देश में हाल ही में संपन्न हुए आम चुनावों में जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के संयुक्त नेतृत्व में भाजपा ने अपनी सफलता के नए आयाम स्थापित किये हैं उनको देखते हुए आने वाले समय में भाजपा की रणनीति का ही पता चलता है जिसमें उसने आखिल भारतीय स्तर पर उसका मुक़ाबला करने की स्थिति में आ सकने वाली पार्टी कांग्रेस को परिणामों के अनुसार बहुत कमज़ोर स्थिति में पहुंचा दिया है. इस पूरी प्रक्रिया को समझने के लिए कांग्रेस को गंभीर आत्ममंथन करने और कमियों को वास्तव में खोजने पर ध्यान देना ही होगा वर्ना पहले से कमज़ोर हुई कांग्रेस के लिए भाजपा के नेता-द्वय और भी बड़े संकट उत्पन्न करने से नहीं चूकने वाले हैं. यह बात सभी जानते हैं कि आखिर भारतीय स्तर पर केवल कांग्रेस के पास ही किसी न किसी स्तर पर संगठन और कार्यकर्त्ता मौजूद हैं जो एक सुसंगठित भाजपा के सामने कहीं ठहरते तो नहीं हैं फिर भी आवश्यकता पड़ने पर वे एक विकल्प भी साबित हो सकते हैं. परन्तु पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से कांग्रेस ने अपने संघर्ष करने की इच्छा को ही समाप्त कर रखा है उसमें उसकी और भी दुर्दशा होने से वह नहीं बच सकती है.
मोदी-शाह की जोड़ी इस बात को अच्छी तरह समझती है कि आने वाले समय में यदि भाजपा के लिए कोई चुनौती बन सकता है तो उसमें केवल कांग्रेस का ही नाम है इसलिए वे प्रतीकात्मक तौर पर सधी हुई रणनीति के चलते कांग्रेस का मनोबल तोड़ने का काम करने में लगे हुए हैं जिसका लाभ उन्हें मिलने भी लगा है. इस चुनाव में गंभीरता से देखा जाये तो भाजपा ने अपना पूरा ध्यान कांग्रेस के उन बड़े नेताओं की सीटों पर लगाया जो भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सकते हैं इस कड़ी में राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, दीपेंदर हुडा, सुष्मिता देव जैसे उन नामों पर अधिक ध्यान दिया जिनको हराने से कांग्रेस के मनोबल को तोडा जा सकता था और जो युवा होने के साथ संसद और सड़क पर अपनी बातों का प्रभाव दूसरों पर डालने में सक्षम भी दिखाई देते हैं. इस चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी ने कांग्रेस की इस मज़बूती पर सुनियोजित तरीके से प्रहार किया जिसका परिणाम सामने दिखाई दे रहा है. जातीय समीकरणों को साधते हुए जिस तरह से इन स्थानों पर ज़मीनी कार्यकर्ताओं को मज़बूती दी गयी उसके जवाब में उन्होंने अपने वोटों को परिणाम में बदलने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी।
यदि कांग्रेस को आने वाले समय में अपनी बची हुई राजनैतिक ज़मीन को बचाये रखना है तो उसे पूरे देश में आगामी विधानसभाओं के कार्यकालों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों में अपने संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन करना ही होगा क्योंकि जनता के मुद्दों पर बिना संघर्ष किये राजनीति करने वाले नेताओं के दिन अब समाप्त होने को हैं. इस संकट से बचने के लिए कांग्रेस को एक बार फिर से सदैव हमलावर रहने के स्थान पर मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार काम करने की नीति अपनाने होगी। कांग्रेस नेतृत्व को विभिन्न राज्यों में अपने दिखावे के लिए बनाये गए पार्टी अध्यक्षों से अगले एक महीने में ही पीछा छुड़ाना होगा जिससे नए नेतृत्व के लिए रास्ते खोले जा सकें। जनता के मुद्दों से जुड़ने और विभिन्न स्थानों पर सड़कों पर संघर्ष करने के बाद ही अब कांग्रेस की स्वीकार्यता जनता में बन सकती है. पार्टी को सबसे पहले