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सोमवार, 13 अप्रैल 2015

भीड़ के मौसम में रेलगाड़ी का खाली दौड़ना ?

                                                  आज जब गर्मियां शुरू होने के साथ ही सभी दिशाओं को जाने वाली रेलगाड़ियों में सीटों की मारामारी मची हुई है तो ऐसे समय में भी उत्तर रेलवे के दिल्ली स्थिति मुख्यालय के वाणिज्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के चलते जहाँ लखनऊ मुंबई के बीच चलने वाली एसी स्पेशल पूरी तरह से खाली ही रवाना हो गयी वहीं इससे रेलवे को १६ लाख का चूना लगने का अनुमान है तथा लगभग नौ सौ यात्री भी उस यात्रा से वचित रह गए जिनके लिए इस ट्रेन की व्यवस्था की गयी थी. मामला तब और भी गंभीर लापरवाही का हो जाता है जब रेल मंत्री खुद ही रेलवे की व्ययस्था को पूरी तरह से चाक चौबंद करने में लगे हेु हैं.इस मामले में उत्तर रेलवे दिल्ली के वाणिज्य विभाग की लापरवाही का यह आलम सामने आया है जिसमें मुंबई से चलने वाली स्पेशल गाड़ी ०२१११/०२११२ इतना लम्बा सफर तय कर लखनऊ पहुँच जाती है और उसके वापस जाने तक इस गाड़ी की रिज़र्वेशन में फीडिंग ही नहीं हो पाती है तथा जब तक मामले को सही किया जाता है तब तक चार्ट बनने का समय हो जाता है और गाड़ी खाली ही मुंबई को रवाना हो जाती है. आज की परिस्थिति में क्या इस तरह की किसी भी हरकत को बर्दाश्त किया जा सकता है यह सोचने का विषय बन चूका है.
                           इस मामले में रेलवे की हर जगह लापरवाही ही दिखाई देती है क्योंकि २४ घंटे का सफर तय करके एक गाड़ी लखनऊ तक आती है और उसके वापस जाने तक रेलवे की आमदनी से जुड़े अधिकारियों के पास इसकी जानकारी ही नहीं होती है या फिर ज़िम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी इस बात को पूरी तरह से भूल ही जाते हैं. इस मामले में एक बात और भी सामने आई है कि लखनऊ स्थिति अधिकारियों द्वारा इस गाड़ी को रिज़र्वेशन के लिए खोले जाने की मांग की जाती रही पर दिल्ली में उनकी एक भी नहीं सुनी गयी तो क्या दिल्ली में कोई बड़ी समस्या थी या फिर समस्या सामने बड़े अधिकारियों ने इस मामले में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई जिससे यह सब सामने आया ? सवाल यह भी है कि इस तरह की स्थिति में लखनऊ के अधिकारी क्या कर सकते था और उन्होंने क्या किया क्योंकि कहीं न कहीं उनकी भी ज़िम्मेदारी इस मामले में बनती तो है ? यह सही है कि लखनऊ में इस ट्रेन के बारे में उद्घोषणा करवाई जाती रही पर जब यात्रियों को इस गाड़ी के टिकट ही नहीं मिल सकते थे तो वह सारी कवायद पूरी तरह से बेकार ही चली गयी. ऐसी स्थिति में क्या इस गाड़ी के सभी टिकट करंट बुकिंग के माध्यम से नहीं किये जा सकते थे क्योंकि ऐसी परिस्थिति में खाली पड़ी सीटों को इस तरह से भरने का एक विकल्प उपलब्ध नहीं किया जा सकता था ?
                            रेलवे के लखनऊ स्थित अधिकारी और कर्मचारी इस मामले में स्थानीय स्तर पर सबसे पहले पहले आओ पहले पाओ के आधार पर लोगों को इस गाड़ी में बिठाने की व्यवस्था कर सकते थे और इन सभी को विशेष छूट के आधार पर गाड़ी में ही सामान्य टिकट की धनराशि लेकर टिकट दिए जा सकते थे जिससे जहाँ लोगों को आसानी हो जाती तथा रेलवे को भी इतनी बड़ी आर्थिक हानि नहीं उठानी पड़ती. भविष्य में इस तरह की किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए रेलवे के पास एक बेहतर प्लान भी होना चाहिए जिस पर अमल कर यात्री अपने गंतव्य तक पहुँच सकें और जिस उद्देश्य से गाड़ी को चलाया गया था वह भी पूरा हो सके. इस मामले में पूरी पड़ताल करके ज़िम्मेदार सभी लोगों के वेतन से रेलवे को होने वाले इस नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए जिससे भविष्य में सभी लोग सचेत रह सकें और यात्रियों को असुविधा से बचाने के साथ रेलवे को भी नुकसान से बचाया जा सके. स्वयं रेल मंत्री को इस मामले को संज्ञान में लेते हुए कठोर अनुशासनात्मक कार्यवाही कर कड़ा सन्देश देना चाहिए जिससे भविष्य में फिर से इस तरह की कोई घटना न होने पाये.    
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