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मंगलवार, 11 नवंबर 2014

सज्जाद लोन और कश्मीर

                                                              कश्मीर में कभी अलगाववादियों के समूह में शामिल रही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने २७ साल बाद जिस तरह से विधानसभा चुनावों में भाग लेने की तरफ कदम बढ़ाया है वह कश्मीर के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि अभी तक विधान सभा या लोकसभा के चुनावों में कश्मीर के भारत में विलय को पूर्ण न मानने वाले सभी गुटों द्वारा चुनावों का बहिष्कार कर मतदान के दिन बंद का आह्वाहन ही किया जाता रहा है. पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (सज्जाद) के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन जो कि जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के आजीवन अध्यक्ष अमानुल्लाह खान के दामाद भी हैं द्वारा इस चुनावी माहौल में पीएम से मिलने को लेकर मुलाक़ात के चुनावी निहितार्थ भी तलाशे जाने लगे हैं. अभी तक जिस तरह से सक्रिय रूप से अलगाव वादी समूहों में शामिल रहे लोग जनता के सामने जाने से डरते रहते हैं उसको देखते हुए सज्जाद के इस कदम की सराहना की जानी चाहिए क्योंकि वे इस तरह से अपनी शक्ति को जनता के हाथों से मज़बूत करने की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं.
                                               सज्जाद ने जिस तरह से पहले भाजपा महामंत्री और संघ के महत्वपूर्ण स्तम्भ राम माधव से मुलाक़ात की और उसके बाद वे पीएम से मिले तो इसमें कुछ भी बुराई नहीं है क्योंकि देश के लोकतान्त्रिक स्वरुप में शामिल होने के लिए यदि किसी भी पूर्व में अलगाववादी समूह का हिस्सा रहे गट को आज अपने लिए कोई रास्ता दिखाई दे रहा है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए. इससे पूर्व में भी कभी अलगाववाद का समर्थन करने वाले स्थानीय नेता चुनावों में भाग लेते रहे हैं पर वह प्रक्रिया व्यापक स्तर पर नहीं चालू हो सकी और अलगाववादियों द्वारा देश की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में किसी भी तरह की आस्था रखने वाले लोगों की हत्या किये जाने के बाद इस तरफ स्थानीय नेताओं का झुकाव भी कम होता चला गया था. आज सज्जाद यदि पीएम से मिल रहे हैं तो इसका विरोध करने के स्थान पर स्वागत ही किया जाना चाहिए क्योंकि कश्मीरी लोग जितनी जल्दी पाक के दुष्चक्र से बाहर आ सकें देश के लिए वही अच्छा है.
                                             कश्मीर के लोग आज देश के बाकी हिस्सों के साथ जुड़ कर चलना चाहते हैं पर उनके अपने लोगों में ही छिपे हुए पाक परस्त लोग उनकी राहें मुश्किल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं जिसके चलते पूरे समाज पर उसका असर पड़ जाता है. सज्जाद के पिता को जिस तरह से अलगाववादियों से अलग होने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी आज उस पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि पाक और उसके द्वारा कश्मीर में कथित जेहाद चला रहे किसी भी व्यक्ति को किसी भी पूर्व अलगाववादी का भारत की लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में आस्था रखना नागवार ही गुजरने वाला है. आज कश्मीर घाटी में सक्रिय राजनैतिक दलों के बाहर का कोई गुट यदि चुनावों में शामिल हो रहा है तो यह राज्य और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उन्हें उचित सुरक्षा उपलब्ध कराये जिससे आतंकी चुनावों में शामिल होने वाले इस तरह के नेताओं को निशाने पर न ले सकें. 
  
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