केरल सरकार को एक ऐसा आदेश जारी करना पड़ा जिसे देख कर वास्तव में लगता है कि नेता किसी इज्ज़त के लायक बचे भी हैं या नहीं ? अपने ताज़ा आदेश में सरकार ने सभी सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों से यह अपेक्षा की है कि किसी भी जन प्रतिनिधि जैसे सांसद/विधायक के आने पर उनका खड़े होकर सम्मान करें और उन्हें जाते समय बाहर तक छोड़ कर आयें. वाह रे जनतंत्र !!! अब इस तरह से नेता अपनी इज्ज़त कराना चाहते हैं ? किस जनतंत्र का सपना आज़ादी के मतवालों ने देखा था ? क्या उन्होंने ऐसा भी सोचा होगा कि उनके समय के नेताओं की एक आवाज़ पर जाने कितने लोग अपना सब कुछ छोड़कर जान लुटाने और ज़ुल्म का विरोध करने के लिए आगे आ जाते थे आज वही लोग क्या सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी उन नेताओं की उतनी भी इज्ज़त नहीं करते कि उन्हें एक सामान्य शिष्टाचार के नाते ही कुछ मान लें ?
इतनी गिरावट कभी कैसे आ सकती है कि नेता अपनी इज्ज़त करवाना चाहें ? क्यों नहीं वे अपने मानदंड इतने ऊंचे स्थापित करते हैं कि उनके आने पर सम्मान स्वयं ही किया जाये उसे किसी अनुशासन में नहीं बांधा जाये. कितनी नैतिक गिरावट अभी और आनी बाकी है किस दिशा में इस तरह के आदेश दिए जा रहे हैं ? यह सभी को पता है कि जो अधिकारी कर्मचारी सरकार की सेवा में हैं उनको यह तभी से पता होता है कि जन प्रतिनिधियों को उचित सम्मान देना है पर किन परिस्थियों में वे यह भूल रहे हैं ? कौन उनको यह सब भुलाये दे रहा है ? आज समय है कि नैतिक गिरावट जो रसातल तक पहुँच चुकी है उसके बारे में इन नेताओं को ही कुछ सोचना होगा तभी जाकर उनकी फिर से प्रतिष्ठा हो पायेगी. कहा भी जाता है कि सम्मान देने से ही सम्मान मिलता है पर क्या आज के नेताओं में किसी और का सम्मान करने के लिए इच्छा भी बची है ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
इच्छा अनिच्छा से क्या चल रहा है देश में यूँ भी?
जवाब देंहटाएंबिलकुल भी नहीं क्यों करें नेताओं का सम्मान जो जनता को लूट कर अपनी जेबें भर रहे हैं देश के टुकडे -2 करने पर उतारू हैं विलास भैवम मे आम आदमी को भूल गये हैं इन्हें तो चौराहे पर खडे कर जूते लगाने चाहिये आज के नेताओं के लिये तो मन यही कहता है धन्यवाद्
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