मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

अब ग्रामीण चिकित्सक भी ?

देश अभी तक अघोषित रूप से शहर और गाँव में बंटा हुआ था पर अब चिकित्सा के नाम पर इसे पूरी तरह से बांटने पर विचार किया जा रहा है ? देश में एम् सी आई जो कि एलोपैथिक चिकित्सकों की हर बात के लिए ज़िम्मेदार है उसे यह अधिकार कौन दे रहा है की वे गाँव के लिए अलग से चिकित्सक तैयार करें ? यह सही है की देश के ग्रामीण अंचलों में चिकित्सकों की बहुत कमी है पर इसका मतलब यह तो नहीं कि किसी छोटे रास्ते से इस समस्या का समाधान निकला जाये ? क्या एम सी आई यह बताने का कष्ट करेगी कि  डॉक्टर बनते समय जो शपथ चिकित्सक लेते हैं उसे इतनी जल्दी कैसे भुला दिया जाता है ? हर चिकित्सक अपना भविष्य शहर में ही ढूंढता रहता है पर कोई भी यह नहीं चाहता कि गाँव में जहाँ इसकी वास्तविक आवश्यकता है कोई जाये ? इस ग्रामीण डिग्री के माध्यम से चिकित्सा के क्षेत्र में भी एक ऐसी खाई बन जाएगी जिसे कभी भी मिटाया नहीं जा सकेगा .
क्या गाँव में होने वाली समस्याओं के लिए कुछ अलग करना ज़रूरी है या फिर उन्हें भी पूरी तरह से उचित चिकित्सा उपलब्ध करायी जानी चाहिए ? यह परिषद् और इसके चिकित्सक खुले आम आयुष के चिकित्सों का विरोध करते रहते हैं पर शायद ये इस तथ्य से अनिभिज्ञ हैं कि जिसने पूरे ५ साल पढाई की है और अपनी परीक्षा को अच्छे से उत्तीर्ण भी किया है वह किस तरह से कम है ? यहाँ पर इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता है कि किसने किस पद्धति से अपनी पढ़ाई  की है क्योंकि क्या एलोपैथिक चिकित्सक आयुर्वेदिक आदि दवाएं नहीं लिखते हैं ? देश में चिकित्सा के स्तर को देखते हुए कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे गाँव को राहत मिले इसमें भी राजनीति नहीं होनी चाहिए. पर क्या हर तरफ स्वार्थ से भरी दुनिया में कोई वास्तव में गाँवों के बारे में सोचना चाहता है ? 


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3 टिप्‍पणियां:

  1. गांव में चिकित्सक पहुँचाने का रास्ता सुझाएँ।

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  2. एक दीर्घकालीन सोच की सँभावनायें अनन्त हैं, ज़रूरत उन्हें टटोलने की है । क्या किसी को तब के स्वास्थ्यमँत्री द्वारा प्रतिपादित ’ जन स्वास्थ्य रक्षक ’ की याद है, और उस योजना की परिणिति अब किस बिन्दु पर है, यह भी याद दिलाने की ज़रूरत है ?

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