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सोमवार, 29 सितंबर 2014

प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू

                                                        देश में चल रहे न्यायिक संशोधन प्रस्तावों के बीच नए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हंडियाला लक्ष्मीनारायणस्वामी दत्तू ने इस पद को संभाल लिया है जो कि आने वाले समय में देश में न्यायिक सुविधाओं और सुधारों पर किये जाने वाले किसी भी बड़े परिवर्तन के साक्षी भी बनने वाले हैं. निवर्तमान सीजेआई न्यायमूर्ति लोढ़ा ने जिस तरह से जजों की नियुक्ति के लिए चली आ रही कोलेजियम व्यवस्था को देश सर्वोत्तम बताया था अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस बारे में नए सीजेआई का क्या रुख है पर कोई भी व्यक्ति अपनी संस्थाओं में दूसरी लोकतान्त्रिक संस्थाओं का अनावश्यक हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करता है जिसके चलते यह भी संभव है कि जस्टिस दत्तू भी जस्टिस लोढ़ा की तरह के विचार ही रखते हों. जिस तरह से संसद ने नए कानून को मंज़ूरी दे दी है तो उस स्थिति में अब यह सब कुछ वर्तमान न्याय तंत्र और उसमें बैठे हुए लोगों पर ही निर्भर रहने वाला है कि उनकी सरकार के साथ कैसे निभती है.
                                              ३ दिसंबर १९५० को कर्नाटक के बेल्लारी में जन्मे जस्टिस दत्तू ने १९७५ में वकील के तौर पर अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी उसके बाद से उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा. १९८३ से १९९० तक वे कई महत्वपूर्ण मामलों में कर्नाटक सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए और उसके बाद उनका कार्यकाल सरकारी वकील के तौर पर रहा. १८ दिसंबर १९९५ में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया और वे सात वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये गए. इसके बाद उन्होंने केरल हाई कोर्ट में भी मुख्य न्यायाधीश के पद को संभाला. २००८ से वे सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रोन्नति पाने के बाद से यहीं पर काम कर रहे थे. उनके स्वभाव और काम करने के तरीके को जानने वाले उन्हें कुशल जज मानते हैं और उनकी विषय पर जानकारी के कारण ही उनके सामने आने वाले मुकदमों में सभी को भरपूर तैयारी भी करनी पड़ती है.
                                               देश में कई बार लोकतंत्र के स्थापित स्तम्भों के बीच मुद्दों को लेकर मतभेद रहा करते हैं और आज जब जजों कि नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया ही बदलाव के अंतर्गत आ चुकी है तो उस परिस्थिति में सरकार के साथ जस्टिस दत्तू का कैसा संतुलन रहने वाला है यह भी देखने का विषय होगा क्योंकि अभी तक जिस तरह से जजों की नियुक्ति पूरी तरह से वरिष्ठता के आधार पर जजों के कोलेजियम के पास हुआ करती थी अब उसमें राजनैतिक दखलंदाज़ी के और भी अधिक बढ़ने की संभावनाएं सामने दिखाई दे रही हैं. पीएम के काम करने का अभी तक जो तरीका रहा है यदि वे जजों की नियुक्ति में भी उस पर चलने की कोशिश करेंगें तो इस मुद्दे पर इन दोनों संस्थाओं में टकराव निश्चित है पर यदि दोनों पक्षों द्वारा अपनी सीमाओं का ध्यान रखा गया तो आने वाले समय में पूरी व्यवस्था को और बेहतर भी किया जा सकता है. इस तरह की व्यवस्थाजन्य समस्या होने के कारण भविष्य में एक अखिल भारतीय स्तर की न्यायिक परीक्षा का आयोजन भी किया जाना चाहिए जिससे जजों का एक पूरा संवर्ग भी बनाया जा सके और उसे अन्य अखिल भारतीय सेवाओं की तरह सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में ही संचालित किया जाये.       
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