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बुधवार, 30 सितंबर 2015

तम्बाकू लॉबी और मोदी सरकार

                                                                            एक अनुमान के अनुसार साल में लगभग नौ लाख लोगों की जान लेने के लिए ज़िम्मेदार माने जाने वाले तम्बाकू उत्पादों को लेकर मोदी सरकार का दोहरा रवैया एक बार फिर से सामने आ रहा है जिसके चलते ही उसने इन उत्पादों के पैकेट्स पर छपने वाली चेतावनी को ८५% तक अनिवार्य किये जाने से सम्बन्धित आदेश को अप्रैल २०१६ तक के लिए टाल दिया है. देश इस तरह से होने वाली मौतों के लिए ज़िम्मेदार इस तम्बाकू और इससे मिलने वाले राजस्व को लेकर सरकार और सामाजिक संगठनों में लगातार ही संघर्ष जैसी स्थिति रहा करती है जिससे दोनों ही पक्ष अपनी अपनी बातों और तर्कों को सही ठहराते हैं. एक तरफ सरकार को आम नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता सताती है वहीं वह इस मौत के कारोबार से जुड़े हुए उद्योग से मिलने वाले राजस्व को त्यागने के लिए तैयार भी नहीं दिखाई देती हैं जिससे सरकार को भले ही आर्थिक उपलब्धि हासिल हो जाती हो पर उसका सामाजिक और आर्थिक दुष्प्रभाव लाखों परिवारों को अकारण ही झेलना पड़ता है.
                                       सामाजिक संगठनों की सरकार से इसी बात से सर्वाधिक समस्या रहा करती है क्योंकि एक तरफ वह कुछ राजस्व के लाभ में ऐसे उत्पादों को बेचने की अनुमति दे देती है वहीं इसके दुष्प्रभावों से होने वाले सामाजिक परिणामों से निपटने के लिए कल्याणकारी योजनाएं भी चलाती है. यह तो एक तरह से आम लोगों को ज़हर खिलाकर उपचार करने वाली स्थिति जैसी ही है क्योंकि इस दोहरे रवैये से सामाजिक स्तर पर आमलोगों के लिए बहुत समस्याएं उत्पन्न हुआ करती हैं जिनसे सरकार भी सहमत तो होती है पर उसका कोई सही समाधान और अपने राजस्व की हानि करने के स्तर तक कभी भी सोच नहीं पाती है. पिछले वर्ष जिस तरह से राजस्थान उच्च न्यायालय ने तम्बाकू उत्पादों के सभी पैकेट्स के ८५%  हिस्से पर चेतावनी छापने का आदेश केंद्र सरकार को जारी किया था मोदी सरकार अभी तक उस पर कोई निर्णय नहीं ले पायी है. गुजरात में मोदी ने जिस जिस तरह से शराबबंदी पर सख्ती दिखाई थी तो उसी के अनुरूप केंद्र में उनकी सरकार से यदि सामाजिक संगठन इस तरह की अपेक्षा रख रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं कहा जा सकता है.
                                       खुद पीएम मोदी की तरफ से ऐसे संकेत दिए जा चुके हैं कि संसदीय समिति को ८५% हिस्से पर विज्ञापन के बारे में जल्द ही फैसला लेना चाहिए पर लोकसभाध्यक्ष और मोदी सरकार की दोहरी मंशा उस समय ही स्पष्ट हो जाती है जब बीड़ी के बड़े कारोबारी और भाजपा सांसद श्याम चरण गुप्ता के साथ दिलीप गांधी जैसे तम्बाकू समर्थक लॉबी के लोग भी उस संसदीय समिति का हिस्सा बनाये जाते हैं जिसे इस मसले पर अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी है ? पीएम को एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि जिस सोशल मीडिया के दम पर वे बहुत आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं आज उसी के माध्यम से वे और उनकी सरकार आमलोगों की नज़रों में पूरी तरह से खुली हुई है. इन विवादित सदस्यों को इस महत्वपूर्ण समिति से बाहर रखने की पूरी कोशिश करने के बाद ही मोदी और उनकी सरकार से तम्बाकू पर उपदेश सभी को अच्छे लग सकते हैं. अच्छा हो की इस मामले को अविलम्ब निपटाया जाये और अचानक से लगने वाले किसी भी प्रतिबन्ध से बचने के लिए एक दीर्घावधि योजना बनाई जानी चाहिए जिसमें तम्बाकू उत्पादों पर चरणबद्ध तरीके से रोक लगाये जाने की व्यवस्था भी की जा सके. साथ ही इस उद्योग से जुड़े हुए उत्पादकों और लोगों के लिए सही पुनर्वास योजना के साथ आगे बढ़ा जाये. इतने बड़े उद्योग को अचानक से किसी योजना के इस तरह से समस्या में भी नहीं डाला जाना चाहिए अब यह सब किस नीति के माध्यम से किया जाना है यह अब संसदीय समिति और मोदी के निर्णय पर ही निर्भर है.   
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