनी जैसे बहुत सारे नेता हैं पर उनकी बात को अनसुना कर देने वालों की संख्या आज अधिक है जिससे ये परिवर्तन कहीं से भी दिखायी नहीं देते हैं. देश की जनता भी नेताओं को सुरक्षित चाहती है पर उसके लिए इस तरह से क्या आम लोगों के आवागमन पर रोक लगाना आवश्यक है ? आने वाले समय में जनता के बढ़ते दबाव में नेताओं की सुरक्षा का दिखावा कम होने की आशा भी बढ़ गयी है क्योंकि नेताओं के साथ सुरक्षा एजेंसियों को भी अब यह बात समझ में आने लगी है कि वास्तविक सुरक्षा में अब आमूल चूल परिवर्तन समय की मांग होने वाली है और समय रहते यदि इसका कोई उपाय खोज लिया जाये तो आम लोगों की समस्याओं को वास्तव में कम किया जा सकता है..
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
दिल्ली ही क्यों देश के राज्यों की राजधानियों में वीआईपी क्षेत्रों के पास रहने वाले लोगों के लिए सुगम यातायात एक सपने जैसा ही है क्योंकि वहाँ पर कभी भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के आवागमन के लिए यातायात रोका जाना एक सामान्य सी घटना होती है पर उससे आम लोगों को रोज़ ही परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है. यदि इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष उपाय किये जाएँ और यातायात को कम समय के लिए ही रोका जाये तो उससे आम लोगों की परेशानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है पर आज जिस तरह से नेताओं को भारी काफिला लेकर चलने का शौक है उस परिस्थिति में जनता की अनदेखी अपने आप ही हो जाया करती है फिर भी कोई कुछ भी नहीं कर सकता है. जिन लोगों पर पदों पर बैठे होने के कारण ही ख़तरे होते हैं उनकी समुचित सुरक्षा की जानी चाहिए पर इस सुरक्षा को ऐसा भी बनाया जाना आवश्यक है कि उस स्थिति में आम लोगों की समस्याओं को और भी कम किया जा सके.
राष्ट्रपति, प्रधानंमंत्री, सेना से जुड़े बड़े अधिकारी और मंत्रियों को केवल पदों पर होने के कारण ही ख़तरा होता है फिर भी यदि देश के रक्षा मंत्री बिना सुरक्षा ताम झाम के चल सकते हैं तो अन्य क्यों नहीं ? केवल आवश्यक सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे बढ़ते वीआईपी कल्चर पर कहीं से तो लगाम लगायी जा सके और महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके. देश में आज भी जयराम रमेश, एके एंटोनी जैसे बहुत सारे नेता हैं पर उनकी बात को अनसुना कर देने वालों की संख्या आज अधिक है जिससे ये परिवर्तन कहीं से भी दिखायी नहीं देते हैं. देश की जनता भी नेताओं को सुरक्षित चाहती है पर उसके लिए इस तरह से क्या आम लोगों के आवागमन पर रोक लगाना आवश्यक है ? आने वाले समय में जनता के बढ़ते दबाव में नेताओं की सुरक्षा का दिखावा कम होने की आशा भी बढ़ गयी है क्योंकि नेताओं के साथ सुरक्षा एजेंसियों को भी अब यह बात समझ में आने लगी है कि वास्तविक सुरक्षा में अब आमूल चूल परिवर्तन समय की मांग होने वाली है और समय रहते यदि इसका कोई उपाय खोज लिया जाये तो आम लोगों की समस्याओं को वास्तव में कम किया जा सकता है..
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