कल कोलकाता में हुई नक्सली मसले पर बैठक से जिस तरह से बिहार और झारखण्ड के मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहे उससे यह पता चलता है कि राजनेता अपने किसी भी काम और वोटों को देश हित से आगे ही रखते हैं. पहली बार देश में नक्सल प्रभावित राज्यों को साथ में बैठा कर कुछ करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे इन भटके हुए लोगों पर कुछ दबाव बनाया जा सके पर कुछ राजनेता पता नहीं किस सोच के साथ जीते रहते हैं ?
यह सही है कि देश में अलगाव वादी जो कि कश्मीर से अधिक ताल्लुक रखते हैं और पाक भी लगातार कुछ करना चाहता है जिससे भारत पर दबाव बना रहे. अब जब पिछले १० सालों कि सख्त नीतियों के चलते घाटी में माहौल कुछ बेहतर ही हुआ है तो सरकार का ध्यान नक्सलियों की तरफ जा पाया है. देश में राज्यों का मामला इतना संवेदशील बना दिया जाता है कि चाहकर भी पूरे देश में एक साथ कोई अभियान किसी के खिलाफ नहीं चलाया जा सकता है. आज समय की आवश्यकता है कि इन सभी को बातचीत के लिए समय दिया जाये और उस सीमा के निकल जाने के बाद इन पर सख्ती से लगाम लगायी जाये. आखिर कब तक ये किसी और के बहकावे में आकर देश के विकास के मार्ग को रोकते रहेंगें ? यह भी सही है कि सरकारी तंत्र की उपेक्षा के कारण ही अधिकतर जगहों पर नक्सलियों को अपनी जड़ें ज़माने का मौका मिला है पर आज समय की मांग के अनुसार सभी को सोचकर मुख्य धारा में आने वाले विद्रोहियों के साथ सहानुभूति पूर्वक पेश आना चाहिए.
यह देश सभी का है जो भी इसका सम्मान करता है उसका स्वागत है पर बिना सबूतों के किसी पर भी यह इलज़ाम लगाना कि वह नक्सलियों के समर्थन में ही बहुत निंदनीय है . अगर कोई राजनेता भी इस काम में लिप्त है तो उसे भी कानून के अनुसार दंड दिया जाना चाहिए. फिलहाल एक अच्छी कोशिश पर मौका परस्त राजनीतिज्ञों द्वारा पानी तो फेर ही दिया गया है .....
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
सजगता के साथ इस समस्या पर प्रयास की आवश्यक्ता है.
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