मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 16 नवंबर 2009

हुर्रियत की पाक यात्रा

इस महीने बकरीद के बाद एक बार फिर से हुर्रियत के उदारवादी नेता पाक जाकर वहां के कश्मीरी नेताओं और अन्य लोगों से मिलने वाले हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं की इस गुट के पास भी कहने और करने के लिए बहुत ही कम है बस इसलिए ये भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाते हैं। आज कश्मीर घटी में वैसा माहौल नहीं रह जैसा कभी हुआ करता था। इस बात को हुर्रियत समझती भी है पर पता नहीं क्यों स्वीकार नहीं करना चाहती है। किसी भी देश में रहने वालों को वहां के शासकों से परेशानी हो सकती है, हो सकता है कि उनके यहाँ विकास कम हो रहा हो। फिर दुनिया में जब एक ही कश्मीर है जिसकी खूबसूरती बरबस ही लोगों को अपनी तरफ़ खींच लेती है तो उस जन्नत को दोज़ख बनाने का काम वहीं के चंद बाशिंदे कैसे कर सकते हैं ? यह भी सही है कि जब सामने से गोलियां चलती हैं तो कोई भी यह नहीं देख पाता कि गोली चलाने वाले के साथ कौन खड़ा है ? इस मुठभेड़ में बहुत से निर्दोष भी मारे जाते हैं। किसी भी आन्दोलन में यह सब चलता है पिछले वर्ष के गुज्जर आन्दोलन में जो मारे गए वे कहीं बाहर से नहीं आए थे और जिन्होंने गोलियां चलायीं थीं वे भी देश के ही नागरिक थे। आज कश्मीर में आयी शान्ति का सही लाभ उठाने का प्रयास किया जाना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने जिस तरह से कश्मीर में विकास को प्राथमिकता दी है उससे भी वहां जन जीवन में सुधार हुआ है। एक बात तो आम कश्मीरी को समझनी ही होगी कि उनका किसी बात पर भारत के साथ मतभेद हो सकता है पर भारत से अलग होकर पाक का कश्मीर कैसा है ? जहाँ भारतीय कश्मीर में प्रायोजित आतंक है वहीं अब पाक अधिकृत कश्मीर में अलगाव वादी पाक सरकार के लिए ही बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। आज हुर्रियत के नेताओं को भारत और पाक के कश्मीर को विकास के पैमाने को देखना चाहिए, केवल धर्म के नाम पर पाक में शामिल होने या भारत से अलग हो जाने से कश्मीर का भला नहीं होने वाला है। धर्म अगर राजनैतिक तौर से स्वीकार्य होता तो धर्म के नाम पर बनाया गया पाकिस्तान २५ सालों में ही बांग्लादेश को कैसे अलग कर पाया ? भारत के कश्मीर में मान भी लें कि लोगों को परेशान किया जा रहा है तो फिर पाक में नमाजियों पर हमले कौन कर रहा है ? क्या हमला करने वालों का धर्म कुछ अलग है ? बेहतर होगा कि इस बार हुर्रियत कुछ ठोस बात पाक के नेताओं को समझा कर ही लौटे क्योंकि चंद नेताओं कि राजनैतिक रोटियां सिकवाने में अब आम कश्मीरी कोई रूचि नहीं दिखा सकता क्योंकि इन नेताओं ने ही कश्मीर की अर्थ-व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचकर वहां कि जनता का जीना एक समय दूभर कर दिया था। आशा है कि अब कुछ सही पटरी पर लौट आएगा। आमीन.......

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

1 टिप्पणी:

  1. भैया ! / राजनीति में सब जन बूझ कर
    किया जाता है , कश्मीर में तो
    सभी अपनी रोटी सेक रहे हैं |
    अच्छा लगा...

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