भारत में विकास के तमाम दावों के बीच आज भी लगभग ४ लाख बच्चे जन्म के २४ घंटे के अन्दर ही मर जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जहाँ सारी दुनिया में यह संख्या ४० लाख है वहीं भारत का हर दसवां बच्चा इसमें शामिल है। आज के आधुनिक युग में जब हम चाँद पर पहुंचे हुए हैं तो यह बात समझ से बाहर है कि किस तरह से इतने बच्चों को बचाया नहीं जा सकता है ? रिपोर्ट का कहना है कि मात्र ४०० अरब की राशि खर्च करके ही इन बच्चों को बचाया जा सकता है क्योंकि इनमें से अधिकांश मौतें केवल संक्रमण के कारण ही होती हैं। आज के समय में जब बहुत सारी परियोजनाओं पर हमारा देश अथाह राशि खर्च कर रहा है तो इन बच्चों को बचाने के लिए तो यह राशि बहुत कम है। आज अगर हम सारी दुनिया की बात न भी करें तो इस समय इन बच्चों को बचाने के लिए देश के बड़े औद्योगिक घरानों की मदद भी ली जा सकती है। देश में नवजात शिशुओं के लिए योजनाओं की कमी नहीं है पर उनका सही ढंग से क्रियान्वयन हो पाना ही आज की सबसे बड़ी चुनौती है। सारी दुनिया के कुल खर्च के बारे में अनुमान है कि यह उस राशि से भी कम है जो दुनिया बोतल बंद पानी पीने में खर्च कर देती है। देश में स्वास्थ्य/ शिक्षा विभागों में जिस हद तक भ्रष्टाचार पनप चुका है वह भी देश के बच्चों को मारने में कम जिम्मेदार नहीं है। वर्तमान में जो भी योजनायें आ रही हैं उनका जम कर दुरूपयोग किया जा रहा है और सरकार पैसे देने के बाद यह नहीं देख पा रही है कि उसका सही उपयोग हुआ या नहीं ? अतः आज आवश्यकता है कि देश में इस बात के जागरूकता लायी जाए तभी देश के इन बच्चों को काल के गाल में असमय जाने से बचाया जा सकेगा। केवल सच्चे प्रयास से भी इस कमी को दूर किया जा सकता है।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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