देश में एक और नए राज्य के गठन की तरफ़ कल केन्द्र सरकार ने कदम बढ़ा ही दिए। असल में आज भी देश में राज्यों को चलाने के लिए सही दिशा निर्देश नहीं होने के कारण यहाँ वहां से इस तरह की मांग उठती ही रहती है। सवाल यहाँ पर एक अलग तेलंगाना का नहीं है वरन राज्यों की समस्याओं की तरफ़ ध्यान देने का है। इससे पहले भाजपा नीत गठबंधन ने उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीस गढ़ राज्यों का गठन किया था। आज पूरे देश की समस्याओं पर ध्यान देकर एक अलग राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने की आवश्यकता है जो पूरे देश के बारे में विचार करे कुछ स्थानों पर भौगोलिक कारणों से लोग अपने राज्य या जिले से कटे या बहुत दूर हो जाते हैं जिससे बहुत सारी प्रशासनिक समस्याएं सामने आती हैं। हर बार किसी राव के अनशन का इंतजार नहीं किया जन चाहिए। ये देश सारे भारतीयों का है और इसमे रहने वालों की समस्या पर धरातल पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। बेहतर हो कि राज्य स्वयं ही अपने यहाँ आने वाली समस्याओं से केन्द्र को अवगत करते रहें जिससे समय रहते योजनाओं या विकास के पैमाने को ठीक ढंग से तय किया जाए। प्रशासनिक स्तर को एक पैमाना बनते हुए देश में राज्यों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण कर दिए जाने से कोई समस्या नहीं आने वाली है। यदि इस तरह की समस्याओं के बारे में विचार किया जाए तो एक बात ही सामने आती है कि आज के नेताओं और अधिकारीयों में प्रशासनिक क्षमता का ह्रास हो चुका है तभी तो संपर्क के नए और अत्याधुनिक साधनों के होने के बाद भी आज संवाद हीनता अधिक दिखाई देती है। इस देश का और राज्यों का आकर आज़ादी के समय भी यही था पर इस तरह की उपेक्षा की बातें तब नहीं होती थी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में दरबार नैनीताल में ६ महीने तक रहता था जिससे पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को यह लगता था कि यह हमारी ही सरकार है पर बाद में यह प्रक्रिया रोक दी गई जिससे वहां के लोगों को उपेक्षा महसूस होने लगी। अंत में बहुत ही खूनी परिणिति के बाद उत्तराखंड राज्य बन पाया। आज के नेता केवल राजधानियों में ही निवास करना चाहते हैं वे प्रदेश में निकल कर समस्याओं को पास से नहीं देखना चाहते और यदि कभी उनका मन भी हुआ तो वे केवल अधिकारियों के चश्में से वह ही देखते हैं जो अधिकारी उन्हें दिखाना चाहते हैं ऐसी स्थिति में जनता में असंतोष होना स्वाभाविक ही हो जाता है। आज फिर से आवश्यकता है कि पूरे मनोयोग से एक निर्विवाद राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कर दिया जाए और उसको पूरे देश के बारे में विचार करने को कहा जाए उसको पूरा समय दिया जाए फिर उसकी संस्तुतियों पर विचार कर राज्यों का पुनर्गठन कर दिया जाए।
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
यदि जन समस्याएँ न रहें या कम रहें तो इस तरह की मांगें उठें ही नहीं।
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