मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

कश्मीरी पंडितों के मानवाधिकार

                                                                     देश में जहाँ हर मुद्दे पर राजनीति की जाती है वहीं इस राजनीति के चलते प्रभावित होने वाले आम नागरिकों के बारे में सोचने का काम किसी भी राजनेता की इच्छा शक्ति के आगे बस घुटने टेकता हुआ ही दिखाई देता है. आज भी कश्मीर घाटी में जिस जिस तरह का माहौल बन रहा है उसको देखते हुए मोदी सरकार से कश्मीरी पंडितों द्वारा की जाने वाली आशाएं भी धूमिल होती नज़र आ रही हैं. कश्मीर केवल राजनैतिक मामला नहीं वरन अलगाववादियों के माध्यम से घाटी को कभी कश्मीर की पहचान रहे कश्मीरी पंडितों से खाली करवाने की एक सोची समझी साज़िश थी जिसमें केंद्र और राज्य स्तर के सभी राजनैतिक दलों ने केवल वायदे करने के स्थान पर इनके लिए कुछ भी ठोस नहीं किया है. घाटी में अलग से टाउनशिप बनाकर इनको बसाने की योजना इस लिए भी कारगर नहीं हो सकती है क्योंकि अंत में इन कश्मीरी पंडितों को अपनी आजीविका के लिए इन जगहों से बाहर निकलने की आवश्यकता भी पड़ने वाली है तो उस स्थिति में कोई भी सरकार हर कश्मीरी पंडित को आखिर किस तरह से सुरक्षा प्रदान कर पायेगी ?
                    अपनी जड़ों और घरों से दूर पैदा हुई एक नयी पीढ़ी और कश्मीरी पंडितों की घाटी छोड़ने वाली पीढ़ी ने किस तरह से अपने हज़ारों वर्षों से चले आ रहे इस प्रयास को किस तरह से चौथाई सदी में कैसे बिखरते हुए देखा है यह सभी जानते हैं पर आज भी इस मुद्दे पर केवल लच्छेदार बातें करने के स्थान पर कोई ठोस प्रगति नहीं की जा सकी है. आज भी कश्मीर के अलगाववादी, राजनेता यह कहने से नहीं चूकते हैं कि इन पंडितों का घाटी में स्वागत है पर इनकी बोलती उस समय क्यों बंद थी जब इन पंडितों को घरों से बेघर किया जा रहा था ? केंद्र और राज्य सरकार को इस बारे में कुछ ठोस करने की आवश्यकता भी है क्योंकि घाटी में जब तक सभी के रहने लायक माहौल नहीं बनता है तब तक कोई इतने असुरक्षित माहौल में आखिर किस तरह से बसने के बारे में सोच भी सकता है. जिन पड़ोसियों से इन पंडितों का पीढ़ियों से लगाव था उनमें से अधिकांश ने उस समय इनके इस पलायन पर चुप्पी साधे रखी और किसी भी परिस्थिति में उनका कोई साथ नहीं दिया जिसका दुष्परिणाम आज उनके सामने है कि आतंकी उनके जीवन को आज भी खतरों में डालने से नहीं चूकते हैं और नयी पीढ़ी भी चाहकर इस दुष्चक्र से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पा रही है.
                               पाकिस्तान से आने वाली एक खबर मोदी सरकार को इसी बड़े निर्णय के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है क्योंकि आज़ादी के समय से ही गिलगिट-बाल्टिस्तान एक स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में जाना जाता है और अब पाकिस्तान की नवाज़ सरकार संविधान में संशोधन करके उनको अपना एक पूर्ण राज्य बनाये जाने की तरफ बढ़ना चाहती है क्योंकि वहां पर चीन द्वारा किये जा रहे निवेश की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान को कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यदि पाकिस्तान इस क्षेत्र को बाकायदा अपना एक राज्य बनाने की तरफ पहल करता है तो मोदी सरकार को भी एक बड़ा राजनैतिक कदम उठाने का मौका मिल सकता है और वह पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने के लिए जम्मू कश्मीर को धारा ३७० के अंतर्गत मिलने वाले विशेष दर्ज़े का प्रावधान को समाप्त करने के बारे में भी सोच सकती है. जब पाक अपनी बात पर नहीं टिका रहेगा तो इस स्थिति में भारत भी अपने यहाँ की स्थिति में बदलाव कर सकता है जो कि घाटी में भले ही कुछ वर्षों के लिए अराजकता बढ़ाने का काम कर सकता है पर ३७० खत्म होने के साथ पूरे भारत की निगाहें जम्मू कश्मीर की तरफ घूम जाने वाली हैं. पाकिस्तान ने ही इन पंडितों का घाटी में जीना दुश्वार किया था तो हो सकता है उसका कोई ऐसा कदम इनके लिए एक बार फिर से नए अवसरों के रास्तों को खोल दे.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. उपाय तो एक ही है, कि घाटी में ऐसा वातावरण बने कि शान्ति भंग हो ही न सके।

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