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गुरुवार, 4 सितंबर 2014

सीबीआई निदेशक और मुलाकाती

                                                                                     अपने १५ महीनों के कार्यकाल में विभिन्न मुद्दों पर आरोपों का सामना कर रहे लोगों से मिलने के कारण ही सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा एक नए तरह के विवाद में फँस गए हैं और ऐसा लगता है कि आने वाले समय में उनको पद से हटाया भी जा सकता है. उनके निवास पर रखी आगंतुक पुस्तिका में जिस तरह से ५० ऐसे लोगों के आने जाने का विवरण शामिल है जो किसी विचारधीन मुक़दमे में शमिल थे और सीबीआई उनके खिलाफ जांच भी कर रही है. इन मुलाकातियों में सपा प्रमुख मुलायम सिंह, सपा महासचिव रामगोपाल यादव, उद्योगपति अनिल अम्बानी और चर्चित मांस व्यापारी मोईन अख्तर कुरैशी के नाम शामिल हैं. २ जी मामले की जांच भी सीबीआई के द्वारा ही की जा रही है तो उस परिस्थिति में अनिल अम्बानी से मिलने को सामान्य मुलाक़ात भी नहीं माना जा सकता है और साथ ही आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम सिंह के खिलाफ भी आरोपों की जांच चलते समय उनका इस तरह से इतनी बार आना जाना संदेह तो उत्पन्न करता ही है.
                                               यह सही है कि रंजीत सिन्हा की छवि एक कड़े प्रशासक के रूप में रही है और जब उनकी नियुक्ति की जा रही थी तब नेता प्रतिपक्ष के रूप में आज की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपनी असहमति दिखाई थी और उसके बाद भी सरकार ने रंजीत सिन्हा की नियुक्ति कर दी थी. अपने कार्यकाल के शुरुवाती दौर में ही रेलवे का मामला खोलकर उन्होंने यह दर्शा भी दिया था कि वे किसी के उपकार को चुकता करने में नहीं बल्कि देश के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विश्वास रखते हैं जिससे तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल को उनके भांजे के एक डील में शामिल होने के कारण अपने पद से इस्तीफ़ा भी देना पड़ गया था. रंजीत सिन्हा के पास उनसे मिलने आने वालों से मना करने के क्या विकल्प उपलब्ध हैं इस पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि क्या ऐसा कोई नियम है जिसके तहत वे देश के शीर्ष उद्योगपति या किसी सांसद से मिलने से मिलने से मना कर सकते हैं कि उनके खिलाफ मामला विचाराधीन है ?
                                               पिछली लोकसभा में जिस तरह से भाजपा को रंजीत सिन्हा से दिक्कत थी तो क्या अब भी मोदी और शाह की भाजपा को उनसे उतनी ही दिक्कत महसूस हो रही है यह तो आने वाले समय में ही पता चल पायेगा क्योंकि यदि इन मुलाकातों के बाद मुक़दमों की सुनवाई में कोई नए मोड़ आये हैं तो सिन्हा पर संदेह अवश्य ही बनता है पर यदि से सामान्य मुलाकातें ही थीं तो इन पर सरकार किस तरह का रुख अपनाती है यह आने वाले समय में ही पता चल पायेगा. वैसे अभी तक मोदी सरकार ने केंद्रीय स्तर पर अनावश्यक रूप से तबादलों को प्राथमिकता न देते हुए काम करने को एक पैमाने के रूप में आगे बढ़ाया है तो उससे यही लगता है कि संभवतः रंजीत सिन्हा अपने पद पर बने रहने वाले हैं क्योंकि अभी तक उनके कार्यकाल में सीबीआई या सीधे उन पर कोई आरोप नहीं लगाया है जिसके परिणाम स्वरुप सरकार उन्हें कुछ दंड देने के बारे में सोचना शुरू कर दें. सिन्हा का कामकाज अच्छा रहा है फिर भी यदि उनकी इन मुलाकातों में सरकार को कुछ भी असामान्य लगता है तो उन्हें इस महत्वपूर्ण पद पर बनाये रखने का कई अर्थ भी नहीं रह जाता है. सीबीआई निदेशक और मुलाकाती         
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