यूपी बिहार और बंगाल पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इन तीन महतवपूर्ण राज्यों में उसके पास कोई संगठन और मज़बूत नेता नहीं बचा है जो हर बात में बिना केंद्रीय नेतृत्व की तरफ देखे अपने स्तर से विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष कर सके. लगभग १/३ लोकसभा सीटों पर अप्रासंगिक होकर कांग्रेस कभी भी भाजपा का सामना नहीं कर पायेगी क्योंकि इन राज्यों से ही भाजपा अपने को सत्ता के निकट पहुँचाने का काम करती हुई दिखाई देती है. क्रमशः ......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
मोदी-शाह की जोड़ी इस बात को अच्छी तरह समझती है कि आने वाले समय में यदि भाजपा के लिए कोई चुनौती बन सकता है तो उसमें केवल कांग्रेस का ही नाम है इसलिए वे प्रतीकात्मक तौर पर सधी हुई रणनीति के चलते कांग्रेस का मनोबल तोड़ने का काम करने में लगे हुए हैं जिसका लाभ उन्हें मिलने भी लगा है. इस चुनाव में गंभीरता से देखा जाये तो भाजपा ने अपना पूरा ध्यान कांग्रेस के उन बड़े नेताओं की सीटों पर लगाया जो भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सकते हैं इस कड़ी में राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, दीपेंदर हुडा, सुष्मिता देव जैसे उन नामों पर अधिक ध्यान दिया जिनको हराने से कांग्रेस के मनोबल को तोडा जा सकता था और जो युवा होने के साथ संसद और सड़क पर अपनी बातों का प्रभाव दूसरों पर डालने में सक्षम भी दिखाई देते हैं. इस चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी ने कांग्रेस की इस मज़बूती पर सुनियोजित तरीके से प्रहार किया जिसका परिणाम सामने दिखाई दे रहा है. जातीय समीकरणों को साधते हुए जिस तरह से इन स्थानों पर ज़मीनी कार्यकर्ताओं को मज़बूती दी गयी उसके जवाब में उन्होंने अपने वोटों को परिणाम में बदलने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी।
यदि कांग्रेस को आने वाले समय में अपनी बची हुई राजनैतिक ज़मीन को बचाये रखना है तो उसे पूरे देश में आगामी विधानसभाओं के कार्यकालों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राज्यों में अपने संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन करना ही होगा क्योंकि जनता के मुद्दों पर बिना संघर्ष किये राजनीति करने वाले नेताओं के दिन अब समाप्त होने को हैं. इस संकट से बचने के लिए कांग्रेस को एक बार फिर से सदैव हमलावर रहने के स्थान पर मुद्दों पर आधारित राजनीति के अनुसार काम करने की नीति अपनाने होगी। कांग्रेस नेतृत्व को विभिन्न राज्यों में अपने दिखावे के लिए बनाये गए पार्टी अध्यक्षों से अगले एक महीने में ही पीछा छुड़ाना होगा जिससे नए नेतृत्व के लिए रास्ते खोले जा सकें। जनता के मुद्दों से जुड़ने और विभिन्न स्थानों पर सड़कों पर संघर्ष करने के बाद ही अब कांग्रेस की स्वीकार्यता जनता में बन सकती है. पार्टी को सबसे पहले यूपी बिहार और बंगाल पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इन तीन महतवपूर्ण राज्यों में उसके पास कोई संगठन और मज़बूत नेता नहीं बचा है जो हर बात में बिना केंद्रीय नेतृत्व की तरफ देखे अपने स्तर से विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष कर सके. लगभग १/३ लोकसभा सीटों पर अप्रासंगिक होकर कांग्रेस कभी भी भाजपा का सामना नहीं कर पायेगी क्योंकि इन राज्यों से ही भाजपा अपने को सत्ता के निकट पहुँचाने का काम करती हुई दिखाई देती है. क्रमशः ......
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