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सोमवार, 26 मई 2014

यूपी में बिजली की राजनीति

                                                                   हर साल की तरह इस साल भी यूपी में बिजली का वही पुराना रोना शुरू हो चुका है जिससे आम नागरिकों को गर्मी के इस मौसम में भी पिछले सालों की तरह पसीना बहाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. यूपी की बड़ी आबादी और उत्पादन क्षेत्र में लगातार पिछड़ने के बाद भी जिस तरह से किसी भी सरकार द्वारा प्राथमिकता के आधार पर इस क्षेत्र में सुधारात्मक कदम उठाये जाने से परहेज़ किया जाता रहता है उसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि आज भी यूपी की वास्तविक मांग २५००० मेगावाट से कम नहीं है जबकि केवल आंकड़ों बाज़ीगरी करके हर सरकार इसे पहले से सुधरा हुआ बताने में नहीं चूकती है. आज इस गर्मी में देश के सबसे घनी आबादी वाले राज्य में पिछले दो दशकों में राज करने वाले दलों के पास कोई व्यापक सोच या तो है ही नहीं या फिर वे केवल अपने अपने नेताओं के क्षेत्र में ही बिजली आपूर्ति करने तक के कदम उठाने तक ही सीमित रह जाती है और पूरे प्रदेश में इसी तरह की स्थिति बनी रहती है.
                                                           यूपी में बिजली संबधी नीतियों के निर्धारण में सपा, बसपा और भाजपा पिछले २५ वर्षों में पूरी तरह से फेल हो गयी हैं क्योंकि यहाँ पर इन दलों की सरकारों ने कुछ भी अपने दम पर करने का प्रयास ही नहीं किया और राजनाथ सिंह के समय में जिस तरह तत्कालीन बिजली बोर्ड के बिजलीघरों को उधारी चुकता न कर पाने के बाद केंद्रीय सेक्टर के उत्पादकों को सौंप दिया गया वैसा उदाहरण कहीं और नहीं मिल सकता है क्योंकि तब केंद्र में भी भाजपा ही सरकार चला रही थी. मनमोहन सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत जितने धन का आवटन आपूर्ति से जुड़े तंत्र को सुधारने के लिए दिया पहले बसपा और अब सपा की सरकारों ने उसका सही तरह से उपयोग ही नहीं किया और आज भी बिजली उपलब्ध होने पर भी लोड के कारण स्थानीय कटौतियां होना यूपी में एक आम बात है. विकास के नाम पर लम्बी चौड़ी बातें करने वाले दल क्या इस सम्बन्ध में कड़े नियमों के साथ सामने नहीं आ सकते हैं ?
                                                            अब जब वाराणसी और आजमगढ़ में बिजली एक राजनैतिक मुद्दा बनने जा रही है तो सपा को भी इस तरह की बिजली की राजनीति से बचना ही होगा क्योंकि यदि केंद्र में जीत से उत्साहित भाजपा कार्यकर्ताओं ने पूरे प्रदेश में धरना प्रदर्शन करने की कोई शुरुवात कर दी तो उसे जनता का सहयोग अपने आप ही मिल जाने वाला है और सपा की एक और बड़ी चूक भी सामने आने वाली है. बेहतर होगा कि राजनैतिक रूप से शक्तिशाली क्षेत्रों के लिए अधिक बिजली आवंटित किये जाने के लिए ऊर्जा दरों में कुछ सरचार्ज भी लिया जाये और आपूर्ति के निर्धारित घंटों के अनुसार बिजली की आपूर्ति भी की जाये. आज लखनऊ और तहसील मुख्यालयों में बिजली के रेट एक समान हैं जिससे उपभोक्ताओं के साथ दोहरे व्यवहार की स्थिति सामने आ जाती है. राजनैतिक रूप से जब भी बिजली सुधर पायेगी तब तक काफी समय लगने वाला है क्योंकि केंद्रीय सेक्टर में बिजली तो है पर लम्बी उधारी के चलते यूपी को बिजली नहीं मिल पाती है. अब जब तक सही प्रयासों के परिणाम सामने नहीं आते हैं तब तक सरकार को उपभोक्ताओं को अपने घरों में सौर पैनल लगाने के लिए बेहतर नीति बनानी चाहिए और जिन घरों में इसकी स्थापना हो उसे एक नियम बनाकर बिजली में छूट भी देने का प्रबंध भी करना चाहिए.      
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