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बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

भावी महाराष्ट्र सरकार की पहली पारी

                                                                  मई में केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद महाराष्ट्र में भी जिस तरह से सत्ता का परिवर्तन हुआ है वह कई मायनों में राज्य के लिए जितना महत्वपूर्ण है उसके साथ वह उतना ही चुनौती भरा भी होने वाला है. मोदी के करीबी और किसी भी तरह के विवादों से अब तक दूर रहे देवेन्द्र फडणवीस जिस तरह से भावी सीएम के रूप में नामित किये ज चुके हैं उसके बाद यह तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति में अब बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है. अभी तक पूरे देश में जिस तरह से भाजपा केवल शहरों की पार्टी ही रही है तो उसके लिए यही स्थिति महाराष्ट्र में भी है पर देश के अन्य भागों की अपेक्षा महाराष्ट्र में सहकारी चीनी मिल समूहों के साथ शिक्षा संस्थानों में जिस तरह से कांग्रेस और एनसीपी का वर्चस्व है उसे देखते हुए इन दोनों पार्टियों को कमज़ोर नहीं माना जा सकता है. भले ही राजनैतिक रूप से ये दोनों पार्टियां इस बार के चुनाव में स्थानीय कारणों से मैदान नहीं मार पायी हैं पर ये आंकड़ों में कमज़ोर दिखने वाली सरकार के लिए समस्याएं खडी करने में कोई कसर नहीं रखने वाली हैं.
                                                               महाराष्ट्र में बनने वाली नयी सरकार में जिस तरह से सरकार चलाने में अनुभव न होने वाले मंत्रियों को स्थान मिल रहा है उससे केंद्र में बैठे मोदी और शाह का काम ही बढ़ने वाला है जिसको वे भी अच्छी तरह से समझते हैं. राज्य में वोटों के बंटवारे के बाद जिस तरह से भाजपा ने अपने वर्चस्व को बनाया है उसके बाद उसके लिए और भी चुनौतियाँ सामने आने वाली हैं. अन्य राज्यों में जहाँ कांग्रेस का धरातल पर संगठन कमज़ोर है वहीं महाराष्ट्र इसका अपवाद ही है क्योंकि यहाँ शुगर लॉबी और सहकारी आंदोलन के चलते इसकी और एनसीपी की पैठ गांवों तक बहुत अच्छे से है. नयी सरकार को सबसे पहले इन विवादित मुद्दों से जुड़े हुए कामों को ही करना पड़ेगा क्योंकि प्राकृतिक कारणों के चलते जिस तरह से किसान आज पूरे देश में परेशान हैं यह राज्य भी उससे अछूता नहीं है. चुनौतियों के सामने डटकर काम करने से जहाँ सफलता मिलने की सभवनाएं बढ़ती यहीं वहीं आम लोगों का भी भला होता है.
                                                              नयी और अनुभवहीन सरकार बनने से जहाँ एक तरफ जनता के पास आशाओं के नाम पर कुछ ख़ास नहीं होगा वहीं सरकार के लिए भी इन दबावों से बाहर रहकर काम करना आसान ही होगा. जब बड़े परिवर्तन और स्पष्ट जनादेश के साथ सरकार बनती है तो उसके मुखिया के काम काज को सही तरह से आँका जा सकता है पर शिवसेना जैसे उग्र सहयोगी और अवसरवादी एनसीपी के पैंतरों के साथ आखिर सरकार कब तक सामंजस्य बैठा सकेगी यह भी समय ही बता पायेगा. विकास की दौड़ में महाराष्ट्र भी देश के शीर्ष राज्यों से पीछे नहीं है और देश की आर्थिक राजधानी के इस राज्य में होने के कारण इसका पूरे देश पर प्रभाव भी पड़ता रहता है. आतंकियों के लिए मुंबई सदैव से ही मुख्य केंद्र रहा है क्योंकि यहाँ होने वाले किसी भी हमले से वे भारत के आर्थिक परिदृश्य पर असर डालने की कोशिशें किया करते हैं. आतंकियों से निपटने में मुंबई का इतिहास अच्छा ही रहा है तो इस सरकार से भी किसी तरह की नरमी की उम्मीद नहीं की जा सकती है. फिलहाल यही आशा की जा सकती है कि युवा देवेन्द्र फडणवीस राज्य की कमान को अच्छे से संभालें और देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान करने का प्रयास करने में सफल हो सकें.           
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