भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संकट-2 से आगे
शीर्ष स्तर पर कांग्रेस कार्यसमिति में जिस तरह से राहुल गांधी ने पार्टी की शर्मनाक पराजय के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हुए इस्तीफ़ा दिया और उसे नामंज़ूर कर दिया गया उसके बारे में भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. देश के महत्वपूर्ण राज्यों में दशकों से सत्ता से बाहर होने के बाद भी आज जिस तरह से सीमित संख्या में बचे हुए कांग्रेसियों में केवल पद पर बने रहने की लालसा है यदि इस पर पूरी तरह से विराम नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में पार्टी की और भी दुर्दशा होने वाली है. आज देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो उसकी तरफ से उन राज्यों में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए अब पुराने जमे हुए घाघ नेताओं को पदों से हटाकर नए नेतृत्व को समाने लाने की कोशिश की जानी चाहिए। वर्षों से पदों पर बैठे इन चंद बड़े नामों के कारण ही पार्टी आगे नहीं बढ़ पा रही है जिससे ज़मीनी स्तर पर उसका जुड़ाव आम लोगों से भी नहीं हो पा रहा है. आज भाजपा जहाँ मज़बूत है वह वहां भी अपने संगठन पर संघ के सहयोग से बराबर स्थितियों को और भी मज़बूत बनाने का काम करने में निरंतर लगी रहती है जबकि पिछले वर्ष तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस की राज्य इकाइयों की तरफ से ऐसे कदम नहीं उठाये जा रहे हैं जिससे उन राज्यों में ही कांग्रेस और मज़बूती के साथ नए लोगों तक अपनी पहुच बना सके.
आज जब भाजपा मोदी और शाह की जोड़ी के निर्देशन और नेतृत्व में निरंतर सफलता के नए आयाम छूती जा रही है तो उस परिस्थिति में नए लोगों को कांग्रेस से जोड़ना और भी बड़ी चुनौती होने वाला है. यदि कांग्रेस को सम्पूर्ण देश की राजनीति में एक बार फिर से प्रासंगिक होना है तो उसे अपने सेवा दल, महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, छात्र कांग्रेस को पूरी तरह से सक्रिय करना ही होगा जिससे समाज के हर वर्ग के लोगों की समस्याओं के साथ संघर्ष करने की उसकी पुरानी भावना को ज़िंदा किया जा सके. राजनैतिक रूप से निर्णय लेने और उनके परिणामों के अनुरूप नेताओं की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए अब कांग्रेस को खुद को तैयार करना ही होगा वर्ना आने वाले चुनावों में उसकी पराजय एक स्थायी भाव भी बन सकती है जिससे आज जो भी समर्पित कार्यकर्त्ता पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं वे भी पार्टी से किनारा करते नज़र आने लगेंगे। पार्टी को अंदरूनी समस्याओं से निपटने के लिए एक व्यवस्था बनानी होगी क्योंकि जो धरातल पर मज़बूत नेता हैं उसकी बातों को सुना जाना बहुत आवश्यक है. २०१३ के बाद से ऐसे बहुत से नेता सामने आये जिन्होंने नेतृत्व की तरफ से उपेक्षा के चलते पार्टी से किनारा कर लिया और आज वे भाजपा में जाकर महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं. पार्टी को इस संकट को भी देखना होगा वर्ना गलत सलाहों पर लिए गए फैसलों से पार्टी का निरंतर नुकसान होता रहेगा।
पार्टी में राहुल गांधी की लाख कोशिशों के बाद भी वह परिवर्तन नहीं आ पाया है जिसमें एक सामान्य कार्यकर्ता अपनी बात को पार्टी के मंच पर रखने के लिए कोई उपयुक्त मंच पा सकता हो जब तक ज़मीन से जुड़े नेताओं की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक किसी भी परिस्थिति में पार्टी के बूथ मज़बूत नहीं हो सकते हैं. अगले कुछ वर्षों तक परिणामों की चिंता न करते हुए पार्टी को महत्वपूर्ण राज्यों में बदलाव को शुरू करना ही होगा यूपी जैसे राज्य में जहाँ से केंद्र की सत्ता के समीकरण बनते बिगड़ते हैं वहां राज्य का नेतृत्व किस तरह से काम करता है यह किसी से भी छिपा नहीं है. यदि इसी तरह के सुविधाभोगी नेताओं के हाथों में पार्टी की कमान रहती है तो यूपी में पार्टी का अभी तक बचा हुआ ६% वोट भी छिटकने में देर नहीं लगने वाली है. जब देश की लगभग १५० सीटों यूपी-बिहार-बंगाल में पार्टी के पास कुछ बचा ही नहीं है तो उससे केंद्र में सत्ता पाने की आशा भी मृग मरीचिका से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती है. राजनैतिक परिणामों में आज कांग्रेस निम्नतम स्तर पर पहुंची हुई है और यदि इस स्थिति में जल्दी ही बड़े बदलाव न किये गए तो आने वाले समय में पार्टी के कमज़ोर संगठन को पूरी तरह ध्वस्त होने में समय नहीं लगने वाला है.
क्रमशः .........
