अफगानिस्तान में हाल में हुए चुनावों में जिस तरह से धांधली के आरोप बराबर लगाये जा रहे हैं उससे तो लगता है कि वास्तव में वहां पर हुए इन चुनावों में काफी कुछ गडबडियां हुई हैं। अब करजई के प्रतिद्वंदी डा अब्दुल्लाह ने जिस तरह के आरोप संयुक्त राष्ट्र पर लगाये हैं उनका सत्यापन तो अवश्य किया जाना चाहिए। कोई भी नेता इस तरह के आरोप बिना सबूतों के तो लगाने से रहा ? अच्छा हो कि अफगानिस्तान में चुनावों की पवित्रता बनाई रखी जाए जिससे लोग इस व्यवस्था पर यकीन करते रहें। कहीं ऐसा न हो कि पश्चिमी देश अपने स्वार्थ के चलते करजई का समर्थन ही करते रहें और इस बीच जनता नेताओं से ऊब कर फिर से कट्टर पंथियों की तरफ़ झुकने लगे। देश में सबसे खास देश होना चाहिए आज तक बहुत सारी स्वार्थी नीतियों के कारण ही पता नहीं कितनी समस्याएँ दुनिया में बढ़ती जा रही हैं ? आज के ताकतवर देशों को यह समझना चाहिए कि उनकी ताकत का ग़लत प्रयोग होने पर उनका भी प्रतिरोध हो चुका है और आगे भी होता रहेगा। कुछ देश किसी दूसरे देश के बारे में सब कैसे कर सकते हैं जबकि उनको वहां कि हकीकत का ही पता नहीं होता है। अच्छा हो कि संयुक्त राष्ट्र अपने आप में एक मज़बूत संस्था रहे और ताकतवर देश जिनके अनुदान से यह संस्था चलती है वे भी यह समझें कि दान देने के बाद उस पर देने वाले का कोई हक नहीं रह जाता है ? अगर उन्हें इस तरह की शर्तों पर ही सहायता करनी है तो वे यह नाटक बंद कर दें क्योंकि सुलगते अफगानिस्तान में भेदभाव की बयार नफरत की चिंगारी को भड़काने में कोई कसर नहीं रखेगी और देर सवेर उसकी आंच सारी दुनिया को झुलसा भी सकती है...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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