मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

कोपेनहेगेन सम्मलेन..

कोपेनहेगेन सम्मलेन से ठीक पहले भारत ने इस बात का ऐलान कर दिया कि वह स्वयं ही २०२० तक २०/२५ % कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए तैयार है। साथ ही भारत ने इस बात पर कड़ा ऐतराज़ किया है कि इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होनी चाहिए। जब भारत स्वयं ही इस बात के लिए तैयार है तो अब बारी विकसित देशों की भी बनती है क्योंकि कार्बन उत्सर्जन के लिए वही अधिक उत्तरदायी हैं। भारत की इस बात का चीन ने भी समर्थन किया है जिससे पता चलता है कि भारत का प्रस्ताव वास्तविकता पर आधारित है केवल बयान बाज़ी तक सीमित नहीं है। भारत ने वहां उत्सर्जन पर भी कड़े कानून लागू करने पर ध्यान देने की बात कही है। आज सारी दुनिया में दिल्ली जैसा कोई भी बड़ा शहर नहीं है जहाँ की सार्वजानिक परिवहन सेवा पूरी तरह से पर्यावरण को ध्यान में रख कर बनाई गई हो। भारत ने और खास तौर पर दिल्ली ने यह कई साल पहले ही करके दिखा दिया था कि जहाँ ईमानदारी से प्रयास किया जाए वहां सब कुछ किया जा सकता है। लोकसभा में भारत के रुख का समर्थन करते हुए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि भारत किसी दबाव में आकर कोई समझौता नहीं करने जा रहा है जो कुछ भी किया जाएगा बराबरी पर ही होगा। अलग अलग देशों के लिए अलग अलग शर्तों पर काम नहीं किया जा सकता है। देश में मौजूदा वन क्षेत्र को संरक्षित रखा जाएगा और इसको बढ़ाने का भी काम किया जाएगा। भविष्य में कोयले पर आधारित सभी बिजलीघर ५० % प्रदूषण रहित कोयले पर आधारित होंगें। भारत इस मामले में गंभीर है और वह किसी तरह के दबाव में नहीं आने वाला है। यह सही है कि भारत सरकार ने सम्मलेन के पहले ही दुनिया को यह बता दिया है कि क्या सही है और क्या ग़लत ? अब तीसरी दुनिया के विकास शील देशों को यह तय करना है कि किस तरह से एक समान समझौते पर कार्य किया जाए जिससे इन देशों के हितों पर चोट न होने पाए। फिलहाल भारत की तयारी से विकसित देशों को झटका लगने वाला है क्योंकि वे इस सम्मलेन में कुछ शर्तें अन्य देशों पर थोपने की तैयारी किए बैठे थे। अब समय आ गया है कि सारी दुनिया मिलकर एक सही दिशा में काम करे न कि जो कुछ केवल उनके हित में हो। कार्बन उत्सर्जन में ये विकसित देश सबसे आगे हैं और कटौती करने के नाम पर ये अपनी शर्तें विकास शील देशों पर थोपना चाहते हैं।

मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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