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गुरुवार, 3 जुलाई 2014

दहेज़ हत्या कानून और दुरूपयोग

                                                         सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बार फिर से दहेज़ हत्या कानून के दुरूपयोग पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस कानून को महिलाओं की स्थिति को समाज में बेहतर बनाने के लिए लाया गया था पर आज इसका बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया जा रहा है और अधिकांश मामलों में जिस तरह से कानून को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है उससे समाज में इस कानून के बारे में अच्छी राय नहीं बन रही है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी आवश्यकता होने पर ही गिरफ़्तारी करने की बात कही थी पर इस मामले में मृतक महिला के पति के परिवार पर दबाव बनाने के लिए जिस तरह से पुलिस रिपोर्ट में लिखाये गए सभी लोगों को हिरासत में ले लेती है उसका आज कोई मतलब भी नहीं है. अधिकतर मामलों में इस कानून के दुरूपयोग की स्थिति इस बात से ही लगायी जा सकती है कि केवल १५% मामलों में ही आरोपियों को सजा हो पाती है और बाकि लोग निर्दोष साबित हो जाते हैं.
                                               कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह भी कहा है कि इस तरह के मामलों में गिरफ़्तारी आवश्यक भी नहीं है क्योंकि यदि नामित व्यक्तियों द्वारा जांच को प्रभावित करने की संभावनाएं सामने आ रही हों तभी उनकी गिरफ़्तारी को आवश्यक माना जाना चाहिए जिससे पूरे प्रकरण में मानवीय पहलू को भी सामने लाया जा सके. कानून में पुलिस को मिली असीमित छूट के बाद जिस तरह से खेल शुरू हो जाता है उसको रोकने की आज बहुत आवश्यकता भी है क्योंकि पुलिस अपने स्तर से आरोपियों को परेशान करने लगती है और कुछ लेनदेन करने के लिए भी दबाव बनाया जाने लगता है. अभी तक ऐसा देखने में आता है कि बिना आयु और सामाजिक रिश्तों का ध्यान रखे हुए ही इस तरह के मामलों में लड़के पक्ष के अधिकांश लोगों के नाम लिखा दिए जाते हैं और पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कोशिशें भी शुरू कर देती है जिससे पूरे परिवार और यहाँ तक कि विवाहित लड़कियों और विदेशों या दूसरे शहरों में रह रहे लोगों को भी आरोपी बना दिया जाता है.
                                             कोर्ट की इस चिंता पर अब सरकार को इस कानून में आवश्यक संशोधन करने के बारे में विचार करना ही होगा वर्ना कोर्ट द्वारा ही कोई दिशा निर्देश जारी कर पुलिस द्वारा आरोपियों को हिरासत में लिए जाने की प्रक्रिया पर रोक लगाने के बारे में कहा जा सकता है. कोर्ट का यह रुख सही है कि जब तक आरोपी इतने प्रभावशाली न हों कि वे जांच को बदलवाने की स्थिति में हों तक तक आरोपियों को हरासत में लिए जाने के स्थान पर उनके खिलाफ मुक़दमा दर्ज़ कर मामले की त्वरित सुनवाई की जानी चाहिए. समाज में जिस तरह से इस कानून के दुरूपयोग की बातें सबके सामने हैं तो उस स्थिति में समाज को भी कानून के सही स्वरुप को समझना ही होगा जिससे महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए लाए गए इस कानून के माध्यम से वास्तविक पीड़ितों की सहायता की जा सके और दोषियों को सज़ा भी दिलवाई जा सके. आज के परिवेश में समाज के प्रभावित परिवारों के साथ पुलिस को जिस तरह से ज़िम्मेदार होना चाहिए यदि वही संस्कृति विकसित हो जाये तो समाज के लिए अभिशाप बने इस कानून के दुरूपयोग को रोका भी जा सकता है.   
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