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शुक्रवार, 27 मार्च 2015

डीके रवि - जाँच की दिशा

                                                कर्नाटक के आईएएस अधिकारी डीके रवि की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद जिस तरह से विवेचना और खोज खबर रखने वाले विभिन्न सूत्रों की तरफ से दिवंगत व्यक्ति के व्यक्तिगत संदेशों को आम किया जा रहा है उसे नैतिकता के किस स्तर पर सही कहा जा सकता है ? किसी भी व्यक्ति की निजता का सार्वजनिक जीवन से क्या सम्बन्ध हो सकता है यह देखने और समझने का विषय है पर दुर्भाग्य से आज इस मामले में जो कुछ भी हो रहा है वह किसी भी तरह से नैतिकता के मानदंडों पर खरा नहीं कहा जा सकता है. इस तरह के किसी भी संवेदनशील मामले में जितनी गोपनीयता की आवश्यकता होती है उसका अनुपान कहीं से भी नहीं किया जा रहा है क्या बंगलुरु पुलिस को इस बात का अधिकार है कि वह विवेचना के शुरुवाती स्तर में ही जाँच को इस तरह की दिशा देने का प्रयास करे ? यह भी संभव है कि रवि ने निजी कारणों से आत्महत्या ही की हो पर जब तक पूरा मामला संदिग्ध ही है तो पुलिस के द्वारा इस तरह के दस्तावेज़ों के बारे में बात करना क्या साबित करता है क्योंकि यह रवि के निजी जीवन में हस्तक्षेप से अधिक कुछ भी नहीं है.
                                          विपक्ष द्वारा सरकार को निशाने पर लिए जाने के कारण यह भी संभव है कि सरकार ने ही अपने पर दबाव कम करने के लिए पुलिस को इस तरह की जानकारी सामने आते ही सार्वजनिक करने का आदेश दिया हो पर इस तरह से खुलासे कर क्या वह मामले को खुद ही विवादस्पद बनाने की कोशिश नहीं कर रही है ? गंभीर मामलों में विवेचना के स्तर पर इतना हल्कापन नहीं आना चाहिए और जब तक पुलिस के पास पुख्ता सबूत न हों उसे कोर्ट से पहले इस तरह के सबूतों को मीडिया तक नहीं पहुँचाना चाहिए. विवेचना के स्तर पर केस के पहुँचने पर पुलिस के पास अपनी बात कहने का पूरा अवसर भी होगा पर जब तक इसकी आवश्यकता नहीं है तब तक सरकार को इस तरह की बयानबाज़ी को रोकने का पूरा प्रयास करना चाहिए. इस तरह के किसी भी मामले को सार्वजनिक करने से पहले खुद सरकार और विपक्ष के प्रतिनिधियों के बीच मामला स्पष्ट होना चाहिए जिससे किसी पर भी बिना बात के अनर्गल आरोप न लगाये जा सकें. विपक्ष को भी महत्वपूर्ण मामलों में विश्वास में लेने की कोई समझ सरकार की तरफ से दिखाई जाइ चाहिए जिससे सड़कों पर अनावश्यक बयानबाज़ी से सभी पक्ष बचे रह सकें.
                                       किसी भी हाई प्रोफाइल या सामान्य संदिग्ध मामले में अब सरकार और विपक्ष को केवल राजनैतिक लाभ हानि से आगे बढ़कर सोचने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक सरकार की तरफ से इस तरह की समझदारी नहीं दिखाई जाएगी विपक्ष अपनी राजनीति करने बाज़ नहीं आने वाला है. डीके रवि मामले में इस तरह की जानकारी सामने आने पर सरकार को इसे मीडिया से पहले विपक्ष के साथ साझा करना चाहिए था और दिवंगत व्यक्ति की ज़िंदगी और किसी और के नाम सामने आने की स्थिति में किसी भी राजनीति से बचने का प्रयास करना चाहिए. कर्नाटक सरकार पर जिस तरह का दबाव बना हुआ था तो उसने इस तरह की सूचना सामने आने पर इसे तुरंत सार्वजनिक करने का निर्णय ले लिया पर इसके दुष्प्रभावों पर किसी भी तरह से विचार नहीं किया जबकि उसकी बहुत आवश्यकता थी. इस तरह के खुलासे से सीधे दिवंगत अधिकारी को अपनी मौत का ज़िम्मेदार ठहराने की जल्दबाज़ी में की गयी एक सरकारी कोशिश ही लगती है जिसमें सबूतों के आधार पर सरकार ने अपने को एक तरह से पाक साफ़ घोषित कर ही दिया है. केस के आगे बढ़ने पर यह सारी जानकारियां सभी को पता चलनी थीं पर इस जल्दी से रवि के परिजनों समेत बहुत से लोगों को विवेचना में अभी से शामिल किया जाने लगेगा जबकि इसे थोड़ी गंभीरता के साथ और भी अच्छी तरह किया जा सकता था.              
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