हर वर्ष की तरह इस बार भी पूरे देश में गेंहूँ की खरीद के लिए क्रय केंद्र बनने के साथ ही फिर से अनाज खरीद में दलाली का खेल सामने आने लगा है. अभी तक जो दावे किसानों के लिए किये जाते हैं उनमें से किसी में भी सरकारों को सफलता मिलती नहीं दिखाई देती है और किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य पाने के लिए आज भी गिड़गिडाता रहता है. पिछले से पिछले वर्ष जिस तरह गन्ने के भुगतान ने किसानों को रुलाया था उसी से परेशान होकर उन्होंने गन्ने का रक़बा घटा दिया जिसका एक बार फिर से बिचौलियों ने फायदा उठाया और चीनी के दाम आसमान को छू गए. आज कहने को तो देश में बाक़ायदा एक कृषि मंत्रालय है और स्वनामधन्य एक राष्ट्रीय स्तर के क्षेत्रीय नेता शरद पवार इसकी कमान संभाले हुए हैं. यह मंत्रालय अपने में ही इतना बड़ा है कि इसको दो तीन भागों में बाँटने की आवश्यकता है पर मंत्री महोदय को किसानों से ज्यादा चिंता क्रिकेट की है वे अपने काम को करने के लिए उतने सचेत और जागरूक नहीं दिखाई देते जितना कि एक किसान के बेटे को होना चाहिए ?
आज भी देश में उत्पादन से लगाकर बाज़ार तक अनाज के पहुँचने में जितना नुकसान हमारे अन्नदाता किसान को उठाना पड़ता है उसका कभी कोई अनुमान नहीं लगाया जाता है ? आखिर इस देश में कृषि मंत्रालय क्या कर रहा है ? क्या कोई ऐसा तंत्र उसके पास है जो किसानों की समस्याओं पर ठीक से ध्यान दे सके ? हो सकता है कि कोई तंत्र हो पर सरकारी बाबुओं के मकड़जाल में वह योजना भी उलझी रहती है ? इस देश में किसान को कभी अपना समझा ही नहीं जाता है क्योंकि देश की राजधानी में बैठकर बनायीं गयी योजनाएं धरातल पर चल नहीं पाती हैं ? केवल दिल्ली से कह देने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है इसके लिए पूरे देश में केन्द्रीय और राज्य सरकारों के कृषि मंत्रालयों की एक साझी रणनीति होनी चाहिए जो वास्तव में किसान की समस्या को समझने का प्रयास भी करे ? देश में किसानों को पुराने समय की तरह मिली जुली खेती के बारे में भी बताना चाहिए क्योंकि कभी केवल एक फसल लेने के फेर में भी किसानों का बहुत बड़ा नुकसान हो जाता है ? मिली जुली खेती से एक फसल के नुकसान की भरपाई दूसरे से हो सकती है और किसान को यदि बहुत बड़ा फायदा नहीं होगा तो कम से कम उसकी लगत तो निकल ही आयेगी. आज भी समय है कि देश में योजनायें कम बनायीं जाएँ तथा जो कुछ है उसमें अनुभव को जोड़कर आगे की रणनीति बनाई जाएँ.
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आज भी देश में उत्पादन से लगाकर बाज़ार तक अनाज के पहुँचने में जितना नुकसान हमारे अन्नदाता किसान को उठाना पड़ता है उसका कभी कोई अनुमान नहीं लगाया जाता है ? आखिर इस देश में कृषि मंत्रालय क्या कर रहा है
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