देश में जिस तरह से आम चुनावों या विधानसभाओं के चुनावों में विभिन्न दलों के प्रत्याशियों के पक्ष में सम्बंधित दलों के स्टार प्रचारकों की तरफ से रोड शो करने माहौल बनाये जाने का काम किया जाता है वह निश्चित रूप से उनका संवैधानिक अधिकार है पर पहले बड़े नेताओं की छुटपुट होने वाली बड़ी रैलियों के अलावा प्रत्याशी स्थानीय स्तर पर अपने प्रयासों से ही शांत वोटर्स को प्रभावित करने का काम किया करते थे. इधर कुछ चुनावों से रोड शो जैसा दिखावा सामने आने से इनकी चपेट में आने वाले क्षेत्रों में सामान्य जनजीवन प्रभावित होने लगा है जिससे सभी राजनैतिक दलों के साथ चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन को भी इस बारे में विचार करने का समय आ गया है कि चुनाव के नाम पर आम नागरिकों को किसी भी तरह की अनावश्यक परेशानी का सामने न करना पड़े. इस बारे में केंद्रीय चुनाव आयोग को ही कुछ ठोस कदम उठाने के बारे में सोचना शुरू करना होगा क्योंकि अपने माहौल बनाने के भ्रम के चलते कोई भी राजनैतिक दल इसको रोकने की बात से सहमत नहीं होगा।
देश के उच्च सुरक्षा प्राप्त नेताओं के इस तरह से रोड शो करने से जहाँ सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के लिए बहुत बड़ी चुनौती सामने आ जाती है वहीं खुद इन बड़े नेताओं की सुरक्षा में गंभीर चूक हो जाने की संभावनाएं बढ़ जाती है. इन नेताओं की चुनावी सभाओं में आम जनता का जो धन पानी की तरह बहाया जाता है वह संगठित रूप से किसी बड़े प्रोजेक्ट में डालकर उसकी गति बढ़ाने के काम भी आ सकता है पर देश के राजनैतिक दीवालियेपन के कारण इस दिशा में कोई सोचना भी नहीं चाहता है। यहाँ पर यह बात भी सामने आ सकती है कि देश के संविधान ने हर चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को अपने हिसाब से प्रचार करने की छूट दे रखी है पर साथ उसी संविधान ने देश के आम नागरिकों को भी अपनी स्वतंत्रता के साथ जीने की आज़ादी भी दे रखी है. नेताओं की इस तरह की दिखावे वाली राजनीति के चलते अब यह कौन तय करेगा कि यहाँ पर नेताओं और आम जनता के अधिकारों की रक्षा किस तरह से की जा सकती है?
इस बारे में सबसे सही यही रहेगा कि सभी दल मिलकर इस बारे में सोचें क्योंकि कई बार नेताओं के इस तरह से प्रचार करने के समय आम यातायात न चाहते हुए भी बाधित हो जाता है जिससे आवश्यक कार्य से आने जाने आम लोगों के साथ अति आवश्यक कार्यों में लगे हुए पुलिस, प्रशासन, फायर और एम्बुलेंस के लिए बहुत बड़ी समस्या खडी हो जाती है. क्या कुछ ऐसा नहीं किया जा सकता है कि जिसमें नेताओं को समुचित रूप से अपने प्रचार को करने की छूट भी मिल जाये और आमलोगों को किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े ? क्या रोड शो को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या फिर इसमें शामिल वाहनों और लोगों की संख्या को उसके मार्ग के अनुरूप सीमित रखने की कोशिश की जानी चाहिए जिससे नेताओं को भी कानून के अनुरूप कार्य करने की आदत पड़ सके. इस बात को उन लोगों के बारे में सोचते हुए भी आगे बढ़ाना चाहिए जिन पर इस तरह के दिखावे का सबसे ज़्यादा असर पड़ता है क्योंकि जब तक पीड़ितों के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जायेगा तब तक इसका कोई सही हल नहीं निकाला जा सकेगा।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश के उच्च सुरक्षा प्राप्त नेताओं के इस तरह से रोड शो करने से जहाँ सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के लिए बहुत बड़ी चुनौती सामने आ जाती है वहीं खुद इन बड़े नेताओं की सुरक्षा में गंभीर चूक हो जाने की संभावनाएं बढ़ जाती है. इन नेताओं की चुनावी सभाओं में आम जनता का जो धन पानी की तरह बहाया जाता है वह संगठित रूप से किसी बड़े प्रोजेक्ट में डालकर उसकी गति बढ़ाने के काम भी आ सकता है पर देश के राजनैतिक दीवालियेपन के कारण इस दिशा में कोई सोचना भी नहीं चाहता है। यहाँ पर यह बात भी सामने आ सकती है कि देश के संविधान ने हर चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को अपने हिसाब से प्रचार करने की छूट दे रखी है पर साथ उसी संविधान ने देश के आम नागरिकों को भी अपनी स्वतंत्रता के साथ जीने की आज़ादी भी दे रखी है. नेताओं की इस तरह की दिखावे वाली राजनीति के चलते अब यह कौन तय करेगा कि यहाँ पर नेताओं और आम जनता के अधिकारों की रक्षा किस तरह से की जा सकती है?
इस बारे में सबसे सही यही रहेगा कि सभी दल मिलकर इस बारे में सोचें क्योंकि कई बार नेताओं के इस तरह से प्रचार करने के समय आम यातायात न चाहते हुए भी बाधित हो जाता है जिससे आवश्यक कार्य से आने जाने आम लोगों के साथ अति आवश्यक कार्यों में लगे हुए पुलिस, प्रशासन, फायर और एम्बुलेंस के लिए बहुत बड़ी समस्या खडी हो जाती है. क्या कुछ ऐसा नहीं किया जा सकता है कि जिसमें नेताओं को समुचित रूप से अपने प्रचार को करने की छूट भी मिल जाये और आमलोगों को किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े ? क्या रोड शो को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या फिर इसमें शामिल वाहनों और लोगों की संख्या को उसके मार्ग के अनुरूप सीमित रखने की कोशिश की जानी चाहिए जिससे नेताओं को भी कानून के अनुरूप कार्य करने की आदत पड़ सके. इस बात को उन लोगों के बारे में सोचते हुए भी आगे बढ़ाना चाहिए जिन पर इस तरह के दिखावे का सबसे ज़्यादा असर पड़ता है क्योंकि जब तक पीड़ितों के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा जायेगा तब तक इसका कोई सही हल नहीं निकाला जा सकेगा।
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