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शनिवार, 11 अप्रैल 2015

ओडिशा- कम उम्र का मातृत्व

                                             २०११ की जनगणना के अनुसार ओडिशा में १५ वर्ष से कम आयु की लड़कियों के माँ बनने की गति पूरे देश में सबसे अधिक रही है जिससे यह राज्य अपने आप ही मातृ-शिशु मृत्यु दर में भी देश में सबसे आगे रहा है. चार साल पुराने आंकड़ों पर नज़र डाली जाये तो इससे एक बात साफ़ हो जाती है कि या तो राज्य में मातृ शिशु कल्याण के कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है या फिर राज्य सरकार अपने आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले निवासियों को अभी तक यह समझाने में विफल रही है कि कम उम्र में लड़कियों की शादी करने से उनके और होने वाले बच्चे की जान पर अधिक खतरा रहता है. २०११ के अनुसार राज्य में १५ वर्ष से कम उम्र में माँ बनने वाली लड़कों की संख्या ११००० हज़ार थी तथा राज्य में लगभग ६० लाख लड़कियों की आयु १५ वर्ष से कम है और इसमें से भी ४२ हज़ार की शादियां हो चुकी है जिसमें से भी लगभग ११ हज़ार अपना १५ वां जन्मदिन मनाने से पहले ही माँ बन चुकी है तथा ४ हज़ार के करीब ऐसी लड़कियों हैं जो तब तक दो बच्चों की माँ बन चुकी हैं.
                                      इसके साथ ही कम उम्र में माँ बनने के बहुत सारे खतरों के चलते ही आज ओडिशा में मातृ मृत्यु दर प्रति हज़ार २३५ है जबकि इसका राष्ट्रीय स्तर १७८ है तथा शिशु मृत्यु दर ५७ है जो राष्ट्रीय औसत ४४ से बहुत अधिक है. हालाँकि गौर से देखा जाये तो इसके पीछे सामाजिक, आर्थिक के साथ अन्य बहुत से कारण भी काम करते रहते हैं पर किसी भी तरह से इससे सबसे बुरा असर केवल इन कम उम्र की लड़कियों पर ही पड़ता है. देश के अन्य राज्यों की तरह ओडिशा की नवीन सरकार भी इस तरह के सामाजिक कार्यों को करने में अवश्य ही लगी हुई है पर दुर्भाग्य से ज़मीनी स्थिति में कोई अंतर नहीं आ पा रहा है. अभी तक राज्य के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर नवीन सरकार का काम बहुत अच्छा रहा है उसे देखते हुए उनसे यह आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में वे राज्य में व्याप्त इस बुराई पर भी कुछ ठोस कर पाने में सफल हो पायेंगें. आदिवासी बहुल राज्य होने के कारण ही आज भी ओडिशा में कम उम्र के लड़कियों कि शादी करने का रिवाज़ पूरी तरह से चल रहा है जो कि इस पूरे परिदृद्य को बुरी तरह से बिगाड़ने का काम भी स्वतः ही कर रहा है.
                           इस समस्या से निपटने के लिए जहाँ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में शिक्षा के बेहतर प्रसार के साथ ही सामाजिक स्तर पर कड़ी मेहनत के साथ कम करने की आवश्यकता है वहीं केंद्र सरकार की तरफ से भी सारी आर्थिक मदद की आशा की जाती है. नवीन पटनायक ने राज्य के बहुत सारे क्षेत्रों को सुधारने का कार्य बहुत ही अच्छे तरीके से किया है और आने वाले समय में अब उनका ध्यान इस तरफ भी जाने ही वाला है. किसी भी सामाजिक बुराई से निपटने का सबसे प्रभावी हथियार शिक्षा ही होता है और यदि ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर को सुधारने की कोशिशें सफल होने लगें तो इस सामाजिक समस्या का कोई हल निकाल पाना आसान हो सकता है. इस कार्य को कानूनी स्तर पर उतनी सरलता से नहीं किया जा सकता है जितना इसके दुष्प्रभावों के बारे में प्रचार प्रसार करने से किया जा सकता है यह कार्य तभी सफल हो सकता है जब इसके लिए सभी सम्बंधित पक्ष ज़मीन पर ठोस प्रयासों के साथ आगे बढ़ें. पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा का सही प्रसार होना ही चाहिए इससे सभी लोग सहमत हैं पर यह कार्य केवल सरकारी स्तर पर संभव भी नहीं है इसके लिए अब ग्राम पंचायतों से लगाकर दूर दराज़ के क्षेत्रों तक सही सोच के साथ जाने की बहुत ज़रुरत सामने आ गयी है.       
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