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रविवार, 26 मई 2019

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संकट-2

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संकट-1 से आगे ........        
                                      सबसे पहले कांग्रेस को अपने संगठन के बारे में सोचना होगा क्योंकि आज अधिकांश जगहों पर संगठन की जो स्थिति बनी हुई है उसके दम पर भाजपा के मज़बूत संगठन और संघ के जमीनी समर्थन का सामना नहीं किया जा सकता है. विचार करने योग्य यह भी है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के चुनावी क्षेत्रों में संगठन की हालत इतनी कमज़ोर क्यों है जबकि उनके नाम पर पार्टी पूरे देश में जनादेश मांगती है?  कांग्रेस और देश में राजनीति का एक दौर वह भी था जब नीचे से आगे बढ़ने वाले कार्यकर्ताओं के लिए चुनावी राजनीति में हिस्सा लेने के लिए एक प्रक्रिया हुआ करती थी पर पिछले कुछ दशकों से इन बातों पर ध्यान देना बिलकुल ही बंद कर दिया गया है जिससे पार्टी का निचले स्तर का संगठन भी विपक्षियों के कमज़ोर होने और अपने नेता के प्रभाव के दम पर ही चुनाव लड़ने की प्राथमिकता में लगा था जिससे उसका जनता के सरोकारों से कोई मतलब ही नहीं रह गया और युवा पीढ़ी ने अपने को इस पूरी चुनावी प्रक्रिया में भाजपा के निकट पाया कर उसके लिए वोट भी किया। 
                                           इस मामले में यदि अमेठी को एक उदाहरण के तौर पर देखें तो वहां के संगठन को सदैव यही लगता रहता था कि यह पार्टी और गाँधी परिवार की सीट है इसलिए यहाँ उसे कोई खतरा नहीं है जिससे संगठन ने आम जनता से संवाद बनाये रखने को इतनी प्राथमिकता नहीं दी जितनी उसे मिलनी चाहिए थी. इसका परिणाम आज सबके सामने है क्योंकि कांग्रेस का संगठन वहां केवल राहुल के भरोसे ही रहा जबकि पिछली बार  १ लाख वोटों से हारने के बाद भी भाजपा ने स्मृति ईरानी के लिए खुलकर पूरे क्षेत्र में काम किया और इस बात का प्रचार भी किया कि गाँधी परिवार ने वहां के नागरिकों के लिए कुछ भी नहीं किया। आज की युवा पीढ़ी के लिए विकास की वही छवि बन रही है जो भाजपा बनाना चाह रही है क्योंकि कांग्रेस कहीं से भी इस बात का प्रतिकार करती हुई नहीं दिखाई दी कि राज्य में उसकी सरकार न होने के कारण केंद्र में सरकार होने पर भी वह क्षेत्र के लिए उतना काम नहीं कर पायी जितना राज्य में सरकार होने से संभव था. अमेठी में कांग्रेस की इस कमज़ोरी का भाजपा ने पूरा लाभ लिया और युवाओं की सोशल मीडिया में पैठ को देखते हुए राहुल गाँधी की नकारात्मक छवि बनाने में कोई कस्र भी नहीं छोड़ी। इस मामले कांग्रेस की हिचकिचाहट ने उसके लिए और भी अधिक समस्या खडी कर दी क्योंकि उसने पूर्व सांसद राम्या को सोशल मीडिया में सीमित काम करने को कहा जबकि उनके आने के बाद कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम कई जगहों पर भाजपा की टीम पर बढ़त बनाने में सफल होती दिखाई दे रही थी.
                                       आज यह सवाल भी प्रासंगिक है कि अमेठी ने इतने वर्षों तक कांग्रेस को जितना सम्मान दिया क्या संगठन के रूप में पार्टी ने वहां के लोगों से पूरा संपर्क बनाये रखा?  निश्चित तौर पर राहुल गांधी के पास मूर्छा में पड़ी हुई कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का काम था और है पर क्या अमेठी की कांग्रेस कमेटी उनसे यह आशा करती है कि वे स्वयं पूरे देश के मुक़ाबले अमेठी में अधिक समय देने का काम करें?  अगर कांग्रेस के पास बूथ लेवल के माध्यम से संगठन को खड़ा करने का कोई प्लान है तो उसकी परीक्षा अमेठी में ही करनी होगी।  कांग्रेस के बड़े नेताओं को इस बार भाजपा ने जिस तरह से घेरने में सफलता पायी थी अगली बार वह इस कड़ी में और भी अधिक मुखर होने वाली है क्योंकि रायबरेली से २०२४ में सोनिया गाँधी चुनाव लड़ेंगीं या  नहीं अभी तय नहीं है पर पिछले चुनावों से इस बार के चुनावों तक उनकी जीत का अंतर तीन लाख से घटकर एक लाख साठ हज़ार पर आ गया है और मेरा यह मानना है कि भाजपा का पूरा ध्यान अब रायबरेली पर ही होने वाला है और यदि कांग्रेस संगठन ने अमेठी की तरह लापरवाही की तो निश्चित तौर पर अगली बार रायबरेली में भी अमेठी की कहानी दोहराई जाने वाली है. क्रमशः ......          
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