पूरे देश में चलायी जा रही ग्रामीण गारंटी योजना जहाँ हर तरफ से भ्रष्टाचार के आंकड़े दिखाने के लिए ही बदनाम रही है उसमें उत्तर प्रदेश के एक पिछड़े जिले गोन्डा से आने वाली खबर ने देश को एक नयी राह तो ज़रूर ही दिखा दी है. आज जब यह महत्वाकांक्षी योजना केवल गड़बड़ियों के लिए ही जानी जा रही है तो ऐसे बदलाव की बयार वास्तव में बहुत सुहानी लगती है. जिले की दो ग्राम पंचायतों विवियापुर अवधूत नगर और रुदौली ने विकास के मायने ही बदल दिए हैं. इन दोनों पंचायतों ने इस योजना से छोटे स्तर पर ईंट बनाने के भट्ठे लगाकर क्रमशः ५ और ३ लाख की कमाई भी कर ली है. इन भट्ठों ने जहाँ गाँव में रोजगार दिवस सृजित किये वहीं गाँव में खुदने वाले तालाब से निकली मिटटी का उपयोग भट्ठे में ईंटें बनाने में कर लिया गया. अब सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि ये अपनी इस आमदनी से १० गरीबों के लिए मुफ्त आवास बनवाने की तरफ जा रही हैं. जो बात सबसे महत्वपूर्ण है कि इन निर्मित ईंटों और आमदनी से ही ग्राम में विकास के लिए आवश्यक खडंजा आदि लगाने का काम किया गया है .
आज जब देश की राजधानी दिल्ली में वातानुकूलित कमरों में बैठकर बाबू लोग योजना बनाते हैं तो किसी के दिमाग़ में यह बात कभी भी कैसे नहीं आई जबकि इसके लिए जनता उनको पूरा वेतन देती है ? वास्तविकता यह है कि दिल्ली से जितना भारत दिखाई देता है वास्तव में वह उससे बहुत बड़ा, समृद्ध और विकास के लिए तत्पर है. आज के समय जब हर काम में खाने-पीने का रिवाज़ चल रहा है तो इन पंचायतों के इस काम को कोई सराहेगा क्या ? सरकारी मशीनरी ने हर अच्छे काम में इतने अड़ंगे लगा दिए हैं कि कोई भी कोई काम करने से पहले दस बार सोचने को मजबूर हो जाये. पहले तो सरकारें नियम ही नहीं बना पाती और जब वे बनते हैं तो उनके मानकों को इतना ऊंचा कर दिया जाता है कि वास्तव में उन्हें पाना ही टेढ़ी खीर साबित होता है... बस यहीं से खाने खिलाने का दौर शुरू होता है और पता नहीं वह कहाँ जाकर ख़त्म होता है ? इस सारी कवायद में केवल जनता ही पिस जाती है. फिर भी जीने की राह जनता खुद ही ढूंढ लेती है अच्छा हो कि इन पंचायतों की तरह और पंचायतें भी अपने स्तर पर कुछ नया करने की सोचें जिससे समाज का भला हो सके और गाँवों की उन्नति भी संभव हो सके. देश इन पंचायतों को सलाम करता है......
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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