मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 28 नवंबर 2009

कृषि प्रधान देश ?

जैसा कि कहा जाता है कि हमारा देश कृषि प्रधान है। कुछ हद तक ये बात सही भी है क्योंकि भारत की आत्मा आज भी गाँवों में ही बसती है। देश में ही नहीं बल्कि राज्यों तक में बा कायदा एक कृषि मंत्री भी हुआ करते हैं। कहा जाता है कि इस मंत्रालय और मंत्रियों पर इस बात की ज़िम्मेदारी होती है कि वे देखें राज्य व देश की आवश्यकताएं क्या हैं और उसी के अनुसार खेती के नए तरीकों को किसानों तक पहुँचाने का प्रयास भी करें। आज की स्थिति में क्या कोई भी सरकारी विभाग अपना काम ठीक ढंग से कर रहा है ? अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली में गन्ने के समर्थन मूल्य को लेकर क्या नहीं हुआ ? जब किसानों ने संसद को ही घेरने की बात की तभी उनको आश्वासन दिया गया। देश में कब तक इस तरह से चलता रहेगा कि किसी को भी ख़ुद कुछ नहीं दिया जाएगा जब वे आन्दोलन करेंगें तो उनके विरोधी भी तलवारें लेकर आ जायेंगें। चीनी मिल मालिक कहते हैं कि वे घाटे में जा रहे हैं वे और अधिक मूल्य नहीं दे सकते हैं। गन्ना किसानों को लागत नहीं मिल पा रही है इसलिए वे परेशान हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि कब तक ऐसे ही चलता रहेगा ? क्यों नहीं विभाग कुछ ऐसी योजनायें बनाता है जिससे किसान को फसल का सही मूल्य मिल जाए और औद्योगिक उत्पादन पर भी बुरा असर नहीं हो ? देश में कुछ ऐसा करने की चाहत ही नहीं दिखाई देती है। पहले महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश में किसान इसी तरह की परिस्थितियों में उलझ कर क़र्ज़ में डूब गए थे और बहुत सारे किसानों ने आत्महत्या तक कर ली थी जो अब भी जारी है। कृषि प्रधान देश में किसानों का यह हाल और मंत्रालय में बैठे लोगों को फुर्सत ही नहीं कि वे यह देख सकें कि वास्तव में क्या ज़रूरत है और क्या योजनायें बनाई जा रही हैं ? फिर भी अब समय आ गया है कि कृषि विशेषज्ञ मौके पर जाकर देखें कि ज़मीनी हकीकत क्या है और तब उसके अनुसार ही किसी योजना को बनाना शुरू करें। हो सकता है कि कोई माडल अमेरिका में बहुत सफल हो पर ज़रूरी नहीं कि वह यहाँ पर भी उतना ही सफल हो जाए ? किसानों को मिली जुली फसल लगाने के लिए कहा जाना चाहिए जिससे किसी एक फसल पर मौसम आदि के कुप्रभाव से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। कहने को देश में बहुत सारे मंत्रालय हैं जो कृषि से जुड़े हैं पर उनका योगदान जिस स्तर पर होना चाहिए नहीं आ पा रहा है। आख़िर कब तक देश का पेट भरने वाला ख़ुद अपनी भूख मिटाने के लिए संघर्ष करता रहेगा ?

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2 टिप्‍पणियां:

  1. आख़िर कब तक देश का पेट भरने वाला ख़ुद अपनी भूख मिटाने के लिए संघर्ष करता रहेगा ?
    आखिर कब तक ....??

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  2. अनवरत जारी रहेगा जो हालात है उन्हें देख!!

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