मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 23 जनवरी 2016

भारतीय युवा मुस्लिम

                                                                        एक बार फिर से एनआईए द्वारा देश भर में कई जगह छापेमारी के बाद जिस तरह से आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल के रूप में काम कर रहे लोगों को संदेह के आधार पर पकड़ा है उसके बाद २६ जनवरी को देश भर में गड़बड़ी करने के लिए प्रयासरत लोगों के लिए यह काम करना उतना आसान नहीं रहने वाला है क्योंकि इसके बाद ख़ुफ़िया एजेंसियों और पुलिस की नज़रें भी इस तरह की गतिविधियों पर अधिक जम गयी हैं. इस स्थिति में जब तक कुछ ठोस सबूत हाथ नहीं आते हैं तब तक गृह मंत्रालय भी कुछ कहने से बच रहा है और उसकी तरफ से अभी तक इस बात की पुष्टि भी नहीं की गयी है कि इन संदिग्धों के आईएस से कोई सम्बन्ध हैं भी या नहीं. रूड़की से हिरासत में लिए गए चार संदिग्धों से मिली जानकारियों के अनुसार ही विभिन्न एजेंसियों द्वारा जाँच को आगे बढ़ाये जाने पर इस तरह की कुछ और सूचनाएँ भी सामने आती चली गईं जिससे यह संदेह होने लगा कि भले ही ये सभी लोग इस ख़ुफ़िया मिशन में सीधे तौर पर शामिल न हों पर उनके इस गतिवविधि में शामिल लोगों के साथ कुछ सम्बन्ध तो अवश्य ही थे.
                                                            आईएस और अन्य आतंकी संगठनों की यही चाल रहा करती है कि वे अपने समूह को मज़बूत करने के लिए की जाने वाली नयी भर्ती के लिए कुछ ऐसा मसाला इकठ्ठा कर सकें जिससे वे यह साबित कर सकें कि भारत में मुसलमानों के साथ बहुत अत्याचार हो रहा है. इस तरह के भ्रामक प्रचार के दम पर वे पहले से ही कुछ लोगों को अपने पक्ष में करने में कुछ हद तक सफल भी हुए हैं पर तालिबान और अल क़ायदा जैसे संगठनों की तरह उनकी नज़रें भी भारत के विशाल मुस्लिम जनमानस पर ही टिकी रहती हैं कि किस तरह से इस बड़ी आबादी के युवाओं को अपने जोड़ने में सफलता मिले. यह बहुत ही घातक स्थिति हो सकती है क्योंकि अभी तक इंटरनेट के प्रसार के कम होने के कारण किसी संगठन को नेट के माध्यम से जानकारी नहीं मिल पाती थी पर पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से भारत के दूर दराज़ के क्षेत्रों में भी इंटरनेट की पहुँच हो गयी है उसके बाद यही लगता है कि आने वाले समय में इस तरह से आतंकियों दुष्प्रचार से प्रभावित होकर उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले युवाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी भी हो सकती है क्योंकि धर्म पर आधारित मामलों के सामने आने पर व्यक्ति सामाजिकता आदि को बहुत आसानी से भूल जाता है.
                                           इस परिस्थिति में जाँच एजेंसियों के साथ पुलिस की ज़िम्मेदारी भी विवेचना करने के स्तर पर बहुत बढ़ जाती है क्योंकि अभी तक इस तरह के अधिकांश मामलों में विवेचना की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती कि संदिग्ध बताकर हिरासत में लिए गए लोगों के खिलाफ आरोपों को कोर्ट में साबित किया जा सके जिस कारण से भी कई बार निर्दोषों को लम्बे समय तक जेल में रखे जाने की कई घटनाएँ सामने आई हैं. विवेचना करने वाली एजेंसियों को अब अधिक जागरूक और कानून परक होने की आवश्यकता है तथा जिन लोगों के खिलाफ मज़बूत सबूत हों केवल उनके खिलाफ ही आरोप पत्र भी दाखिल करने के बारे में ही सोचना चाहिए अन्य लोगों को केवल निगरानी के स्तर तक ही रखा जा सकता है. हलके आरोप कभी भी अदालतों में नहीं टिक सकते हैं तो इस दिशा में बिना सबूतों के किसी को भी आरोपी बनाये जाने की मानसिकता से बचने की आवश्यकता है. यहाँ पर यह बात इसलिए सामने आती है क्योंकि अभी तक अधिकांश मामलों में यही सब होता रहा है और सामान्य कानून व्यवस्था से जुडी समस्याओं की तरह से ही इन घटनाओं की विवेचना भी की जाती है.
                                          इस परिस्थिति से निपटने के लिए अब हमारी केंद्र और राज्य की सभी जांच एजेंसियों के साथ  ख़ुफ़िया एजेंसयों का तालमेल भी किया जाना चाहिए जिससे विवेचना में आवश्यक सभी तथ्यों का समावेश किया जा सके तथा जो वास्तव में संदिग्ध हों केवल उनको ही आरोपी बनाया जाना चाहिए जिससे मुक़दमें की सुनवाई भी तेज़ी से संभव हो सके. क्या आज हमारी पुलिस के स्तर पर की जाने वाली अधिकांश विवेचना आतंकी मामलों में भी उसी तरह टिक सकती है जैसी अन्य मुक़दमों में अनावश्यक रूप से टिकी रहती है ? देश की ख़ुफ़िया व्यवस्था के साथ ही अब इस दिशा में भी अधिक तार्किक विवेचना करने की आवश्यकता है और यह हमारी पुलिस अपने आप नहीं सीख सकती है. इसके लिए उसे आधुनिकतम तकनीक से साथ कानून के उन पहलुओं की बारीक जांच भी सिखाई जानी चाहिए जिनके सबूत के तौर पर साबित न कर पाने के कारण कई बार सामान्य और आतंक आदि के मामलों में संदिग्ध लोग आसानी से छूट जाया करते हैं.
                                    इस सबके साथ जो सबसे आवश्यक बात है अब उस पर भी सभी को ध्यान देने की आवश्यकता भी है कि आखिर हमारे युवा मुस्लिमों में से कुछ लोग किस तरह से आतंकी चंगुल में आ जाते हैं ? इस पहलू पर आज भी अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है क्योंकि इस शिकंजे में उनके उलझने से बचने के लिए क्या उपाय अपनाये जाने चाहिए इस बारे में युवाओं को कोई जागरूक नहीं करना चाहता है. आज युवाओं को इन आतंकी संगठनों के संपर्क में आने के खतरों के बारे में स्पष्ट रूप से समझाया जाना चाहिए और साथ ही यह भी बताया जाना चाहिए कि आतंक की राह पर चलकर उनके परिवार और मित्रों को बाद में किस तरह से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह के किसी भी धार्मिक, आर्थिक या सामाजिक प्रलोभन से किस तरह से बचा जाये इस बात की भी जानकारी युवाओं को दी जानी चाहिए साथ ही उनके लिए हर जिले में एक हेल्पडेस्क भी होनी चाहिए जहाँ पर वे अपने आस पास होने वाली किसी भी संदिग्ध गतिविधि और परिस्थिति की सूचना गोपनीय तरीके से भी दे सकें. जागरूक युवाओं के साथ देशद्रोह में लगे हुए लोगों को चिन्हित करना आसान रहने वाला है और जो शिक्षित युवा भी धार्मिक होने के कारण इस गिरफ्त में आ जाते हैं उनको भी बचाने की आज बहुत आवश्यकता भी है जिससे देश सुरक्षित होने के साथ एक साथ आगे बढ़ने के बारे में सोचना शुरू कर सके.           
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