राहुल गाँधी की मुंबई यात्रा के दौरान की गयी टिप्पणियों के बारे में वहां के सांसदों ने लोकल ट्रेनों कि हालत सुधारने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए हैं. यहाँ पर सवाल इस बात का है कि क्या ये ट्रेने मुंबई वालों को नहीं ढोती हैं ? या फिर इनमें चलने वाले नागरिक कुछ अलग हैं ? मराठी / गैर मराठी पर विवाद खड़ा करने वालों से भी यह पूछा जाना चाहिए कि कभी उनको इन ट्रेनों कि गंदगी और कम सुविधाएँ क्यों नहीं दिखाई दीं ? राहुल ने चाहे जिस अंदाज़ में यात्रा कि हो पर उनकी यात्रा से एक बात तो ज़रूर हुई है कि उनकी चिंता को सभी लोगों ने कुछ गंभीरता से लेकर रेल मंत्री को पत्र भी लिखा है.
यह सही है कि राहुल ने लोकल का सफ़र केवल यह दिखाने के लिए किया था कि वे देश में जहाँ चाहें जैसे चाहें जा सकते हैं और यह देश सभी का है. लेकिन अचानक किये गए इस सफ़र से यदि मुंबई कि ट्रेनों का कुछ भला हो जाये तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ? इन लोकल्स की हालत सुधारने के लिए कुछ संगठन भी मांग करने लगे हैं . सवाल यह है कि आज तक सरकार, संगठन और मराठी मानुषों के पैरोकारों को यह क्यों नहीं दिखा ? शायद वे यह सब देखना ही नहीं चाहते थे इसलिए देख नहीं सके.पर राहुल ने बहुत आसानी से विकास और जन चेतना के मुद्दे को जानकर छुआ और यह भी जतला दिया कि देश में कौन से मुद्दे प्राथमिकता पर होने चाहिए ? देश में क्षेत्र भाषा जाति रंग पर किया गया कोई भी काम महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि सबसे ज़रूरी है देश में नागरिकों को मूल भूत सुविधाएँ दिलाना. ऐसे में उन्होंने लोगों को और अपनी ही सरकार को भी आइना दिखाने का काम तो कर ही दिया.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
शायद हालात सुधरें..हुआ तो अच्छा!
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