हमारे नेताओं ने देश के सामने बड़ी विचित्र स्थिति उत्पन्न कर दी है, वे संसद में अपना सवाल तो प्रश्नकाल के लिए लगा देते हैं पर जब प्रश्न पूछने का समय आता है तो वे संसद से ही गायब हो जाते हैं. आज जिस तरह से इन नेताओं द्वारा संसद की गरिमा को रोज़ ही ठेस पहुंचाई जा रही है उसे देखते हुए क्यों न इनके विरुद्ध आर्थिक दंड का प्रावधान किया जाये ? सदनों को लड़ाई का अखाडा तो पहले ही ये माननीय बना चुके हैं अब लगता है कि इन्हें यह भी याद नहीं रह पाता है कि वहां पर इन्हें देश की समस्याओं पर विचार करने के लिए भेजा जाता है न कि महत्वपूर्ण मसलों पर सदन से गायब रहने के लिए.
देश का दुर्भाग्य है कि ये माननीय अपने विशेषाधिकार के तहत किसी को भी धमका सकते हैं पर जिस जनता ने इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा है उसके बारे में सोचने के लिए शायद इनके पास समय ही नहीं होता है ? आज इस से बुरा और क्या हो सकता है कि लोकसभाध्यक्ष को यह व्यवस्था देनी पड़ी कि यदि सदन में पूछने वाला नहीं है तब भी मंत्री अपना उत्तर देंगें. पर क्या मंत्री उत्तर देने के लिए वहां पर होंगें ? जिस तरह से गैर राजनैतिक व्यक्ति संसद की गरिमा को वहां पहुँच कर ठेस पहुंचा रहे हैं वह चिंतनीय है. सबसे चिंतनीय यह है कि इन्हें संसद की गरिमा की कोई परवाह नहीं है ? कोई भी काम किसी न किसी को पहली बार करना होता है पर क्या ये वास्तव में इतने उत्सुक हैं कि वहां की परम्पराओं को समझ सकें ?
एक सुझाव यह भी कि इनको काम के अनुसार वेतन और भत्ते दिए जाएँ, सारे साल तो ये अपनी मनमानी ही करते रहते हैं पर जब सदन चल रहा है और ये वहां से गायब हों तो इनके विरुद्ध आर्थिक दंड का भी प्रावधान होना चाहिए. पर जब अधिकांश माननीय अपने बारे में ही सोच रहे हों तो कौन किसी को समझा सकता है ? फिर भी कुछ तो किया ही जाना चाहिए वरना ये महत्वपूर्ण सदन अपनी गरिमा कैसे बनाये रख पायेंगें ?
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कुछ गरिमा बाकी हो तो बचाया जाये!
जवाब देंहटाएं