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मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

कर चोरी का काला धन

                                                                      काले धन के मामले में देश में सरकार की स्थिति आज कुछ इस तरह की हो गयी है कि चाहते हुए भी वह सब कुछ अपने मन का नहीं कर पा रही है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन में उसकी भी उतनी ही जवाबदेही बनती है जितनी किसी अन्य सरकार की. चुनावों के समय काले धन को जिस तरह से बड़ा मुद्दा बनाते हुए भाजपा और मोदी ने सीधे तौर पर कांग्रेस पर हमला बोला था आज कानूनी बाध्यताओं के चलते उसके पास भी कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं है और अब वह भी उसी तरह की दलीलों के साथ कोर्ट और जनता की नज़रों में अपराधी नज़र आ रही है. क्या ऐसा हो सकता है कि भाजपा को इस बात का पता ही न हो कि देश ने किस तरह की अंतर्राष्ट्रीय संधियों के माध्यम से दोहरे कराधान को रोकने के लिए सहमति दे रखी है और आज काबिल वकील और अब देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली जिस स्तर पर कानून की बाध्यता की बातें कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि यह केवल दिखावा मात्र ही है.
                                                                       विदेशी बैंकों में पैसे जमा कराने वाले सभी लोगों को दोषी मानने वाली भाजपा को अब उनके बचाव में बातें करते हुए देखकर अजीब सा ही लगता है क्योंकि एक समय उसका सार्वजनिक रूप से यह मानना था कि जिन लोगों के खाते विदेशों में हैं वे सब कर चोरी में लगे हुए हैं और आज वह कोर्ट के सामने इस बात की अपील कर रही है कि उसे सभी खाताधारकों के नाम सार्वजनिक किये जाने के आदेश में कुछ छूट दी जाये ? सरकार ने जिन तीन नामों के बारे में बताया है उसमें से दो ने तो साफ़ तौर पर अपने खाते के बारे में अनभिज्ञता ज़ाहिर कर दी है जबकि टिंबलो ने ही यह कहा है कि सरकार के हलफनामे को देखने के बाद ही उनकी तरफ से कुछ कहा जायेगा. अब १४०० कथित नामों की लम्बी लिस्ट में से सरकार को केवल ३ लोग ही ऐसे मिले हैं जो जांच के दायरे में है तो उसे इस बारे में स्थिति को और भी स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि जब तक सरकार की तरफ से सही बातें नहीं बताई जाएँगी तब तक जनता के सामने सच नहीं आ पायेगा.
                                                     पिछली केंद्र सरकार पर काले धन वालों के बचाव के गंभीर आरोप लगाने वाली भाजपा की वर्तमान सरकार भी केवल इसी तरह से काम करने में लगी हुई है जबकि कोर्ट में उसने खुद स्वीकार कर लिया हैं कि सन्धियां होने के बाद से इस मामले में जाँचें करवाने में २००९ से ही महत्वपूर्ण प्रगति होनी शुरू हो चुकी थी. सरकार के सामने स्थिति को कानून और संधियों के साथ कोर्ट के सामने रखने की चुनौती होती है और इस स्थिति में विपक्ष में बैठकर अनर्गल बातें करना बहुत आसान होता है और आज भाजपा के लिए वही बयान गले की हड्डी बने हुए हैं जिनको लेकर वह मनमोहन सरकार पर हमलावर हुआ करती थी ? क्या भारतीय राजनीति में अभी भी उतनी परिपक्वता नहीं आ पायी है जितनी आने चाहिए थी क्योंकि भाजपा जैसा दल जब आधारविहीन बयान देने में लग जाता है तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसका क्या सन्देश देश की तरफ से भेजा जा सकता है ? अब इस मामले में सरकार को और प्रतिपक्ष के साथ कोर्ट को भी संयम से काम लेना चाहिए तथा जांचों में सभी पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए जिससे इस दिशा में चल रही महत्वपूर्ण प्रगति को आगे बढ़ाया जा सके.    
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