मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

भीड़ तंत्र में मानव जनित आपदाएं

                                                                          देश में महत्वपूर्ण अवसरों पर इकठ्ठा होने वाले अपार जनसमूह में किस तरह की मानसिकता हावी रहा करती है पटना के गांधी मैदान की दुर्घटना ने एक बार इसे सबके सामने लेकर खड़ा कर दिया है. गांधी मैदान की गिनती देश भर के चुनिंदा बहुत बड़े मैदानों में होती है. वहां पर आने वाले जनसमूह में बिना किसी बड़ी अफवाह के इस तरह की घटना संभव नहीं हो सकती है क्योंकि उसकी क्षमता इतनी अधिक है कि यदि लोग अनुशासन का अनुपालन करते हुए थोड़े से संयम को दिखाने का साहस करें तो इस तरह की किसी भी परिस्थिति में भी जान माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. देश में संकट के समय आज भी दूसरे की छाती पर पैर रखकर सबसे पहले अपनी जान बचाने की मानसिकता के कारण भी इस तरह की घटनाएँ हुआ करती हैं और जिस छोटी सी समस्या को आराम से समाप्त किया जा सकता है वह भी अपने आप में वीभत्स रूप लेकर हमारे सामने आ जाती है.
                                                         पहले तो देश में इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया जाता था कि किस स्तर पर क्या हो रहा है पर प्राकृतिक आपदाओं के समय जिस तरह से आपदा प्रबंधन को अब देश ने प्राथमिकता में ले लिया है और उसके अच्छे परिणाम भी सभी के सामने आ रहे हैं. आपदा प्रबंधन में इस तरह के किसी भी धार्मिक या सामाजिक आयोजन के समय यदि अनुमानित भीड़ के बारे में पहले से ही प्रबंध किये जाएँ और साथ ही इन अवसरों से पहले स्थानीय टीवी, रेडियो और अन्य माध्यमों से भगदड़ मचने या अन्य किसी आपदा में खुद और दूसरों को किस तरह से बचाया जाये यह भी मुख्य रूप से प्रसारित किया जाये तो संभवतः कुछ लोग उस पर अमल करके दुर्घटनाओं की तीव्रता को कम कर सकते हैं. आज जिस तरह से हर स्थान पर भीड़ होती है तो उसको तो किसी भी तरह से कम नहीं किया जा सकता है पर भीड़ को अनियंत्रित होकर अराजक होने से रोकने वाले कारकों पर विचार कर नागरिकों को जागरूक तो किया ही जा सकता है.
                                                           इस तरह के आयोजनों का पूरा भार जिस तरह से सरकारी तंत्र पर डाला जाता है उससे कोई मदद नहीं मिल पाती है क्योंकि किसी भी परिस्थिति में किसी स्थान पर कितने सरकारी अमले को तैनात किया जा सकता है ? यदि संकरी जगह पर पांच हज़ार लोग भी इकट्ठे हों तो उनमें भी भगदड़ की स्थिति में कोई बड़ी मदद नहीं कर सकता है किसी भी बड़े त्यौहार या अन्य अवसर पर सरकार की तरफ से एम्बुलेंस और अस्पतालों में आपात कालीन व्यवस्था को मज़बूत रखा जा सकता है और दुर्घटना की स्थिति में ट्रैफिक पुलिस के माध्यम से अस्पताल तक के मार्ग को पूरी तरह से रोककर एम्बुलेंस आदि के लिए ही खोला जा सकता है. आम नागरिक के रूप में हम सभी की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि आपदा प्रबंधन के हर छोटे बड़े महत्वपूर्ण पहलू के प्रति खुद भी जागरूक बने और अपने बच्चों को भी सिखाएं जिससे इस तरह की किसी भी स्थिति में वे खुद को बचा सकें और दूसरों की मदद भी कर सकें. हर काम के लिए सरकार की तरफ ताकने से अच्छा है कि खुद ही कुछ प्रयास शुरू किये जाएँ और समाज को सुरक्षित बनाने में अपना योगदान दिया जाये.                
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