मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 22 मई 2010

कनाडा का दुस्साहस...

सीमा सुरक्षा बल पर कनाडा के उच्चायोग ने एक वीसा मामले में जो टिप्पणी की उसे हलके में नहीं लिया जा सकता है. यह सही है कि किसी को भी कुछ भी कहने का हक़ है पर जिस बल पर पूरे भारत को गर्व है उसके बारे में एक विदेशी उच्चायोग किस तरह से ऐसी बातें कर सकता है ? जिस तरह से टिप्पणी में बल को "एक कुख्यात हिंसक अर्ध सैनिक बल" कहा गया है वह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है. बल के एक सेवानिवृत्त सिपाही पंधेर के वीसा आवेदन पर इस तरह की टिप्पणी कर उसे खारिज कर दिया गया है. पंधेर से यह भी कहा गया कि वह अपने आवेदन में बल से अपनी संलग्नता का ज़िक्र न करे जैसा करने से उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने इस मामले की जानकारी बी एस एफ को दी जहाँ से यह मसला केंद्रीय गृह मंत्रालय तक पहुंचा और आधिकारिक तौर पर कनाडा से विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जतलाई.
       अब सवाल यह उठता है कि क्या कनाडा ने इस बात का ठेका ले रखा है कि कौन किस तरह से आवेदन करे ? क्या उसके पास यह अधिकार है कि इस तरह की बेकार की टिप्पणी कर सके ? एक ऐसा बल जो देश को  लगातार पाकिस्तान जैसे पड़ोसी से बचाने में लगा रहता है और जिसके पास पाक प्रायोजित आतंक से लड़ने में महारत हासिल है क्या उसकी सच्चाई जाने बिना इस तरह की टिप्पणी करना सही है ? ऐसे भारत विरोधी अधिकारियों को तुरंत ही वापस भेजे जाने की मांग कनाडा से की जानी चाहिए. उच्चायोग केवल अपने स्तर के काम ही देखे क्योंकि उसके पास देश की व्यवस्था पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है ? यह वही कनाडा है जिसने ८० के दशक में सिख अलगाव वादियों को पनाह दी थी और पूरी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने वालों को अपने यहाँ काम करने की छूट दी थी जिसके परिणाम स्वरुप कनिष्क विमान में बम रखकर उसे उड़ा दिया गया था. इस दुर्घटना कि २५ वीं बरसी पर स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कनाडा जाने की इच्छा जता चुके हैं. इस मामले को उनकी जून की कनाडा यात्रा से पहले ही हल कर लिया जाना चाहिए और विदेश मंत्रालय को साफ़ शब्दों में कनाडा को बता भी देना चाहिए कि अगर वे भारत से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना चाहते हैं तो इस तरह की बेकार की बातें करने वालों पर लगाम लगाकर रखें.
      किसी उच्च सुरक्षा प्राप्त स्थान पर बैठकर इस तरह की बातें करना बहुत आसान होता है पर जब धरातल पर उतर कर काम करना होता है तो सब मामला समझ में आ जाता है. देश में उच्च सुरक्षा प्राप्त लोगों के मुंह से ऐसी बातें शोभा नहीं देती क्योंकि वे इन्हीं बलों की चौकसी के कारण आराम से अपने कमरे में सो रहे होते हैं. फिलहाल देश के बलों को किसी के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम अपनी सुरक्षा करना जानते हैं और किसी के कुछ भी कहने से कुछ फ़र्क भी नहीं पड़ने वाला है क्योंकि हमारी सुरक्षा है हम जैसे चाहें वैसे करेंगें. क्या अफगानिस्तान और इराक़ में अमेरिका के साथ जुटे कनाडा के बल वहां पर लोगों के घावों पर मलहम लगाने का काम कर रहे हैं ? जब आतंक से लड़ने की बात होती है तो कभी कभार अनजाने में कुछ गलत भी हो जाता है पर किसी गलती के लिए सम्बंधित लोगों को सजा भी तो दी जाती है. फिलहाल भारत सरकार को अपने कड़े रुख से कनाडा की सरकार को अवगत करा ही देना चाहिए.        

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