मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

पाक खिलाड़ी और पैसा...

भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े बाज़ार में पाक के खिलाडियों को किसी ने भी नहीं पूछा इससे पाक के खिलाड़ी बहुत हताश नज़र आये. यह सही भी है की चंद लोग अपने व्यक्तिगत कारणों से भारत-पाक मैत्री के गुण गाते रहते हैं पर क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया है की पाक में लोग आम तौर पर भारत के बारे में क्या सोचते हैं और भारत के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहते हैं ? ९/११ ने सारी दुनिया में मुसलमानों को संदिग्ध बन दिया अब इस बात का कोई भेद नहीं रह गया है की वह पाक का आतंकी है या भारत का शाहरुख़ खान ? पश्चिमी देश मुसलमानों से अपने ढंग से निपटना चाह रहे हैं. आखिर कौन है इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ? केवल भारत सरकार को कोसने से काम नहीं चलने वाला है, अगर पाक के खिलाड़ी वास्तव में क्रिकेट के लिए संजीदा हैं तो उन्हें अपने देश की सरकार पर वहां के जनमत के साथ दबाव बनाना चाहिए जिससे आतंकियों को कुचला जा सके. एक तरफ से सद्भावना की बहुत सारी बातें की जा चुकी हैं और साथ ही वाघा बार्डर पर बहुत सारी मोमबत्तियां भी भारतीयों ने जलाने का प्रयास किया है. आई पी एल पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है वह अपने आयोजन के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है यहाँ तक स्वतंत्र की पिछले वर्ष चुनाव के समय सुरक्षा कारणों से जब सरकार ने मना किया तो पूरा आयोजन ही दक्षिण अफ्रीका चला गया. भारत सरकार और खेल मंत्रालय में पाक की जो भी सहायता की जा सकती थी की गयी अब यदि उनके अपने कर्मों से कोई उन अच्छे खिलाड़ियों पर भी बोली लगा कर अपने लाभ में कमी नहीं लाना चाहता तो कोई कैसे दबाव बनाये ? आज क्रिकेट में पैसा ही सब कुछ है और पाक खिलाडियों को खेल से ज्यादा पैसे की ही चिंता है क्योंकि खेल के लिए इतना कोई नहीं चिल्लाता है.
भारत में २६/११ के बाद पाक के नाम से ही फिर से पुरानी चिंताएं और आतंक का नाम सामने आता है तो कोई भी टीम कैसे उन खिलाडियों पर दांव लगाकर अपने लाभ में कमी ला सकती है. यहाँ तक की इस पैसे के कारण ही शाहरुख़ खान और पाक के संस्थापक जिन्ना के नाती नेस वाडिया भी किसी पाक खिलाड़ी के बारे में नहीं सोच सके ? अब जब समय है कि पाक आतंक के चंगुल से निकले और भले ही दुनिया को विश्वास न दिला पाए पर यदि वह भारत को यह भरोसा दिला पाए कि अब पाक की ज़मीन से भारत के खिलाफ साजिशें नहीं होंगीं तो भारत के हर घरेलू आयोजन में पाक के खिलाड़ियों को शामिल करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी पर १००० साल तक भारत से लड़ने की कसम खा कर किस तरह से भारतीय पैसे पर मौज उड़ाने की सोची जा सकती है ?  ललित मोदी ने भारत के रुख को नहीं भांपा पर टीम के मालिकों को यह बहुत अच्छे से पता था कि पाक के खिलाड़ियों को लेना कितना मंहगा साबित होने वाला है तो उन्होंने पैसे को तरजीह दी न कि पाक खिलाड़ियों को.....


मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां:

  1. डाक्साब, पैरा वगैरह बना के लिखिए। अँखियाँ पिराय लगत हैं।

    मेरा तो यह मानना है कि पाकिस्तान का हर क्षेत्र में बहिष्कार होना चाहिए। यह मान कर चलना चाहिए कि घृणा की नींव पर बना यह देश कभी नहीं सुधर सकता।

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  2. बंधू मैं तो कहता हूँ की अगर ये फैसला सरकार के दवाब में भी लिया गया है तो सही है आखिर सरकार पहली बार अपने दवाब का सही इस्तेमाल कर रही है . ना मालूम ये कोन लोग है जो कोवो की तरह चिल्ला रहे है की जाने कोन सी नाइंसाफी हो गयी. क्या आप जानते है की युसूफ युहाना जो की एक शानदार खिलाडी था और ईसाई था को मजबूरन अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा ताकि टीम में जगह बनी रहे आज पाकिस्तान टीम के आधे से जयादा खिलाडी कट्टर मुस्लिम है इमरान खान को तो तालिबान भी बहुत इज्ज़त देता है और सही मुस्लमान कहता है जो तालिबान का समर्थक है फिर हम कैसे इन पर विस्वास कर ले. की ये भारत के प्रति सहानभूति रखते है. खुद शहीद अफरीदी इतने कट्टर मुस्लमान है की इनके घर की औरते परदे से बाहर नहीं आतीं है. ये जब पाकिस्तान में होते है तो भारत के विरोधी होते है लेकिन पैसे के लिए खेल का रोना रो रहे है.
    अगर ये लोग सच में सही है तो क्यों नहीं एक कैम्पेन करते है की पाकिस्तान को आतंकवाद से दूर रहना चाहिए जैसे की हमारे खिलाडी करते है. इन्हें पाकिस्तान सरकार पर दवाब डालना चाहिए की वोह आतंकवाद से दूर रहे. लेकिन जिस टीम का मेनेजर ही खुद पाकिस्तान की फोज का हो उससे क्या आप ये आशा कर सकते है गेनेराल शहयर खान तो पाकिस्तानी फौजी है क्या वोह चाहेंगे की भारत में अमन कायम रहे .
    यह मेरे अपने निजी विचार है

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