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बुधवार, 30 नवंबर 2016

काला धन सरकार और कानून

                                                     ८ नवम्बर के विमुद्रीकरण घोषणा के बाद से जिस तरह से सरकार और रिज़र्व बैंक के सामने एक बिल्कुल नयी तरह की समस्या आ रही है उससे संभवतः कम तैयारियों के साथ शुरू किये गए विमुद्रीकरण के बहुत कमज़ोर परिणामों के साथ केंद्र सरकार और भी अधिक निशाने पर आ जाये क्योंकि इतने बड़े कदम से जहाँ सरकार को ४ से ५ लाख करोड़ रूपये बचा लेने की संभावनाएं दिखाई दे रही थीं अब यह आंकड़ा गड़बड़ाने की तरफ जाना शुरू हो चुका है तथा विमुद्रीकरण को काले धन को अर्थव्यवस्था से कम करने या पूरी तरह से हटाने के लिए एक विकल्प के रूप में अपनाये जाने की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं. देश और विदेशों के अर्थशास्त्री विमुद्रीकरण को कभी भी काले धन पर अंकुश लगाने में महत्वपूर्ण कदम नहीं मानते हैं और जिस तरह से सरकार को आंकड़ों के दम पर कुछ लोग यह समझाने में सफल हुए कि इससे देश का काल धन समाप्त हो जायेगा वह भी यथार्थ पर कम और भ्रामक अधिक लगता है. इस पूरे प्रकरण में सबसे चिंताजनक बात यह है कि अपने विशुद्ध राजनैतिक लाभ हानि के साथ आर्थिक हितों को ध्यान में रखने वाले पीएम मोदी से आखिर इस तरह की बड़ी चूक कैसे हो गयी क्योंकि कहीं न कहीं उनसे निश्चित तौर पर सही आंकड़ों को या तो छिपाया गया या फिर तथ्यपरक बातें उनके सामने रखी ही नहीं गयीं.
                                    सरकार के पास इस योजना के लिए कोई बड़ा वैकल्पिक प्लान भी नहीं था क्योंकि जब तक सरकार जान पाती तब तक काले धन को सोने, प्रॉपर्टी और हवाला के माध्यम से काफी हद तक ठिकाने लगा दिया गया था और अब मजबूरी में अपने को सही साबित करने के लिए सरकार की तरफ से ५०-५० योजना को लाया गया है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिन लोगों ने बिना पूछताछ वाली ३०सितम्बर तक की आय घोषित करने की योजना में अपने राज नहीं खोले तो वे अब क्यों सामने आयेंगें ? पहले उन पर किसी भी तरह की कार्यवाही से सरकार ने खुद ही बचाने की बात की थी पर अब उन पर कुछ कानून लागू होंगें और यदि उनमें कोई गड़बड़ी पायी गयी तो आने वाले समय में उन्हें विभिन्न विभागों की जांचों का सामना भी करना पड़ सकता है. एक तरफ जहाँ काले धन वालों को कोई मुश्किल नहीं हुई वहीं आमलोगों को इससे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा जो कि पूरा देश देख रहा है क्योंकि सरकार और खुद पीएम मोदी जनता से यह अपील कर रहे हैं कि देश के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें कुछ कष्ट उठाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा.
                                    देश के आर्थिक परिदृश्य पर जिस तरह का नकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू हो चुका है उसके चलते ही जीडीपी से जुड़े हुए अनुमानों को कम किया जाने लगा है जिससे आने वाले समय में देश की आर्थिक गतिविधियों को तेज़ करने में जुटी हुई सरकार को बहुत बड़ा धक्का भी लगने वाला है क्योंकि चुनावों के समय किये गए प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार सृजन के स्थान पर बिना सम्पूर्ण तैयारी के किये गए इस विमुद्रीकरण से लगभग सभी क्षेत्रों में पहले से उपलब्ध रोज़गार के अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है. अब भी समय है कि सरकार और विपक्ष को संसद में बैठकर बिना एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के देश के आर्थिक परिदृश्य को सही करने के बारे में सोचना चाहिए. सरकार को यह नहीं मानना चाहिए कि वह जो चाहे कर सकती है और विपक्ष को भी सरकार की हर मंशा को संदेह की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए. सदन सुचारू रूप से चले यह सत्ता पक्ष की अधिक ज़िम्मेदारी होती है क्योंकि उसे ही विपक्ष को साथ में लेकर चलना भी होता है. किसी मुद्दे पर बड़े विवाद होने की सम्भावना को देखते हुए उस पर संसदीय समितियों में गहन चर्चा भी होनी चाहिए जिससे सदन में आवश्यक विधायी काम काज किया जा सके. आज सरकार भी सदन को कम से कम दिन ही चलाना चाहती है जिससे विपक्ष अपनी बात रखने के स्थान पर अपनी उपेक्षा को कार्यवाही बाधित कर दिखाने को मजबूर होता है अब इस पूरी स्थिति को बदलने की आवश्यकता भी है जिससे देश की गति को बनाये रखा जा सके.        
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