आज कल जिस तरह से पेट्रोलियम पदार्थों को तर्कसंगत बनाने के लिए जो भी प्रयास किये जा रहे हैं उनका देश हित में बहुत जल्द लागू किया जाना ज़रूरी है क्योंकि जिस तरह से पिछले वर्ष देश की बड़ी तेल कम्पनियों को १ लाख करोड़ का नुकसान सिर्फ इनके तर्कसंगत मूल्यों के न होने की वजह से हुआ है वह इन कम्पनियों के लिए आत्मघाती हो सकता है. हम सभी जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें जब भी बढ़ती हैं तो सरकार और तेल कंपनियों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. ज़रा सोचकर देखिये कि इन १ लाख करोड़ रुपयों से कितनी कल्याणकारी योजनायें चलायी जा सकती हैं ? देश के उन दूर दराज़ के क्षेत्रों में विकास का पहिया बहुत अच्छे से घुमाया जा सकता है ? देश की आंतरिक सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए कितने अन्य उपाय किये जा सकते हैं ? शिक्षा के स्तर को कितना सुधार जा सकता है ?
अब जब हम केवल सस्ते मूल्य पर इन पदार्थों की मांग करते रहेंगें तो एक न एक दिन भारत सरकार की आँखों का तारा ये नवरत्न तेल कम्पनियाँ दीवालिया ही हो जायेंगीं और इनका अधिग्रहण कोई देशी या विदेश कम्पनी कर लेगी साथ ही इनमें काम करने वाले लोगों के लिए भी रोज़ी का संकट आ सकता है ? जब हम खाने-पीने की हर चीज़, बिजली, टेलीफोन आदि को बाज़ार के सही मूल्य पर ले सकते हैं तो क्यों इन पेट्रोलियम पदार्थों के बारे में हमारी राय एक दम से बदल जाती है. आम उपभोता वस्तुओं के दाम बढ़ने पर राजनैतिक दल केवल हल्ला मचाकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं ? यह १ लाख करोड़ का भार अगर देश की आम जनता पर डाल दिया जाये तो इन तेल कम्पनियों की सेवाएं हमें बहुत लम्बे समय तक मिल सकती हैं. अगर इन कम्पनियों के बिक जाने के बाद नयी कम्पनी ऊंचे दामों पर बिक्री करेगी तो उसे कौन रोक पायेगा ? कुछ साल पहले रिलायंस ने खुदरा बाज़ार में कदम रखा था पर सरकारी कम्पनियों के तेल के मुकाबले उनको घाटा हो रहा था जबकि सरकारी कम्पनियां अपनी पूँजी लुटाकर यह काम कर रही थीं तो एक कुशल व्यापारी की तरह कम्पनी ने अपने खुदरा बिक्री के आयाम को बंद कर दिया. सरकार दबाव में रहकर कुछ दिनों तक तो लोकप्रिय रह सकती है परन्तु एक न एक दिन उसे सच्चाई को स्वीकारना ही होगा.
देश को आर्थिक कंगाली से निकाल कर विकास के राजमार्ग पर डालने वाले मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री रहते हम इस बात की आशा तो कर ही सकते हैं कि कहीं न कहीं से कोई ऐसा मार्ग निकला जायेगा जिससे जनता को सही मूल्य पर तेल मिलता रहे और कम्पनियों को भी घाटा न हो. सबसे पहला काम जो किया जाना चाहिए कि केरोसिन पर से पूरी तरह सब्सिडी हटा ली जानी चाहिए क्योंकि तेल कम्पनियों को जो घाटा हो रहा है वह नेता और भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से डीज़ल में मिलावट करके काला धन बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है. आज देश को सही दिशा की ज़रुरत है जो आगे आने वाले समय में देश की आर्थिक दशा को सही रख सके और जनता को उचित मूल्य पर तेल उत्पाद मिलते रहें.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!
जवाब देंहटाएं