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शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

तीन तलाक़ फिर चर्चा में

                                  मुस्लिम समाज में महिलाओं को दिए जाने वाले तीन तलाक़ को लेकर एक बार फिर से बहस का दौर शुरू हो चुका है जिसकी पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार को जारी नोटिस की महत्वपूर्ण भूमिका भी है जिसमें कोर्ट ने सरकार से इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था. सरकार ने इस मुद्दे को लैंगिग भेदभाव से जोड़ते हुए यह कहा कि इससे समाज में मुस्लिम महिलाओं को बराबरी के हक़ से वंचित किया जाता है इसलिए वह तीन तलाक़ का विरोध करती है जिसके बाद से ही यह बहस आज सबके केंद्र में आ गयी है कि आखिर इसमें क्या बुराइयां हैं और यदि कुछ गलत है तो उससे किस तरह से निपटने के लिए सुधार किये जाने की आवश्यकता भी है. आज जिस तरह का विमर्श शुरू हो चुका है वह इस तरह के कई मामलों में निरर्थक ही साबित होता है क्योंकि बहुमत वाली सरकार अपने स्तर से इस तरह एक मामलों में अपनी राय देने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र भी होती है. इस मुद्दे को १९८६ में भी शाहबानों के मामले के समाय काफी तूल मिला था पर उस समय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड दुनिया के अन्य देशों से नसीहतें लेकर किसी भी तरह के संशोधन से पीछे ही रह गया था और २/३ बहुमत से सरकार चला रहे राजीव गांधी को सरकार और कांग्रेस के अंदर के कुछ नेता यह समझाने में सफल हो गए थे कि इसे पर्सनल लॉ का मामला ही माना जाना चाहिए और इसके लिए किसी भी तरह एक बदलाव की बात करने के बारे में सरकार को कोई पहल नहीं करनी चाहिए. उस समय सुधार करने में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और केंद्र सरकार एक तरह से विफल ही साबित हुए थे पर अब एक बार फिर से समय आ गया है कि इस पर मुस्लिम समाज ही कोई रास्ता निकल कर सरकार और सुप्रीम कोर्ट को बताये कि क्या किया जा सकता है.
                                 आज परिस्थितियां एक बार फिर से उसी स्थिति में पहुँचती हुई दिखाई दे रही हैं जिसमें वही मुद्दा एक बार फिर से सामने आ गया है पर इस बार सरकार का रवैय्या पहले से अलग होने के कारण इस पर व्यापक बहस भी हो रही है. केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने जिस तरह से यह स्पष्ट किया है कि सरकार इस मामले पर बहस कराना चाहती पर किसी पर कुछ भी थोपा नहीं जायेगा उसके बाद इस मुद्दे पर अनावश्यक रूप से घबराने की कोई आयश्यकता भी नहीं है क्योंकि केवल सरकार के कह देने भर से ही कुछ नहीं होने वाला है. तीन तलाक़ को लेकर आज भी जो परंपरा भारत में चल रही है उसे कई इस्लामी देशों में अवैध घोषित किया जा चुका है यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी १९५९ से ही तीन तलाक़ के भारतीय स्वरुप को छोड़ा जा चुका है. बांग्लादेश ने अपने उदय के समय १९७१ से ही इस पर रोक लगा थी और कानूनी रूप से इसको वहां समर्थन भी मिला हुआ है. ऐसी परिस्थिति में जब इस्लामी देशों में भी तीन तलाक़ की इस अवधारणा को अवैध घोषित किया जा चुका है तो भारत में इसके चलते रहने के क्या कारण हैं आज इस पर विचार किया जाना चाहिए और इसमें तलाक़शुदा महिलाओं की परेशानियों को भी जानने का प्रयास किया जाना चाहिए जिससे पूरी स्थिति को बदलने से पहले उसके लिए पूरी तैयारी भी की जा सके.
                                      यह मुद्दा चूंकि मुसलमानों से जुड़ा हुआ है तो इसके लिए देश के प्रसिद्ध इस्लामिक केंद्रों की राय भी मांगी जानी चाहिए क्योंकि इस्लाम के अनुरूप भारतीय मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ संबंधी मामलों में क्या अधिकार मिल सकते हैं यह वे ही अच्छे से बता सकते हैं अच्छा यह भी होगा कि इस मामले से सम्बंधित मंत्रालय जैसे मानव संसाधन विकास मंत्रलय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय और केंद्रीय एवं राज्य महिला आयोगों द्वारा भी इस मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं की राय ली जाये उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश की जाये. केवल विधि आयोग, न्याय मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार अपनी राय को कोर्ट के सामने रख सकती है और इस मुद्दे को इतना भी छोटा न किया जाये कि केवल केंद्र सरकार ही इस पर अपनी राय दे सके. सैकड़ों वर्षों से चल रही इस परम्परा को समाप्त कर आवश्यक सुधार करने के लिए केंद्र सरकार को राज्यों से भी विमर्श करना चाहिए जिससे मुस्लिम समाज को कहीं से यह न लगे कि उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है. अगर इस तरह के प्रश्न बार बार सामने आ रहे हैं तो देश के इस्लामिक केंद्रों के लिए भी यह विचार करने का समय है कि कमी कहाँ पर रह रही है और उससे बिना किसी तरह की राजनीति में उलझे हुए किस तरह से सही किया जा सकता है. सबसे अच्छा तो यह होगा कि सरकार अपनी तरफ से इस मुद्दे पर इस्लामिक केंद्रों को कुछ समय दे और इस समस्या का समाधान उनसे ही पूछे और कोर्ट भी इस पूरी कार्यवाही पर अपने स्तर से निगरानी करे जिससे आने वाले समय में इसमें वे संशोधन किये जा सकें जो आज विश्व के अन्य इस्लामिक देशों में किये जा चुके हैं.        
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