अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के अनुमोदन के बाद अब सी टी बी टी पर जल्द ही भारत को भी हस्ताक्षर करने ही होंगें क्योंकि अभी तक भारत ने अपनी तरफ से यही कहा है कि जब तक अमेरिका और चीन इस पर हस्ताक्षर नहीं करते और इसका पूरी तरह से अनुमोदन नहीं करते हैं भारत के लिए यह संभव नहीं है. हालांकि भारत ने पोखरण २ के बाद स्वतः ही परमाणु हथियारों के विकास और परीक्षण पर रोक लगायी थी पर किसी भी समय देश के सामने आने वाली नयी चुनौतियों को देखते हुए उसने अपने हर विकल्प को भी खुला रखा था. अमेरिका के परमाणु हथियारों के ज़खीरे के विरोध में चीन ने यह संधि मानने से इंकार किया था और अब शायद वह भी इस पर राज़ी हो जाये. ऐसी स्थिति में भारत के पास विकल्प बहुत सीमित ही रह जायेंगे क्योंकि तब कोई अन्य देश बचेगा ही नहीं और तब भारत पर इस संधि को मानने के लिए दबाव बहुत बढ़ जायेगा.
यह सही है कि भारत की चुनौतियाँ अन्य देशों के मुकाबले बहुत भिन्न हैं क्योंकि पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ से देश को हमेशा ही खतरा बना रहता है और भारत कभी भी इन देशों के नापाक इरादों के आगे अपनी बात को कम करके नहीं रखना चाहेगा. सम्पूर्ण सुरक्षा के अभाव में भारत के पास भी सीमित विकल्प ही बचते हैं और इन विकल्पों को भी विश्व बिरादरी के सामने लाये बिना भारत किसी भी संधि को मानने की स्थिति में नहीं है. आज के समय अंतर्राष्ट्रीय कानून इतने लचर हैं की उसे भरोसे कोई भी देश अपना भविष्य नहीं छोड़ सकता है.
अच्छा हो की इस तरह के किसी भी कानून को लागू कराने के लिए एक सख्त तंत्र हो क्योंकि कुछ देश कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते रहते है और चंद अन्य देश अपने स्वार्थ के कारण इनके खिलाफ कुछ भी नहीं करना चाहते हैं. वैसे आज तक सदैव भारत ने सभी देशों का सम्मान किया है और उसके सम्मान के लिए सभी देशों को एक उचित माहौल बनाकर ही किसी भी संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए राज़ी कराने का प्रयास किया जा सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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