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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

उभरते राजनैतिक ध्रुव

                                                             पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने सीधे पीएम मोदी के खिलाफ विभिन्न मुद्दों पर मोर्चे खोल रखे हैं उसके चलते उनकी बातों को भी हर तरह के राष्ट्रीय मीडिया में भरपूर स्थान मिलना शुरू हो चुका है. आज जब देश में संघ और खुद सत्ताधारी भाजपा भी पीएम मोदी के साथ खड़े होने वाला दूसरा नेता खोजने में लगी हुई है तो उस परिस्थिति में गैर भाजपाई दलों से आगे बढ़कर राहुल का मोदी विरोध की कमान को संभालना कांग्रेस का एक सोचा समझा कदम भी हो सकता है. पहले भूमि अधिग्रहण फिर जीएसटी और अब नोटबंदी पर जिस तरह से राहुल ने आगे आकर पीएम मोदी पर हमले किये हैं वे राजनैतिक विश्लेषकों के लिए भी बड़े आश्चर्य से कम नहीं हैं क्योंकि बोलने में राहुल गांधी के पास पीएम मोदी जैसी शैली आक्रामकता के साथ उतनी परिपक्वता भी नहीं है जिससे वे सीधे तौर पर मोदी का मुक़ाबला कर सकें पर उन्हें कहीं न कहीं से इस तरफ आगे बढ़ना ही था जिस पर बढ़ना शुरू करके उन्होंने अपने राजनैतिक भविष्य के लिए धरातल तलाशना शुरू कर दिया है जिसका असर लंबे समय में देश की राजनीति पर भी पड़ने की सम्भावना है क्योंकि राजीव गाँधी के बाद संभवतः राहुल गाँधी कांग्रेस की तरफ से आम जनता से जुड़ने के लिए अब प्रयासरत दिखाई दे रहे हैं जबकि बीच के समय में पार्टी में इस बात की कमी दिखाई दे रही थी.
                                          बेशक कम अनुभव के साथ ही सही पर अब राहुल ने जिस तरह से सीधे पीएम मोदी को भी अपने बारे में बात करने के लिए उकसाने में सफलता पायी है वह प्राथमिक चरण में उनकी नीति की सफलता ही कही जा सकती है क्योंकि पिछले कुछ समय से जिस तरह से भाजपा और संघ के संगठन सीधे राहुल पर आक्रामक हो रहे हैं उससे उन्हें समाचारों में स्थान मिलना खुद ही शुरू हो गया है. कुछ आरोप केवल राजनैतिक लाभ और विरोधी पर थोड़ी सी प्रारंभिक बढ़त बनाने के लिए ही लगाए जाते हैं पर जिस तरह से उनको सामने लाया जाता है इससे जिस व्यक्ति पर आरोप लगते हैं वह खुद को निर्दोष साबित करने के लिए संघर्षरत और प्रयासरत दिखाई देने लगता है. भाजपा और उसकी सोशल मीडिया टीम ने जिस तरह से राहुल पर लगातार हमले किये और अब राहुल भी पलटवार करने के लिए सीधे पीएम मोदी को ही चुन रहे हैं तो उसके बाद वाराणसी में पीएम ने जितना समय राहुल पर संकेतों में बोलने में खर्च किया वह राहुल की रणनीतिक जीत कही जा सकती है कि वे हर मोर्चे पर भले ही कितने कमज़ोर और वक्ता के रूप में कितने भी अपरिपक्व क्यों न हों उनको खुद ही भाजपा और पीएम मोदी मजबूरी में या अनजाने में वह स्थान देना शुरू कर चुके हैं जो कांग्रेस चाहती है.
                                         पीएम मोदी की शैली और वाक्पटुता का राहुल मुक़ाबला नहीं कर सकते हैं पर कल राहुल की तरफ से वाराणसी में मोदी द्वारा उनको लेकर मज़ाक उड़ाने पर भी एक वक्तव्य में ही बड़ी लाइन खींच दी वह अपने आप में किसी आश्चर्य से कम नहीं है. बेशक राहुल को लेकर पीएम मोदी के हलके फुल्के बयान से वहां बैठे लोगों का मनोरंजन हुआ हो पर शाम तक बहराइच में राहुल ने जिस तरह से यह कहा कि भले ही उनका मज़ाक उड़ाया जाये पर जनता के सवालों का जवाब भी दिए जाएँ वह अपने आप में भाजपा और उसके थिंक टैंकों के लिए चिंता का सबब बन सकता है क्योंकि मई २०१४ में जिस कांग्रेस और राहुल गाँधी को लोग चुका हुआ मान रहे थे आज वह पीएम की मज़बूत छवि पर निशाने साधने की स्थिति में आखिर किस तरह से पहुँच चुके हैं ? भूमि अधिग्रहण पर सरकार को अपने कदम वापस खींचने पर कमज़ोर कांग्रेस ने ही मज़बूर किया था जिस बात को आज यूपी की जनसभाओं में राहुल बखूबी इस्तेमाल करने में लगे हुए हैं और आज जिन आरोपों को पीएम मोदी पर लगाया जा रहा है आने वाले समय में उनको लेकर भी राजनीति किये जाने की पूरी संभावनाएं भी हैं. नोटबंदी पर आज भी आम जनता सरकार के कदम के साथ है पर आने वाले दिनों में लोगों की समस्याओं पर जब बातें की जायेंगीं तो कांग्रेस अपनी आज की रणनीति का स्वाभाविक रूप से भरपूर लाभ उठाने की स्थिति में होगी. आज कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है पर ढाई वर्षों में पीएम मोदी पर हमलावर होकर वह देश के राजनैतिक मंच पर राहुल गांधी को उनके सामने के छोटे रूप में ही सही स्थापित करने में सफल हो गयी है जो कि उसके लिए किसी सफलता से कम नहीं है.    
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