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रविवार, 25 जनवरी 2015

नागरिक पुरुस्कार और चयन प्रक्रिया

                                                    इस वर्ष केंद्र सरकार ने जिस तरह से गणतंत्र दिवस पर दिए जाने वाले पद्म पुरूस्कारों की घोषणा की उसके बाद इस सूची से योगगुरु स्वामी रामदेव और अध्यात्मिक गुरु रविशंकर ने यह सम्मान लेने में असमर्थता दिखाई है उससे यही लगता है कि देश के नागरिकों के सम्मान किये जाने के लिए दिए जाने वाले पुरुस्कारों को दिए जाने की चयन प्रक्रिया को और भी सुधारने की आवश्यकता है. यह सही है कि इन पुरुस्कारों को लेकर सदैव ही कांग्रेस पर आरोप लगाये जाते थे कि वह अपनी विचारधारा से जुड़े हुए लोगों को ही यह सम्मान देने में विश्वास किया करती थी और उसने सदैव ही अन्य दलों का समर्थन करने वाले सामाजिक और अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की अनदेखी ही की है. इस आरोप में कुछ हद तक सच्चाई भी है पर इसे पूरी तरह से सही भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि आज़ादी के बाद से ही बहुत सारे लोगों को निष्पक्षता के साथ भी यह पुरूस्कार दिए जाते रहे हैं. इस बार के सम्मानों की सूची देखकर कहीं से भी यह नहीं लगता है कि वर्तमान सरकार कांग्रेस की उस नीति से अलग हो चुकी है.
                                                 आज़ादी के समय यह माना गया था कि देश के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के लिए इस तरह के पुरुस्कारों की श्रंखला शुरू की जाये जिससे उत्कृष्ट कार्य करने वालों के बारे में देश जान सके और उनसे प्रेरणा भी ले सके पर कालांतर में जिस तरह से देश में राजनैतिक शुचिता के स्थान पर चाटुकारिता ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया तो उसके बाद यह कह पाना कठिन ही हो गया कि इस तरह के सम्मानों की सूची वास्तव में देश के उन सपूतों का प्रतिनिधित्व करती है जिनके लिए इनकी परिकल्पना की गयी थी ? आरोप लगाने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला है इसलिए आने वाले वर्षों में जब केंद्र सरकार के पास अभी काफी समय है तो उसे इस दिशा में कुछ कठोर नियम भी बनाने की तरफ सोचना चाहिए क्योंकि जो भी हो इस पूरी चयन प्रक्रिया में कहीं न कहीं से कुछ कमी अवश्य ही है और अब जब नयी विचारधारा वाली सरकार सत्ता में है तो उससे यह आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में कुछ परिवर्तन भी अवश्य ही देखने को मिलने वाले हैं.
                                               इस तरह के चयन के लिए कुछ मूलभूत सीमायें निर्धारित की जाने चाहिए जिससे देश के इन सपूतों के सम्मान के लिए बनायीं गयी सूची पर आने वाले समय में कोई भी ऊँगली न उठा सके और वह सूची इतनी सही हो कि सभी लोगों को वह समयानुकूल भी लगे. इसके लिए केंद्र द्वारा जिस तरह से अंतिम समय में नाम मांगे जाने की परम्परा रही है अब उसमें भी परिवर्तन किये जाने की आवश्यकता है. इस काम में नागरिक क्षेत्र से सही लोगों को चुनने के लिए इसे जनपद स्तर पर जिलाधिकारियों के ज़िम्मे किया जाना चाहिए जिससे वे अपने यहाँ काम करने वाले लोगों के बारे में सूचनाएँ केंद्र सरकार को एक वेबसाइट के माध्यम से दे सकें. इन अधिकारियों के लिए आवश्यक कर दिया जाना चाहिए कि वे स्थानांतरण होने की दशा में मुख्यालय छोड़ने से पहले इस सूची के बारे में अपनी राय अवश्य ही देते हुए जाएँ इस प्रक्रिया से जहाँ केंद्र सरकार को यह पता चल पायेगा कि ज़मीनी स्तर पर वास्तव में कितना और किस स्तर का काम हो रहा है तो उसके द्वारा लगातार काम किये जाने वाले लोगों के लिए पुरुस्कार देना भी आसान हो जायेगा.      
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