शिक्षा के क्षेत्र में आखिर मुस्लिम जगत ने एक और रूढ़ी को तोड़ने की शुरुआत सउदी अरब से हुई. कल से वहां पर पहले सह शिक्षा विश्व विद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया. इस काम के लिए जहाँ कई लोगों ने मिलकर प्रयास किया वहीँ इसका सबसे बड़ा सन्देश दुनिया के सामने यह गया कि मुस्लिम भी शिक्षा के मामले में सारी दुनिया के साथ मिलकर चलने को तैयार है. शिक्षा का कोई धर्म नहीं होता पर कई बार धर्म ही शिक्षा के मार्ग में बाधा बन जाता है. किसी भी स्थिति में कोई यह नहीं कह सकता कि शिक्षा से उसे कोई नुकसान हुआ है. आज के समय में यदि शिक्षा का व्यापक प्रसार प्रचार किया जाये तो सारी दुनिया से मुस्लिम बच्चे आगे आकर अपनी मेधा का प्रदर्शन कर सकते हैं. पर भारत की बात करें तो पूरे मुस्लिम समाज में अब जाकर शिक्षा के लिए कुछ सोच बन गयी है. यह सही है कि सभी को धार्मिक शिक्षा भी देनी ही चाहिए पर जब धार्मिक शिक्षा प्रगति के मार्ग पर रूकावट बनने लगे तो उसका क्या किया जाये ? कोई भी धर्म यह नहीं सिखाता कि ये मत सीखो या वो मत सीखो. ज्ञान का अपना आधार है और उसे किसी अन्य आधार की ज़रुरत भी नहीं है. आज आवश्यकता है कि शिक्षा को धार्मिक शिक्षा से अलग किया जाये तभी समाज का भला हो सकता है. आबादी के अनुसार कितने धार्मिक शिक्षकों की आवश्यकता है इस बात पर विचार कर लिया जाये और इसके बाद ही उससे २५ % अधिक धार्मिक शिक्षकों को तैयार कर लिया जाये. धार्मिक शिक्षा एक हद तक समाज में सम्मान तो देती है पर किसी भी स्तर पर वह अच्छे जीवन के लिए कुछ पक्की तौर पर नहीं कह पाती. धर्म का मार्ग कठिन है पर ज्ञान से वंचित लोग किस तरह से धर्म का पालन कर सकते हैं ? ऐसे लोग चंद धार्मिक गुरुओं के चक्कर में फँस कर अपना सुख चैन भी खो देते हैं.
बैत-अल-हिक़मा (ज्ञान सदन) करार दिए गए इस सउदी अरब के विश्व विद्यालय से निस्संदेह ज्ञान की रौशनी फैलेगी और इस्लाम के केंद्र होने के कारण वहां से आने वाली हर बात को मुस्लिम समाज सही तरह से लेता रहा है तो अब विश्व में शिक्षा अब किसी बंधन में बंध कर इस्लाम को मानने वालों से दूर नहीं रहेगी... आमीन...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
शिक्षा को लेकर सकारात्मक सोच बनी रहे ...शुभ हो ..!!
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