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रविवार, 28 सितंबर 2014

भ्रष्टाचार - जयललिता और कानून

                                                   देश के शीर्ष नेताओं द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार के मामलों में जिस तरह से कानून की गति इतनी कम रहा करती है उससे लोगो का कानून पर से विश्वास कहीं न कहीं से कमज़ोर तो अवश्य ही होता है फिर भी उनके मन में इस बात का विश्वास भी बना रहता है कि आज की परिस्थिति में कोर्ट ही देश के नेताओं को सही राह दिखा सकता है. ताज़ा मामले में जिस तरह से जयललिता के १८ साल पुराने आय ऎसे अधिक संपत्ति बनाये जाने के मामले में अपना निर्णय सुनते हुए कोर्ट ने उन्हें ४ साल की सजा और १०० करोड़ का जुर्माना भी लगा दिया है उससे भारतीय कानून की कमज़ोरियों के साथ मज़बूती का भी पता चलता है. भारत का संविधान सभी को बराबरी के अवसर देने की भावना के साथ बनाया गया है और हमारा मूल सिद्धांत यह भी है कि भले ही कोई दोषी छूट जाये पर किसी निर्दोष को किसी भी तरह की सजा नहीं होनी चाहिए जिससे भी कानून के इस स्वरुप का लगातार दुरूपयोग किया जाता रहता है.
                                                  वतर्मान में देश भर में राज्य स्तरीय नेताओं के साथ केंद्रीय स्तर पर भी राजनीति में सक्रिय नेताओं की सूची बहुत लम्बी है जिनके विरुद्ध विभिन्न तरह के आरोपों के अंतर्गत मुक़दमे चलाये जा रहे हैं पर राज्य और केंद्र की बदलती हुई परिस्थितियों के बीच जिस तरह से नेताओं को लगभग हर दल से काम पड़ता रहता है तो उस स्थिति में कोई भी सरकार किसी भी नेता के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने से बचना ही चाहती है जिसके चलते ही मुक़दमों कि सुनवाई बहुत ही कम गति से चलती है और इस तरह से न्याय मिलने में बहुत लम्बा समय लग जाता है. फिर भी देश के लिए संतोष का विषय यही है कि कानून की नज़रों में सभी बराबर हैं और अभियोग पक्ष यदि मामले की गंभीरता को समझे और आरोपों को सही सबूतों के साथ लगाये तो ऐसा कोई भी व्यक्ति कानून से नहीं बच सकता है पर राजनैतिक कारणों से कई बार अभियोजन पक्ष भी अपनी ज़िम्मेदारी को ठीक तरह से नहीं निभा पाता है.
                                                 पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से राष्ट्रकुल खेलों, २ जी घोटाले और अब जया मामले में कानून ने अपनी सर्वोच्चता सिद्ध की है उसके बाद कानून को मज़ाक में लेने वालों के लिए बहुत बड़ी समस्या होने वाली है. देश के शीर्ष स्तर पर राजनीति करने वालों को अभी तक यही लगता था कि वे जो कुछ भी करना चाहेंगें आसानी से करते रहेंगें और उनके विरुद्ध कोई भी आवाज़ नहीं उठा पायेगा अब सूचना के अधिकार और अन्य कानूनों के चलते वह स्थिति पलट गयी है और इन लोगों पर पूरा दबाव आ गया है कि वे भी संभल कर काम करें और केवल अपनी झोली भरने के स्थान पर देश और समाज के हितों को प्राथमिकता देने की तरफ बढ़ें. कानून और अभियोजन के पक्ष को नेताओं के मामले में और भी सख्त होने की आवश्यकता है क्योंकि जिन लोगों का प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है यदि वे ही बिना किसी ठोस कारण के कानून से छूट पाते रहेंगें तो आने वाले समय में कानून की जड़ें कमज़ोर होने से कोई नहीं रोक सकता है पर कोर्टों की सक्रियता के साथ काम करने की इस भावना के बाद अब भ्रष्टाचारियों के मन में डर तो अवश्य ही पैदा होने वाला है.     
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