मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 7 मार्च 2010

लाशों पर राजनीति.....

उत्तर प्रदेश की जनता अगर किसी हादसे का शिकार हो जाये तो उसे प्रदेश सरकार से किसी भी तरह की सहायता की आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि सरकार की मुखिया कह चुकी हैं उनका खजाना खाली हो चुका है ? प्रतापगढ़ के मनगढ में हुए हादसे के बाद पीड़ितों के आंसू पोछने के बजाय यह देखा जा रहा है कि वहां पर मरने वालों की सहायता से कितना राजनैतिक लाभ मिल सकता है ? अब यह इलाका कांग्रेस का गढ़ है तो माया को मरने वालों कि फ़िक्र क्यों होने लगी ? यहाँ पर एक बात माया से ज़रूर पूछी जानी चाहिए कि अगर इस तरह की कोई दुर्घटना आने वाली १५ तारिख को उनकी रैली में हो जाये तो क्या उनके खिलाफ भी मुक़दमा दर्ज कर लिया जायेगा या फिर स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ ? क्या तो भी उनके पास यही जवाब होगा कि खज़ाना खाली है ? नहीं तब तो इन स्वार्थी नेताओं के हाथ में अचानक अलादीन का चिराग आ जायेगा और हर एक पर पैसे की बारिश कर दी जाएगी क्योंकि तब पार्टी का मामला होगा ? धिक्कार है ऐसे नेताओं और ऐसी राजनीति को जिसकी नज़रें केवल एक बात ही देख सकती हैं वो हैं वोट वोट और केवल वोट ?
             यह सही है कि पूरे देश में इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है पर जब भी ऐसा कुछ हो जाता है तो सरकार और नेता रोने लगते हैं. अगर इतने ही निकम्मे हो तो क्यों नहीं छोड़ देते अपनी कुर्सी क्योंकि यह तय है कि आम जनता हर काम इन घटिया नेताओं से हर काम अच्छी तरह से निपटा सकती हैं. सरकार के पास इतना पैसा है कि वो एक पुल का उद्घाटन दो बार करा सकती है उसके मंत्री हवाई जहाज से केवल फीता काटने जा सकते हैं पर जब किसी धार्मिक स्थान पर कोई दुर्घटना हो जाती है तो सरकार अचानक कंगाल हो जाती है. ये सरकार चलाने वाले भूल जाते हैं कि इस देश में हर ५ साल बाद जनता के तलवे चाटने के लिए इनको नत मस्तक होना ही पड़ता है और जो मज़े वे सरकार में रहकर मार रहे हैं वे जनता के पैसे से ही हैं और उस जनता को मुसीबत में स्नेह के दो शब्द भी नहीं ? नेताओं ध्यान रखो जनता से ऊपर भी सबसे बड़ी सत्ता है जो तुम्हारे जैसे अनगिनत लोगों को धूल चटा चुकी है अब किसकी बारी है यह तो समय ही बताएगा.
            एक बात समझ नहीं आती कि क्यों नेता बनकर अधिकतर लोगों की संवेदनाएं मर जाती हैं ? क्यों वे मानवता भी भूल जाते हैं ? किसी सरकार के मुंह से इतनी ओछी बात आज तक शायद ही किसी ने सुनी हो ? कर लो मनमानी और अपनी जिद जब समय ने बड़ी बड़ी सल्तनतें नहीं रखीं तो ऐसे सोच रखने वाले कितने दिन रह जायेंगें ?         


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