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
शीर्ष स्तर पर कांग्रेस कार्यसमिति में जिस तरह से राहुल गांधी ने पार्टी की शर्मनाक पराजय के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हुए इस्तीफ़ा दिया और उसे नामंज़ूर कर दिया गया उसके बारे में भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. देश के महत्वपूर्ण राज्यों में दशकों से सत्ता से बाहर होने के बाद भी आज जिस तरह से सीमित संख्या में बचे हुए कांग्रेसियों में केवल पद पर बने रहने की लालसा है यदि इस पर पूरी तरह से विराम नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में पार्टी की और भी दुर्दशा होने वाली है. आज देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो उसकी तरफ से उन राज्यों में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए अब पुराने जमे हुए घाघ नेताओं को पदों से हटाकर नए नेतृत्व को समाने लाने की कोशिश की जानी चाहिए। वर्षों से पदों पर बैठे इन चंद बड़े नामों के कारण ही पार्टी आगे नहीं बढ़ पा रही है जिससे ज़मीनी स्तर पर उसका जुड़ाव आम लोगों से भी नहीं हो पा रहा है. आज भाजपा जहाँ मज़बूत है वह वहां भी अपने संगठन पर संघ के सहयोग से बराबर स्थितियों को और भी मज़बूत बनाने का काम करने में निरंतर लगी रहती है जबकि पिछले वर्ष तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद भी कांग्रेस की राज्य इकाइयों की तरफ से ऐसे कदम नहीं उठाये जा रहे हैं जिससे उन राज्यों में ही कांग्रेस और मज़बूती के साथ नए लोगों तक अपनी पहुच बना सके.
आज जब भाजपा मोदी और शाह की जोड़ी के निर्देशन और नेतृत्व में निरंतर सफलता के नए आयाम छूती जा रही है तो उस परिस्थिति में नए लोगों को कांग्रेस से जोड़ना और भी बड़ी चुनौती होने वाला है. यदि कांग्रेस को सम्पूर्ण देश की राजनीति में एक बार फिर से प्रासंगिक होना है तो उसे अपने सेवा दल, महिला कांग्रेस, युवा कांग्रेस, छात्र कांग्रेस को पूरी तरह से सक्रिय करना ही होगा जिससे समाज के हर वर्ग के लोगों की समस्याओं के साथ संघर्ष करने की उसकी पुरानी भावना को ज़िंदा किया जा सके. राजनैतिक रूप से निर्णय लेने और उनके परिणामों के अनुरूप नेताओं की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए अब कांग्रेस को खुद को तैयार करना ही होगा वर्ना आने वाले चुनावों में उसकी पराजय एक स्थायी भाव भी बन सकती है जिससे आज जो भी समर्पित कार्यकर्त्ता पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं वे भी पार्टी से किनारा करते नज़र आने लगेंगे। पार्टी को अंदरूनी समस्याओं से निपटने के लिए एक व्यवस्था बनानी होगी क्योंकि जो धरातल पर मज़बूत नेता हैं उसकी बातों को सुना जाना बहुत आवश्यक है. २०१३ के बाद से ऐसे बहुत से नेता सामने आये जिन्होंने नेतृत्व की तरफ से उपेक्षा के चलते पार्टी से किनारा कर लिया और आज वे भाजपा में जाकर महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए हैं. पार्टी को इस संकट को भी देखना होगा वर्ना गलत सलाहों पर लिए गए फैसलों से पार्टी का निरंतर नुकसान होता रहेगा।
पार्टी में राहुल गांधी की लाख कोशिशों के बाद भी वह परिवर्तन नहीं आ पाया है जिसमें एक सामान्य कार्यकर्ता अपनी बात को पार्टी के मंच पर रखने के लिए कोई उपयुक्त मंच पा सकता हो जब तक ज़मीन से जुड़े नेताओं की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक किसी भी परिस्थिति में पार्टी के बूथ मज़बूत नहीं हो सकते हैं. अगले कुछ वर्षों तक परिणामों की चिंता न करते हुए पार्टी को महत्वपूर्ण राज्यों में बदलाव को शुरू करना ही होगा यूपी जैसे राज्य में जहाँ से केंद्र की सत्ता के समीकरण बनते बिगड़ते हैं वहां राज्य का नेतृत्व किस तरह से काम करता है यह किसी से भी छिपा नहीं है. यदि इसी तरह के सुविधाभोगी नेताओं के हाथों में पार्टी की कमान रहती है तो यूपी में पार्टी का अभी तक बचा हुआ ६% वोट भी छिटकने में देर नहीं लगने वाली है. जब देश की लगभग १५० सीटों यूपी-बिहार-बंगाल में पार्टी के पास कुछ बचा ही नहीं है तो उससे केंद्र में सत्ता पाने की आशा भी मृग मरीचिका से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती है. राजनैतिक परिणामों में आज कांग्रेस निम्नतम स्तर पर पहुंची हुई है और यदि इस स्थिति में जल्दी ही बड़े बदलाव न किये गए तो आने वाले समय में पार्टी के कमज़ोर संगठन को पूरी तरह ध्वस्त होने में समय नहीं लगने वाला है.
क्रमशः .........
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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